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डॉ. सुनील संचय

विश्व हिंदी दिवस: आज यानी 10 जनवरी को विश्‍व हिंदी दिवस मनाया रहा है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य हिंदी के प्रति जागरुकता और इस भाषा को अंतरराष्ट्रीय रूप से और मजबूत करना है। विश्‍व हिंदी दिवस के मौके पर दुनियाभर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। आपको बता दें, विश्व में हिंदी का विकास करने और एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का उदघाटन किया था।

इन देशों में मनाया जाता है ये दिन :

हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए 1975 से भारत, मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद और टोबैगो, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विभिन्न देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। आपको बता दें, विश्व हिंदी दिवस पहली बार 10 जनवरी, 2006 को मनाया गया था। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 2006 में प्रति वर्ष 10 जनवरी को हिंदी दिवस मनाने का एलान किया था। तब से यह हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है।

आजाद भारत में ऐसे चुनी गई थी राष्ट्रभाषा

भारत की राजभाषा :  14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाए। बता दें,  पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था।

विश्व हिंदी दिवस : विश्व हिंदी दिवस को मानने का उद्देश्य हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना है. ताकि दुनिया का हर देश इस भाषा से रूबरू हो सके

पहला विश्व हिंदी सम्मेलन : नागपुर में 10 जनवरी 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया था। 10 जनवरी 2006 तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस दिन को प्रति वर्ष विश्व हिंदी दिवस के रूप मनाए जाने की घोषणा की थी।

हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी ‘राष्ट्रभाषा’ भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है।

हिंदी का बढ़ता दायरा : हिन्दी अब कहाँ नहीं है। बहुत दूर तक हिंदी का राज है। बहुत दूर तक उसकी छाया है। विज्ञापन ज्यादातर हिंदी में तैयार होते हैं। हिंदी के धारावाहिकों के लिए दक्षिण भारत में  बेचैनी दिखती है। कॉरपोरेट जगत हिंदी में संवाद करता है और  देश के करोड़ों लोगों के रोजगार की भाषा हिंदी ही है। हिंदी की दुनिया अब बहुत बड़ी हो चुकी है।

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के पीछे हिंदी की ही शक्ति है। फिर बाजार की ओर लौटें तो आप पाएंगें की प्रायः हर प्रोडक्ट पर हिंदी की एक बिंदी जरूर है। हिंदी सब जगह विनम्रता के साथ जा रही है। फेसबुक, व्हाट्सएप, ब्लॉग, टिवटर आदि में उसकी उपस्थिति लगातार बढ़ रही है। हिंदी का बाजार बड़ा तेजी से बड़ा और व्यापक होता जा रहा है। हम हिंदी भाषियों से कहीं ज्यादा इसे देश और दुनिया की तमाम कंपनियां समझ रही हैं। माइक्रोसाफ्ट, गूगल, सन, याहू, आईबीएम तथा ओरेकल जैसी विश्वस्तरीय कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिंदी प्रयोग को बढावा दे रही हैं। परंतु विडम्बना तो ये है कि हिंदी पट्टी के तमाम लोगों को हिंदी बोलने और अपने बच्चों को हिंदी का संस्कार देने में शर्म महसूस होती है। इतना ही नहीं हिंदी के नाम पर करोड़ों कमाने वाले बॉलीबुड के ज्यादातर सेलिब्रिटी भी आम बोलचाल में हिंदी की बजाय अंग्रेजी का प्रयोग करके खुद के रईस और बुद्धिजीवी होने का दिखावा करते हैं।

आज हिंदी का स्वरूप काफी व्यापक हो चला है। साहित्य, फिल्म, कला, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संचार, बाजार सभी क्षेत्रों में हिंदी ने अपनी महत्ता कायम की है। विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई होती है। भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के चलते हिंदी का व्यापक प्रसार हुआ है। बदलती दुनिया में हिंदी की प्रासंगिकता और उपयोगिता ने हिंदी में अनुवाद कार्य का मार्ग प्रशस्त किया है जिसके चलते हिंदी बाजार और रोजगार से जुड़ी है। मौजूदा समय में हिंदी का रोजगारपरक होना इसकी सबसे ब़ड़ी खासियत है। पूंजीवाद के इस दौर में बाजार के लिए हिंदी अनिवार्य बन गई है। हिंदी ने लाखों-करोड़ों भारतीयों को रोजगार दिया है। बोलने के लिहाज से अगर देखें तो दुनिया की प्रमुख  भाषा होने के बावजूद हिंदी अभी संयुक्त राष्ट्र में भाषा के तौर पर शामिल नहीं हो पाई है। हिंदी के पास भाषिक क्षमता इतनी ज्यादा है कि वह आसानी से वि्श्वभाषा बन सकती है। भाषा, व्याकरण, साहित्य, कला, संगीत के साथ-साथ अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों में हिंदी ने अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं वर्चस्व कायम किया है। हिंदी की यह स्थिति हिंदी भाषियों और हिंदी समाज की देन है। लेकिन हिंदी समाज का एक तबका हिंदी की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है।

