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श्रीनगर गढ़वाल: प्राचीन काल से ही ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से श्रीनगर गढ़वाल का अपना विशिष्ट महत्व रहा है। यह नगर साधको की साधना स्थली और संस्कृति प्रेमियो की सांस्कृतिक नगरी के नाम से जानी जाती रही है। इसी कारण इस नगरी की महत्ता को देखते हुये राजा-महाराजाओ ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रीनगर की औलोकिक सुन्दरता भी अपने आप मे आकर्षकता का केन्द्र बिन्दु रही है। यहाँ पुरातन काल से ही धार्मिक समागम होते रहे हैं। यह स्थान देवताओं की नगरी भी रही है। श्रीनगर स्थित कमलेश्वर शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन-चक्र प्राप्त किया तो श्री राम ने रावण वध के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिव जी को प्रसन्न किया व पापमुक्त हुए। श्रीनगर में प्राचीन काल से ही बैकुन्ठ चतुर्दशी पर्व पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।srinagar-garhwal

21 नवम्बर से बैकुण्ठ चतुर्दशी मेला एवं “खड़ दिया” पूजा

बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व के असवर पर श्रीनगर गढ़वाल स्थित कमलेश्वर महादेव मंदिर में होने वाली “खड़ दिया” पूजा को “दियों का कौथिग” नाम से भी जाना जाता है। आदिकाल से चली आ रही मान्यता के अनुसार कमलेश्वर महादेव मंदिर में वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु निसंतान दम्पत्ति हाथ में जलता हुआ दीपक व पूजन सामग्री लेकर रातभर खड़े रहकर भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं। जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। सामान्यतः दीपावली तिथि से 14वें दिन बाद आने वाला बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व हिन्दू समाज का महत्वपूर्ण पर्व है।

इस वर्ष श्रीनगर में 21 नवम्बर से बैकुण्ठ चतुर्दशी मेले का आयोजन किया जा रहा है। 21 नंवबर को रात्रि जागरण, मंडाण, भजन-कीर्तन व निःसन्तान दम्पत्ति खड़ दिया अनुष्ठान करेंगे। “खड़ दिया” पूजा के लिए पंजीकरण प्रक्रिया शुरू हो गई है। अब तक देश के विभिन्न हिस्सों से करीब 160 से अधिक निसंतान दंपतियों द्वारा मंदिर समिति के पास अपना पंजीकरण करवाया जा चुका है। “खड़ दिया” पूजा के अलावा वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर नगरपालिका परिषद श्रीनगर द्वारा स्थानीय जीएंडटीआई ग्राउंड में लगभग 5-6 दिन तक व्यापक सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद प्रतियोगिताओं व स्थानीय संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

ऐसे होती है “खड़ दिया” पूजा

बैकुन्ठ चतुर्दशी (कार्तिक मास कि पूर्णिमा) को गोधूलि बेला पर मंदिर के मंहत दीपक प्रज्वलित कर अनुष्ठान का आरंभ करते हैं। मंदिर के ब्राहमणों द्वारा प्रत्येक निसंतान दंपितयों का संकल्प और पूजा कराई जाती है। खड़ दीया पूजा कर रही महिलाएं हाथ में जलता हुआ दीपक लेकर रात्रि भर खड़ी रह कर भगवान भोलेनाथ की उपासना करती हैं। दूसरे दिन प्रात: शुभ मुर्हत पर भगवान कमलेश्वर का अभिषेक किया जाता है। प्रत्येक दंपति अपना दीपक भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करने वाले मंहत को साक्षी मान शिवार्पण करते हैं। इस दौरान पूजा में भाग लेने वाली निसंतान दंपत्तियों के लिए मंदिर में भंडारे की उचित व्यवस्था की जाती है।kamleshwar-mandir-srinagar

कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम कमलेश्वर मंदिर

इस मेले की ऐतिहासिक पृष्टभूमि भी अपने आप मे अनूठी है। त्रेता युग मे भगवान राम ने जब रावण का वध किया। तो उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा। अब भगवान राम इस पाप का प्रायश्चित करने के लिये इधर उधर भटकने लगे। कही उन्हे उपयुक्त स्थान नही मिला। अन्त मे गुरू वशिष्ट ने अपरोक्षानुभूति के माध्यम से तपस्या के लिये कमलेश्वर महादेव को सिद्व स्थान बताया ।भगवान राम ने 108 कमल पुष्पो से भगवान शंकर की अराधना की। भगवान शंकर ने राम की परीक्षा के लिये एक कमल पुष्प छिपा दिया। राम चन्द्र ने फिर अपने नेत्र को अर्पित करते हुये कहने लगे मेरी मा बचपन मे मुझे कमल नयन कह कर पुकारती थी, 108वे कमल के रूप मे ये मेरा नेत्र है। भगवान शंकर ने राम चन्द्र के समर्पण को देखकर बडे प्रसन्न होकर  कहने लगे आप ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुये। साथ ही यह क्षेत्र तुम्हारे तप के कारण कमलेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्व होगा। बैकुन्ठ चतुर्दशी के अवसर पर जो भक्त ऊ नमः शिवाय का जाप करते हुये पूजन करेगा। उसकी सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होगे। बैकुन्ठ चतुर्दशी मेला वर्तमान मे केवल पूजा अराधना तक ही सीमित नही रह गया है। श्रीनगर की बढती जनसंख्या और शिक्षा का केन्द्र बिन्दु होने के कारण एक व्यापक धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन करके पर्यटको को अपनी ओर आकृर्षित किया जाता है।

लेखक अखिलेश चन्द्र चमोला की कलम से