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पिछले दिनों दिल्ली में डीपीएमआई एवं उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के तत्वावधान आयोजित कार्यक्रम में लोक गायक हीरा सिंह राणा जी से मुलाक़ात हुई। राणा जी बहुत स्वस्थ तो नहीं थे पर अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परंपराओं की विरासत को जींवनता प्रदान करने के लिए उनका झुझारू होना उतना ही उत्कृष्ट था जितना हमेशा से रहता है।

आज राणा जी का जन्मदिन है। हम उन्हें अपने तरीके से शुभकामनाए दे रहे हैं। यकीनन हीरा सिंह राणा जी जैसा कलाकार सदियों में पैदा होता हैं।, और हीरा सिंह राणा जैसे बनने के लिए सदियां लग जाती है। तब जाकर कोई राणा जी तक छणिक भर पहुंच पाता है। यही सही अर्थों में हीरा सिंह राणा होने के मायने हैं।

इसलिए कहा भी जाता है कि संगीत से भेदभाव, राजनीति में उठापटक और वीरान होते पहाड़ के दर्द को उकेरने वाले लोकगायक हीरा सिंह राणा पहाड़ों की लोक आवाज़ है। जिसने पहाड़ के लोक को नयी पहचान ही नहीं दिलाई बल्कि विश्व सांस्कृतिक मंच पर नयी पहचान के साथ स्थापित भी किया।

लेकिन पिछले दिनों जब कूल्हे की हड्डी टूटने के बाद हमारी यह लोक थाती पांच दिन तक रामनगर के एक  निजी अस्पताल में भर्ती रही तो सरकार को इस लोक आवाज के लिए एक मिनट का समय तक नहीं रहा। वह तो हमें आभार प्रकट करना चाहिए समाज सेवी माताश्री मंगलाजी एवं भोलेजी महाराज जी और डाक्टर विनोद बच्छेती जी का की उन्होंने इस लोक आवाज़ की पीड़ा को सुना और इनके साथ खड़े होकर इस आवाज़ को बचाए रखने के लिए हर संभव मदद की। सच कहें तो आज इन्हीं प्रबुद्धजनों के सहयोग राणा जी हमारे बीच में हैं।

और जब हमने राणा जी जानना चाहा कि अब कैसे हैं? तो उनका जवाब था अब पहले से ठीक हूँ और जब तक शरीर में प्राण है तक गाता रहूंगा। अपने नौनिहालों को अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परंपराओं से रूबरू करता रहूंगा। मैं तो चाहता हूं हमारे नौनिहाल अपनी भाषा-बोली के प्रति जागरूक हो अपने लोक संस्कृति को जाने समझे अपनी गीतों को समझे अपने गीतों में उकरी पीड़ा को जानने की कोशिश करे। जो लोक गीत बिखरे हुए हैं। उन्हें संकलित करने का प्रयास करे। सही अर्थों में यह हमारा सम्मान होगा।

थोड़ी देर मौन रहने के बाद फिर बताते हैं कि 15 साल की उम्र से उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़कर गीत गाने लगा था। रामलीला, पारंपरिक लोक उत्सव, विवाहिक कार्यक्रम, आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ और देश-विदेश में खूब गाया। बच्चों को सिखाया भी, लेकिन आज हमारे लोक संगीत की चिंता नही है किसी को बबा, यह बहुत दुखद है। अपनी लोक संस्कृति और लोक परंपराओं को नहीं बचाओगे तो अपनी आंखों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को लुप्त होते हुए देखोगे। और राणा जी हाथ जोड़कर चुपचाप बैठ जाते हैं।

निश्चित तौर पर हमारी लोक थाती के यह गंभीर सवाल है और अपने लोक को बचाए रखने का कौतूहल भी, जिसे जानना समझना हम सबके लिए बहुत जरूरी ही नहीं अपितु सोचनीय भी है। उत्तराँखण्ड के प्रमुख गायक कलाकारो में हीरा सिंह राणा का नाम प्रथम पंक्ति में आता है  जिन्हें लोग हीरदा कुमाऊनी भी कहते है। हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को मानिला डंढ़ोली जिला अल्मोड़ा में हुआ उनकी माताजी स्व: नारंगी देवी, पिताजी स्व: मोहन सिंह थे। राणा जी प्राथमिक शिक्षा मानिला में हुई। उन्होंने दिल्ली सेल्समैन की नौकरी की लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इस नौकरी को छोड़कर वह संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता चले गए और संगीत के संसार में पहुँच गए।