हिन्दी भाषा की उपादेयता इस बात से प्रमाणित होती है कि यह हमारे करोड़ों लोगों की भाषा है, साहित्यकार और कवियों की भाषा है, जिस भाषा के पास तुलसीदास, सूरदास और अन्य महान कवि हों, उस भाषा की शक्ति का पता उनकी रचनाओं को पढ़कर आप लगा सकते हैं। लोकप्रिय फिल्मों की भाषा है। इसमें विज्ञान और व्यापार की अद्यतन जानकारियाँ भी हैं।कम्प्यूटर पर हिन्दी में आलेख, सूचियाँ, डेटाबेस, पुस्तकें आदि के लिए टूल्स बन गए हैं। इंटरनेट से हिन्दी में ई-मेल, ब्लॉग, कॉन्फ्रेरसिंग कर सकते हैं। फॉन्ट, कन्वर्जन यूटिलिटी, ऑफिस सॉफ्टवेयर, ओसीआर, बोल-पहचान, वर्तनी जाँच, ट्रांसलेशन सपोर्ट मुक्त रूप में मिल रहे हैं, बहुतेरे मुफ्त में भी।

हिन्दी अपनी भाषा है, गुलामी के बाद पश्चिम के समृद्ध समाज से कदम से कदम मिलाने की चाह ने अंग्रेजी को अपनाया, अंग्रेजियत को ओढा। लेकिन अंग्रेजी से आत्म गौरव और लोगों के प्यार का अनुभव नहीं हुआ। आज दिखावा और आत्मगौरव के बीच द्वंद्व है। सभी पेशोपेश में हैं, विचार मंथन करते हैं।

दुनिया में बढ़ती हिंदी की धाक : आज विश्व में सबसे ज्यादा पढे जानेवाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी के हैं। इसका आशय यही है कि पढा-लिखा वर्ग भी हिन्दी के महत्त्व को समझ रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीशस,चीन,जापान,कोरिया, मध्य एशिया, खाडी देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा तथा अमेरिका तक हिंदी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के जरिए प्रसारित हो रहे हैं और भारी तादाद में उन्हें दर्शक भी मिल रहे हैं।

आंकड़ों में भी हिंदी की बढ़ रही धाक : आज हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं। हमारी प्रमुख भाषा हिंदी है, ऐसा कहा जाता है कि  इस भाषा को बोलने वाले विश्व में सबसे अधिक लोग हैं। अंग्रेजी को ब्रिटेन के लगभग दो करोड़ लोग मातृ भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं, जबकि हिंदी को भारत वर्ष में आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 52,83,47,193 लोगों की मातृभाषा हिंदी है, जो देश की कुल जनसंख्या का 43.63 प्रतिशत है।  संपर्क भाषा के रूप में पूरे देश में समझा जाता है और देश से बाहर श्रीलंका, नेपाल, वर्मा, भूटान, बांगलादेश और पाकिस्तान सहित मारीशस जैसे सुदूरस्थ देशों में भी बोला समझा जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि  विश्व की सबसे समृद्घ भाषा और सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा हिंदी होनी चाहिए। एक शोध के अनुसार 206 देशों में हिंदी भाषा विद्यमान है। इन देशों में हिंदी एक विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है और विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी के पठन-पाठन और शोध की लंबी परम्परा की व्यवस्था है। एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार विदेशों में चालीस से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।

हिंदी की विशुद्धता वर्तनीय और व्यवहारिक स्तर पर चिंताजनक :

वर्ष 2001-2011 के बीच के सालों में 10 करोड़ नए लोगों ने हिंदी बोलना शुरू किया।इस नई संख्या के बाद 25.19 फीसदी की दर से हिंदी भारत में सबसे तेजी से बढ़ने वाली भाषा रही। आंकड़ों को देखें तो हाल के दिनों में तमिलनाडु और केरल में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है।

विश्व स्तर पर बताए जा रहे आंकड़ों से प्रसन्नता बड़ी होती है कि हिंदी विश्व की सर्वाधिक बोलने वाली भाषा बनने की ओर अग्रसर है, सोशल मीडिया पर हिंदी ने एकाधिकार कर रखा है, किसी भी हिन्दीप्रेमी के लिए यह सब सुनना बहुत सुखद लगता है, लेकिन सच तो यह है कि हिंदी की विशुद्धता वर्तनीय और व्यवहारिक स्तर पर बेहद चिंताजनक है। निःसंदेह ये त्रुटियां वर्तमान में हिंदी की विशुद्धता को खोखला कर रही हैं। यह स्थापित सत्य है कि अंग्रेजी के दबाव के बावजूद हिंदी बहुत ही तीव्र गति से विश्वमन के सुख-दु:ख, आशा-आकांक्षा की संवाहक बनने की दिशा में अग्रसर है। हिंदी के शब्दकोश तथा विश्वकोश निर्मित करने में भी विदेशी विद्वान सहायता कर रहे हैं।

