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नैनीताल: उत्तराखण्ड के श्रीनगर गढ़वाल स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) को जयपुर (राजस्थान) शिफ्ट करने सम्बंधित जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान नैनीताल हाई कोर्ट ने सरकार के रवैये पर नाराजगी जताते हुए तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि एक राष्ट्रीय स्तर का संस्थान प्रदेश से बाहर जा रहा है और उत्तराखंड सरकार को जरा भी दुख नहीं हो रहा है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा एनआइटी प्रबन्धन द्वारा अपना जवाब पेश किया गया। केंद्र सरकार ने अपने जवाब में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार संस्थान बनाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं करा रही है। इसके साथ ही न्यायालय ने याचिकाकर्ता को एनआईटी, राज्य एवं केंद्र सरकार के शपथ पत्र पर प्रति शपथपत्र पेश करने को कहा है।

उल्लेखनीय है कि श्रीनगर स्थित एनआईटी के छात्रों को जयपुर (राजस्थान) शिफ्ट करने के विरोध में संस्थान के पूर्व छात्र जसवीर सिह ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में छात्र ने आरोप लगाया है कि 9 वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक एनआईटी का स्थाई कैम्पस नहीं बनाया गया है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ के समक्ष केंद्र सरकार, प्रदेश सरकार और एनआईटी प्रबंधन ने जवाब दाखिल किया। एनआईटी प्रबंधन एवं केंद्र सरकार ने अपने जवाब में स्पष्ट रूप से आरोप लगाया है कि राज्य सरकार संस्थान बनाने के लिए जगह उपलब्ध ही नहीं करा रही है।

जबकि पूर्व में सुमाड़ी, नियाल सहित अन्य दो गावों द्वारा उच्च न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर पक्षकार बनाने की मांग की थी और न्यायालय ने याचिकाकर्ता को पक्षकार बनाने के निर्देश दिए थे। ग्रामीणों ने अपने प्रार्थना पत्र में कहा था कि हमने सुमाडी में एनआईटी बनाने के लिए 120 हेक्टेयर जमीन दान में दी है। चूंकि ग्रामीणों को लगा कि एनआईटी बन जाने से इस इलाके के विकास होगा और साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे। जिससे काफी हद तक पलायन रुकने की भी उम्मीद है। उनका कहना है कि सरकार ने 2009 में वन विभाग से भूमि हस्तांतरण के लिए 9 करोड़ रुपये भी दे दिए थे। इसके अलावा सरकार ने कैम्पस की चाहरदीवारी बनाने के लिए 4 करोड़ रुपये भी खर्च कर दिए हैं। परन्तु 9 साल बाद भी अब तक सरकार यहाँ एनआईटी का निर्माण शुरू नहीं कर पाई है। पूर्व में आईआईटी रुड़की द्वारा भी इस भूमि का भूगर्भीय सव्रेक्षण किया गया था। इसकी अभी तक अंतिम रिपोर्ट नही आई है। हमने अपनी जमीन इसलिए दान दी थी ताकि यहां का विकास हो, लोगों को रोजगार मिले, पलायन पर रोक लग सके। परन्तु सरकार एनआइटी को मैदानी क्षेत्र में स्थापित करना चाहती है।

बतादें कि वर्ष 2009 में स्वीकृत एनआईटी उत्तराखंड वर्ष 2010  से श्रीनगर स्थित पॉलीटेक्निक और आईटीआई की परिसंपत्तियों में संचालित हो रहा है। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से अस्थाई कैंपस में सुविधाओं के अभाव तथा स्थाई कैम्पस की मांग की समय समय बात उठती रहती है। बीते 4 अक्टूबर से एनआईटी के स्थाई परिसर के निर्माण, सड़क दुर्घटना में घायल छात्रा के इलाज एवं अस्थाई कैंपस के स्थानांतरण की मांग को लेकर छात्र आंदोलित थे। छात्रों के आंदोलन को देखते हुए एमएचआरडी ने एनआईटी प्रशासन को अस्थाई कैंपस के लिए उपयुक्त स्थान तलाशने के निर्देश दिए थे। एनआईटी प्रशासन ने आईडीपीएल ऋषिकेश में जगह भी ढूंढ ली थी, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद एनआईटी को ऋषीकेश शिफ्ट नहीं किया गया। इस बात से आक्रोशित छात्र दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हो गए। छात्रों के उग्र आंदोलन को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आंदोलित छात्रों को एनआईटी जयपुर शिफ्ट करने के निर्देश एनआईटी श्रीनगर के डायरेक्टर को दिये थे।

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