इसके बाद हीरा सिंह राणा ने उत्तराखंड के कलाकारों का दल नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत 1974,  हिमांगन कला संगम दिल्ली 1992, पहले ज्योली बुरुंश (1971) , मानिला डांडी 1985, मनख्यु पड़यौव में 1987, के साथ उत्तराखण्ड के लोक संगीत के लिए काम किया। इस बीच राणा जी ने  कुमाउनी लोक गीतों के 6- कैसेट ‘रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’ भी निकाले। राणा जी ने कुमाँउ संगीत को नई दिशा दी और ऊचाँई पर पहुँचाया. राणा ने ऐसे गाने बनाये जो उत्तराखण्ड की संस्कृति और रिती रीवाज को बखुबी दर्शाते हैं। यही वजह कि भूमंडलीकरण के इस दौर में हीरा सिंह राणा के गीत  खूब गाए बजाए जाते हैं।

जगमोहन ‘आज़ाद’

कुमाउनी भाषा में हीरा सिंह राणा के जन्मदिन पर पूरन चन्द्र काण्डपाल का विचार

 आज हीरदा कुमाऊनी ज्यूक जनमदिन

आज 16 सितम्बर 2018 हैं सुप्रसिद्ध लोकगायक, गीतकार और कवि हीरा सिंह राणा ज्यू 75 वर्षक है गईं । पिछाड़ि 50 वर्ष बटि ऊँ हमरि मातृभाषा कुमाउनी कि सेवा में एक संत-फकीर कि चार निःस्वार्थ लागि रईं । उनर रचना संसार भौत ठुल छ। उनूल 9 रसों में देशप्रेम, श्रृंगार, प्रेरणादायी, विरह, भक्ति, उत्तराखंड और संदेशात्मक भौत गीत- कविता लेखीं । उनुहैं हम आपणि संस्कृति और भाषाक धरोहर लै कै सकनूं।

राणा ज्यू आज जनमानस में छाई हुई एक महान विभूति छीं। उनर अमुक गीत भल छ अमुक गीत भौत भल छ , यैक विश्लेषण करण आसान न्हैति। उनु दगै कवि सम्मेलन में म्यर लै कएक ता दगड़ हौछ। ऊँ एक सरल, सहज, शांत और एक फ़कीर प्रवृति क मनखी छीं । राणा ज्यू कैं देखते ही जो गीत-कविता म्यार कानों में गूंजण फै जानीं ऊँ छीं – ‘अहा रे जमाना, त्यर पहाड़ म्यर पहाड़, लस्का कमर बादा, म्येरि मानिलै डानि, अणकसी छै तू, आजकल है रै ज्वाना, आ लिली बाकरी लिली…,आंखरों कि माव बनै बेर गीत- कविता क रूप में हमार बीच में धरणी य सुरों क सम्राट कैं भौत भौत शुभकामना । उम्मीद छ राणा ज्यू अघिल हैं लै आपण रचनाओंल हमर साहित्य, संस्कृति और कला कैं सिंचित करते रौल। 2 फ़रवरी 2016 हैं मील एक लेख में उम्मीद जतै रैछ कि उनुकैं पद्म सम्मान दियी जाण चैंछ। पूरन चन्द्र काण्डपाल

सन 2011 में हमारी संस्था “उत्तराखण्ड सांस्कृतिक समिति” ने हीरा सिंह राणा जी को एक सांस्कृतिक संध्या में ग्रेटर नोएडा में आमंत्रित किया था और राणा जी ने अपने सुपरहिट गीत रंगीली बिंदी, घाघर काई—हाई रे मिजाता से पूरे ग्रेटर नोएडा शहर को झूमने पर मजबूर कर दिया. जिसे आप नीचे दिए गए विडियो में देख सकते हैं