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हिंदी दिवस के अवसर पर हम बात कर रहे हैं अपनी राष्ट्रभाषा एवं मातृभाषा “हिंदी” की जिसने हमें ‘अ’, अनपढ़ से ‘ज्ञ’ ज्ञानी बनाया। भारत में हर वर्ष ’14 सितंबर’ का दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा है। भारत में हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या पचास करोड़ से अधिक है। हमारे देश में अभी भी 30 प्रतिशत लोग ऐसे है जो कि निरक्षर है या फिर कम पढ़े लिखे हैं। फिर भी इनमें से ज्यादातर लोग हिंदी बोल और समझ सकते हैं। यही वजह है कि हमारी ‘राष्ट्रभाषा’ हिन्दी विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।

हिंदी के डिजिटल मीडिया की बात करें तो। इस क्षेत्र को विस्तार देने में हिंदी का बढ़ा योगदान है। इसी का नतीजा है कि आज हिंदी ई-मेल और डोमेन नाम का पंजीकरण होने लगा है। लेखन की बात करें तो प्रेमचंद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी, मैथिली शरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवियों, लेखकों और गीतकारों ने आज तक अपनी रचनाओं में हिंदी को जीवित ही नहीं रखा बल्कि पाठकों के दिलों में हिंदी की जगह भी बनाई।

बात हिन्दी दिवस के इतिहास और इसे दिवस के रूप में मनाने की करें तो वर्ष 1918 में सबसे पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंहा ने अथक प्रयास किए। इसके चलते उन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएं भी कीं और और लोगों को हिंदी के प्रति जागरूक करने के लिए निरंतर अभियान चलाया।

आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। दरअसल 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का 50-वां जन्मदिन था, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है।

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ साथ राजभाषा नीति भी लागू हुई। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप है। हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में किया जा सकता है। अनुच्छेद 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात वर्ष 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिन्दी न जानने वाले हिन्दी सीख जायेंगे और हिन्दी भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा।

अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान प्रारंभ होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जो अन्य बातों के साथ साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई। संविधान के अनुच्छेद 120 में कहा गया है कि संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। वर्ष 1965 तक 15 वर्ष हो चुका थे, लेकिन उसके बाद भी अंग्रेजी को हटाया नहीं गया और अनुच्छेद 334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भारत की राजभाषा है।

26 जनवरी 1965 को संसद में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि “हिन्दी का सभी सरकारी कार्यों में उपयोग किया जाएगा, लेकिन उसके साथ साथ अंग्रेज़ी का भी सह राजभाषा के रूप में उपयोग किया जाएगा।” वर्ष 1967 में संसद में “भाषा संशोधन विधेयक” लाया गया। इसके बाद अंग्रेज़ी को अनिवार्य कर दिया गया। इस विधेयक में धारा 3(1) में हिन्दी की चर्चा तक नहीं की गई। इसके बाद अंग्रेज़ी का विरोध शुरू हुआ।

साभार इन्टरनेट