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श्रीनगर गढ़वाल: बहुधा सरकारी शिक्षकों के सन्दर्भ में समाज में तरह तरह की बातें सुनने को मिलती हैं ‘कि ये पढ़ाते नहीं हैं’ अपने कार्य से जी चुराते हैं। यह बात अपने आप में पूर्ण तया सच नहीं है। शिक्षा विभाग में कई इस तरह के कर्मठ और ऊर्जावान शिक्षक हैं ‘जो मेहनत और सच्चे समर्पण के साथ भावी पीढ़ी का मार्ग दर्शन कर रहें हैं। इसी श्रंखला में जनपद पौडी के राइका सुमाडी के हिन्दी अध्यापक अखिलेश चन्द्र चमोला का नाम आता है। उत्तराखंड में भी कोरोना महामारी के चलते हुए अप्रैल माह से लॉकडाउन चल रहा है। जिसमें बच्चों को ऑनलाइन शिक्षण दिया जा रहा है। लॉकडाउन मे अपने शिक्षण कार्य के बाद जो अतिरिक्त समय मिल रहा है, उसमें भावी पीढ़ी तथा युवा शक्ति व आम जनमानस में जन जागरूकता लाने के लिए रचनात्मक कार्य कर रहें हैं। जिसमें अखिलेश चन्द्र चमोला ने भारतीय संस्कृति तथा नैतिक ऊर्जा के आयाम नामक पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार की है। जिसमें चमोला ने बताया कि वर्तमान परिदृश्य में मनुष्य किंकर्तव्य बिमूढ की स्थिति के दौर से गुजर रहा है। क्या उचित है? क्या अनुचित है, इसका सही निर्णय नहीं ले पा रहा है। फलस्वरूप निराशा, कुंठा, तनाव व नकारात्मक का शिकार बनता जा रहा है। अज्ञानता की पट्टी के कारण अपनी मूल भूत नैतिक मान्यताओं को खोता जा रहा है। हमारी भारतीय संस्कृति हमें यह सीख देती है कि परम तत्व का साक्षात्कार करना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। परम तत्व का बोध हम तभी कर सकते हैं कि जब हम नैतिक नियमों के अनुसार जीवन यापन कर रहें हो। पहले की तुलना में नैतिक मूल्यों में बहुत ज्यादा गिरावट आई है। प्रत्येक दिन चोरी, डकैती, हिंसा, बलात्कार, भ्रष्टाचार, आत्म हत्या आदि की घटनाएं हमें देखने को मिलती हैं। यह चिंतन का विषय है कि नैतिकता के मूल्यों के आधार पर जिस देश ने सम्पूर्ण विश्व में जगत गुरु की प्रतिष्ठा प्राप्त की है। आज हम उन्हीं नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। इन सभी विषयों को ध्यान में रखते हुए मैंने पुस्तक लिखने का प्रयास किया है। केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल में दर्शन शास्त्र की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. विभा मुकेश डिमरी ने कहा है कि मुझे अखिलेश चन्द्र चमोला द्वारा लिखी गई पुस्तक भारतीय संस्कृति तथा नैतिक ऊर्जा के आयाम नामक पुस्तक की पाण्डुलिपि का अध्ययन करने का मौक़ा मिला है। इसमें चमोला ने भारतीय संस्कृति तथा नैतिकऊर्जा के विभिन्न सोपानों का समन्वय करना का अतुलनीय प्रयास किया है। वर्तमान समय में इस तरह के साहित्य की नितांत आवश्यकता है। भावी पीढ़ी और आम जनमानस में भारतीय संस्कृति के बीज रोपित करने की मुहिम की सोच रखना अपने आप में उत्कृष्ट तथा उच्चादर्श के भाव को उजागर करता है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह पुस्तक प्रकाशित होने पर समाज में नया कीर्तिमान स्थापित करेगी। इसमें लेखक चमोला ने बेटी, मित्रता, गुरु, अनुशासन, विद्यार्थी, देश प्रेम, मेरा गाँव जैसे समसामयिक विषयों पर चिंतन करने के साथ ही शब्दों का महत्व, माला का महत्व, आसन, मन्त्र, बन देवी का महत्व आदि शीर्षकों को जोड़कर सुंदर गुलदस्ता तैयार किया है। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक की सुगंध युग-युगों तक फैलती रहेगी। ज्ञात हो कि नशा उन्मूलन जैसी गतिविधियों में महत्वपूर्ण योगदान देने पर शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ने शिक्षक चमोला को नशा उन्मूलन प्रभारी का दायित्व भी दिया गया है। जनपद पौडी ही शिक्षा के क्षेत्र में पहला जनपद है, जहाँ प्रार्थना सभा में सप्ताह में एक दिन नशा उन्मूलन प्रतिज्ञा का सस्वर वाचन किया जाता है। यह प्रतिज्ञा चमोला द्वारा ही लिखी गई है। चमोला कई छात्रों को  कभी नशा न करने की प्रतिज्ञा दिलाने के साथ ही संकल्प पत्र भी भरवा चुके हैं। इसके साथ ही  उत्तराखंड बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को अपने निजी खर्चे में सम्मानित भी करते रहते हैं। इनके कार्यों की श्रेष्ठता को देखकर शिक्षा विभाग ने इन्हें राज्यपाल पुरस्कार, मुख्यमंत्री सम्मान, आदर्श उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान से भी सम्मानित किया है। वे राष्ट्रीय स्तर पर भी दर्जनों सम्मनोपाधियो से सम्मानित हो चुके हैं।