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नई दिल्ली : देश के प्रतिष्ठित पुरुष्कार पद्मश्री से सम्मानित, मैती आन्दोलन के जनक, प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद उत्तराखंड के शिक्षक कल्याण सिंह रावत (मैती) को रविवार को दिल्ली की प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था गढवाल हितैषिणी सभा (रजि.) द्वारा “गढवाल भवन” में अमर शहीद देव सुमन के नाम पर स्थापित श्री देव सुमन वरिष्ठ सम्मान से सम्मानित किया गया। गढ़वाल भवन में आयोजित सम्मान समरोह कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत द्वारा भेंट किया गया।

मूल रूप से चमोली जिले के बैनोली गांव निवासी कल्याण सिंह रावत ने साल 1994 में पर्यावरण से जुड़े मैती आंदोलन की शुरुआत की थी। गढ़वाल में मैत का अर्थ होता है मायका और मैती का अर्थ होता है मायके वाले। मैती के तहत जब किसी बेटी की शादी होती है। तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधा दिया जाता है। वैदिक मंत्रों के द्वारा दूल्हा इस पौधे को रोपित करता है तथा दुल्हन इसे पानी से सींचती है। फिर ब्राह्मण द्वारा इस नव दंपत्ति को आशीर्वाद दिया जाता है। इसके जरिए वह पर्यावरण संरक्षण के साथ ही अपने मायके में गुजारी यादों के साथ-साथ विदाई लेती है। पेड़ को लगाने के एवज में दूल्हे द्वारा दुल्हन की सहेलियों को कुछ पैसे दिये जाते हैं। जिसका उपयोग पर्यावरण सुधारक कार्यों में और समाज के निर्धन बच्चों के पठन-पाठन में किया जाता है। दुल्हन की सहेलियों को मैती बहन कहा जाता है। जो भविष्य में उस पेड़ की देखभाल करती हैं।

इस भावनात्मक आंदोलन के साथ शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान आज उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश में चल रहा है। पर्यावरण संरक्षण की अनूठी सौगात देने वाले मैती आंदोलन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें भी सराहा था। जीव विज्ञानं के प्रवक्ता रहे कल्याण सिंह रावत का पेड़ों और जंगलों के प्रति लगाव बचपन से ही था। उनके पिता फारेस्ट डिपार्टमेंट में थे। कल्याण सिंह रावत की प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय बैनोली (नौटी) में हुई जबकि 8वीं तक की शिक्षा उन्होंने कल्जीखाल से ली। कर्णप्रयाग से 10वीं, 12 वीं की शिक्षा नगरी पूरी करने के बाद उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोपेश्वर से की। कॉलेज के दिनों में वे चिपको आंदोलन के जरिये पर्यावरण से जुड़े गए थे।

वर्ष 1994 में उन्होंने पर्यावरण से जुड़े मैती आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने शिक्षक रहते हुए स्कूली बच्चों को मैती आंदोलन के लिए प्रेरित किया। फिर धीरे-धीरे समूचे गांव के लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया। पर्यावरण संरक्षण की अनूठी सौगात के लिए उन्हें 26 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया।