कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे”  उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान पहाड़ के हर व्यक्ति की जुबां पर यही नारा था। लेकिन, राज्य गठन के 18 वर्षों बाद प्रदेश में कोदा-झंगोरा मिलना किस कदर मुश्किल हो चला है, यह बात महिला और बाल विकास परियोजना से जुड़े विभिन्न समूहों से बेहतर कौन जान सकता है। असल में शासन ने प्रदेश के आंगनबाड़ी केंद्रों में दिए जाने वाले टेक-होम राशन की सूची में संशोधन कर कोदा (मंडुवा) और झंगोरा के साथ ही गहथ और काला भट जैसी स्थानीय दालों को अनिवार्य कर दिया है। यही आदेश अब योजना के संचालन में गले की फांस बन रहा है। तमाम प्रयासों के बावजूद समूह पर्याप्त मात्रा में इन उत्पादों का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं।

उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में मंडुआ, कोदो, भट और गहत जैसी फसल आज अंतिम साँस ले रही है। उत्तराखण्ड मे बागवानी, बे-मौसमी सब्जियों, फूलों की खेती, औषधीय और सुगंधित पौधों की फसलों की आपर संभावनाएं है बंजर और उबड-खाबड़ भूमि आड़ू, नाशपाती और खुमानी जैसे फलों के लिए समर्पित हैं।

इन तमाम चीजों को ध्यान में रखते हुए कुछ संगठनों ने पहाड़ के लोगों को आधुनिक खेती की तरफ आकर्षित करने की शुरूआत की ताकि किसी भी हाल में पहाड़ के उत्पादों को बचाया जा सकें। इस कड़ी में “राष्ट्रीय उत्तरखण्ड सभा भारत” द्वारा राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में आधुनिक कृषि उपकरणों के बारे में ग्रामीणों को जानकारी दी गई। ताकि पहाड़ पर खेती की मात्रा को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सकें।

राष्ट्रीय उत्तराखंड सभा भारत के तत्वाधान में कृषि, स्वरोज़गार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर आधारित बहुउद्देशीय सुविधा शिविर तथा सांस्कृतिक मेले का आयोजन 12 मई 2019 को यमकेश्वर, जिला पौड़ी गढ़वाल में आयोजित किया गया। शिविर में कृषि एवं रोजगार के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले सुधीर सुंदरियाल, देवेश आदमी, दीपक ध्यानी,  विक्रम सिंह रावत, गंगा कार्की,  आशीष डबराल, प्रियंका असवाल एवं अनूप पटवाल को उत्तम किसान सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मानित बुद्विजीवियों एवं कृषि विशेषज्ञों ने आधुनिक कृषि एवं स्वरोज़गार विषय पर अपने अनुभवों तथा उनके द्वारा इस क्षेत्र में किए जा रहे कार्यो की जानकारी दी गयी। इस मौके पर कृषि के लिए उपयोगी खेत जोतने वाली मशीन का प्रदर्शन भी किया गया। कार्यक्रम में प्राइमरी तथा आंगनबाड़ी स्कूल के बच्चों को शिक्षण सामग्री भी वितरित की गयी।

इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप कार्यक्रम में मौजूद स्थानीय विधायक ऋतू खंडूड़ी ने कहा कि आज के समय में आधुनिक खेती के माध्मय से पहाड़ में खेती को बचाने की बहुत आवश्यकता है। इस दिशा में सरकार निरंतर प्रयासरत है। शुरुआती दौर में टेक-होम राशन में कोदा-झंगोरा जैसे उत्पाद नहीं थे, लेकिन अब शासन ने कोदा-झंगोरा के साथ ही गहथ और काला भट जैसी स्थानीय दालों को भी टेक-होम राशन में अनिवार्य कर दिया है। पिछले दिनों शासन की ओर से इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिया गया। मुझे लगता हैं कि इससे हम पहाड़ के उत्पादों को बचा भी सकते है और अपने उत्पादों के लिए बाजार भी बना सकते है।rashtriya-uttarakhand-sabha

कार्यक्रम में “राष्ट्रीय उत्तरखण्ड सभा भारत” के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद नौटियाल,  मुख्य संयोजक डॉ. बिहारी लाल जालंधरी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष  ज्ञान देव घनसाली, महासचिव संजीव नेगी, कोषाध्यक्ष राम प्रसाद सुण्डली, सह सचिव सुनील जोशी, निरीक्षक दलबीर पुंडीर, उप कोषाध्यक्ष डॉ. संदीप नेगी, युवा प्रकोष्ठ अध्यक्ष कुलदीप रावत, ट्राई सिटी चंडीगढ़ प्रदेश अध्यक्ष जगदीश असवाल, महासचिव भारत सिंह नेगी, पंजाब प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप नेगी ,युवा प्रकोष्ठ अध्यक्ष अशोक नेगी, उत्तर प्रदेश अध्यक्ष यशवंत सिंह चौहान, कोषाध्यक्ष वीरेन्द्र नेगी जैसे लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये और सभी ने एक मत में कहा कि सरकारी सिस्टम की अदूरदर्शिता देखिए कि जिन उत्पादों को पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान उपयोग में लाया जाता है, सरकारी अधिकारी आंगनबाड़ी केंद्रों में उनका वितरण गर्मियों में करवा रहे हैं। कोदा, झंगोरा, गहथ और काला भट ऐसे उत्पाद हैं, जिनकी तासीर (प्रकृति) गरम होती है और सर्दियों के मौसम में इनके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है। ऐसे में गर्मियों के दौरान इनका सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। इसलिए प्रशासन को इस बात पर विचार करना चाहिए।

वक्ताओं ने कहा कि पौड़ी जिले में पलायन की मार सीधे खेतों पर पड़ रही है और बड़े पैमाने पर खेत बंजर हो चले है। गांवों में रह रहे काश्तकारों ने जंगली जानवरों के आतंक से त्रस्त होकर खेती छोड़ दी है। आलम यह है कि ग्रामीणों को स्वयं की जरूरत लिए भी पहाड़ी उत्पाद मिलना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में बड़ी मात्रा में इन उत्पादों की व्यवस्था करना परियोजना से जुड़ी समितियों के चुनौती बन गया है। इस पर जब तक प्रशासन द्वारा धरातल पर काम नहीं होगा तब तक कैसे पहाड़ पर खेत और पहाड़ी उत्पाद बचाए जा सकते है।

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