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कोरोना वायरस महामारी एक तरफ जहाँ दुनियाभर में एक बड़ा संकट लेकर आई है, वहीँ कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए कोरोना दुःख के साथ-साथ सुखद अहसास भी ले आया है। पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड (पहाड़) में वीरान और खाली पड़े गाँव किसी से छुपे नहीं हैं। उत्तराखंड में रोजगार तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य के सीमित संसाधनों के चलते यहाँ के युवा दिल्ली, मुम्बई, चंडीगढ़ आदि बड़े शहरों में गए और वहीँ के होकर रह गए हैं। ऐसे में उत्तराखंड के ज्यादातर गांवों में अब बस बुजुर्ग (बोडी-बोडा) ही रह गए हैं। जो अपने पोते-पोतियों को देखने के लिए तरस रहे हैं। या यूँ कहें कि उनके लौट आने की चाह में जिन्दा है। गाँव में दिन गुजार रहे ऐसे ही बुजुर्गों के लिए कोरोना रूपी महामारी एक सुखद अहसास लेकर आई है। बतादें कि कोरोना महामारी की वजह से सरकार द्वारा देशभर में किये गए लॉकडाउन के चलते लोग शहरों को छोड़कर अपने-अपने गाँव लौट रहे हैं। अकेले उत्तराखंड में अब तक एक लाख अस्सी हजार से ज्यादा प्रवासी अपने गाँव लौट चुके हैं। ऐसे ही एक बुजुर्ग माता को जब पता चला कि कोरोना के चलते उसका बेटा अपने बच्चों के साथ उसके पास गाँव लौट रहा है। तो उस वृद्ध माँ के मन की भावनाएं कैसी होंगी। इसको उत्तराखंड मूल के प्रवासी समाजसेवी उदय ममगाई राठी ने अपनी एक खूबसूरत गढ़वाली कविता “सोचि नि छौ मिल” के जरिये आप लोगों तक पहुँचाया है। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर आप उनकी इस कविता को जरुर सुने।