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जिला अस्पताल में कार्यशाला का आयोजन, पीसीपीएनडीटी एक्ट, मुखबिर योजना के बारे में दी गयी जानकारी

नोएडा : बेटियां घर की शान होती हैं। बेटियों से ही घर बनता है। आज स्थिति यह है कि बेटों से ज्यादा लायक बेटियां हैं। यह बात शनिवार को जिला संयुक्त अस्पताल में राष्ट्रीय बालिका दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित जागरूकता एवं प्रचार-प्रसार कार्यशाला में वक्ताओं ने कही। कार्यशाला में वक्ताओं ने बेटियों का महत्व बताया। अपनी बेटियों  को लेकर अपने सुखद अनुभव साझा किये।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. दीपक ओहरी एवं कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. शिरीष जैन के नेतृत्व में शनिवार को पीसीपीएनडीटी टीम की ओर से इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में कार्यक्रम की को-आर्डिनेटर मृदुला सरोज एवं संध्या यादव ने राष्ट्रीय बालिका दिवस, पीसीपीएनडीटी (गर्भ धारण एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक- विनियमन तथा दुरुपयोग अधिनियम 1994) एवं मुखबिर योजना के उपयोग, महत्ता एवं आवश्यकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम के अनुशरण में प्रशासन द्वारा बेटियों की गर्भ में रक्षा के लिए मुखबिर योजना का संचालन किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग अवैध रूप से चल रहे अल्ट्रासाउंड सेन्टर तथा अवैध ढंग से लिंग जांच करने वाले केन्द्रों, चिकित्सकों तथा व्यक्तियों के खिलाफ बहुत सख्त है।

कार्यशाला में बताया गया कि मुखबिर योजना का सफल संचालन कराने वाले मुखबिर को 60000 रुपये, डेकॉय (गर्भवती महिला) को 100000 रुपये तथा डेकॉय सहायक को 40000 रुपये की इनामी धनराशि दी जाती है। इस योजना के क्रियान्वयन में सहयोग करने के इच्छुक व्यक्ति को जिलाधिकारी एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी संपर्क करना होता है।

कार्यशाला में जिला प्रोबेशन अधिकारी अतुल कुमार सोनी, जिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. रेनु अग्रवाल, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. नेपाल सिंह, डा. भारत भूषण, डा. सुनील दोहरे, डा. शशि कुमारी, डा. अर्चना सक्सेना, मलेरिया अधिकारी राजेश शर्मा ने प्रतिभाग किया।

क्या है पीसीपीएनडीटी एक्ट

पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए भारत की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक  एक्ट 1996, के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 000  जुर्माने की सजा का प्रावधान है।

जरूरी है पंजीकरण

अल्ट्रासाउंड का पंजीकरण समाप्त होने से एक सप्ताह पूर्व प्रार्थना पत्र दे देना चाहिए। पंजीकरण स्थान का होता है, डॉक्टर और मशीन का नहीं होता है। डॉक्टर व मशीन का केवल अंकन होता है। बिना मरीज की आईडी लिए अल्ट्रासाउंड नहीं करना चाहिए।

बता दें कि राष्ट्रीय बालिका दिवस  भारत में हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत महिला एवं बाल विकास, भारत सरकार ने 2008 में की थी। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें सेव द गर्ल चाइल्ड, बालिका लिंगानुपात और बालिकाओ के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षित वातावरण बनाने सहित जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।