बढ़ रहा है हिंदी साहित्य : आंकड़ों के खेल से अलग हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भूमिका को स्थापित करने वाले कई तथ्य और हैं और वे तथ्य ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। एक बात तो यह है कि हिंदी भाषा के साहित्य ने पिछली एक सदी में बड़ी तेजी से विकास किया है, वह कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना तथा चिंतनपरक साहित्य के क्षेत्रों में इतनी विकसित हुई है, इतनी ऊपर उठी है, कि आज वह किसी भी भाषा के श्रेष्ठ साहित्य का मुकाबला कर सकती है। प्रेमचंद्र, निराला, जयशंकर प्रसाद, रामचंद्र शुक्ल, राहुल सांस्कृत्यायन, मुक्तिबोध आदि के लेखन के अनुवाद दुनिया की विभिन्न भाषाओं में हुए हैं। इस प्रक्रिया से हिंदी के जरिए दुनिया की जनता से भारत की जनता का संवदेनात्मक संबंध कायम हुआ है। यह संबंध रचनात्मक और संवेदनात्मक तो है ही, सांस्कृतिक विनियम का एक रूप भी प्रस्तुत करता है। देश के लेखको ने हिंदी के ऊपर कई गीत और रचनाएँ लिखी हैं जिसमें एक है  “हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तान हमारा ”ये शब्द देश की शान में लिखे गए हैं और हमें गर्व महसूस कराते हैं।हिन्दी की वर्तमान स्थिति पर हुए सर्वे में एक सुखद तथ्य सामने आया कि तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है। स्वीकार्यता बढ़ने के साथ-साथ इसके व्यावहारिक पक्ष पर भी लोगों ने खुलकर राय व्यक्त की, मसलन लोगों का मानना है कि हिन्दी के अखबारों में अंगरेजी के प्रयोग का जो प्रचलन बढ़ रहा है वह उचित नहीं है लेकिन ऐसे लोगों की भी तादाद भी कम नहीं है जो भाषा के प्रवाह और सरलता के लिए इस तरह के प्रयोग को सही मानते हैं।

अगर हम सभी चाहते है की हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा बनी रहे तो इस हेतु हम सबको मिलकर एक रचनात्मक पहल करनी होगी। हमें जागरूक नागरिक का परिचय देना होगा। आज हिंदी विश्व के सभी महाद्वीपों तथा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों- जिनकी संख्या लगभग एक सौ चालीस है- में किसी न किसी रूप में प्रयुक्त होती है। वह विश्व के विराट फलक पर नवल चित्र के समान प्रकट हो रही है। आज हिंदी विश्व के 206देशों में धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रही है और उसके प्रयोक्ताओं की संख्या एक अरब तीस करोड़ तक पहुंच गयी है। हमारे देश के प्रशिक्षित पेशेवर लगातार विदेशों में अपनी सेवाएं देने के लिए जा रहे हैं और उनके साथ हिंदी भी जा रही है। इसी तरह बहुराष्ट्रीय निगम बड़े पैमाने पर भारत में पूंजी निवेश कर रहे हैं।

हिंदी आज जिस दायित्व बोध को लेकर संकल्पित है वह निकट भविष्य में उसे और भी बडी भूमिका का निर्वाह करने का अवसर प्रदान करेगा। हिंदी जिस गति तथा आंतरिक ऊर्जा के साथ अग्रसर है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि सन 2030 तक वह दुनिया की सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा बन जाएगी।

अब संकल्प हिंदी दिवस मनाने का नहीं, हिंदी की विशुद्धता वापस लाने का लेना होगा।

अंग्रेजियत के कारण ही तो हमारी भाषा, सभ्यता और सांस्कृतिक पहचान को ठेस पहुंच रही है। किसी भी भाषा के साथ उसकी संस्कृति जुड़ी हुई होती है। भारत का सांस्कृतिक इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है। जो भी भारतीय इस सांस्कृतिक इतिहास की जानकारियों से अछूता रह जाता है अथवा इसे नहीं अपना पाता, वह पूर्ण रूप से भारतीय नहीं हो सकता। विश्व हिंदी दिवस हमें बता रहा है कि हिंदी की सहायता से ही देश की एकता और अखंडता को कायम रखा जा सकता है।

डॉ. सुनील जैन संचय
गाँधी नगर, नई बस्ती,ललितपुर, उ.प्र.