अहोई अष्टमी 2021: इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर को रखना शास्त्र सम्मत है, बृहस्पतिवार और पुष्य नक्षत्र होने से व्रत की महत्ता कई गुना बढ़ गई है। अहोई अष्टमी का व्रत संतान प्राप्ति, उसकी लंबी आयु और खुशहाली के लिए रखा जाता है। माताएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना को लेकर व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी पर्व करवाचौथ पर्व के चार दिन बाद आता है। मान्यता है कि माता अहोई की पूजा-अर्चना से कई बिगड़े काम पूरे हो जाते हैं।
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि यद्यपि 28 अक्टूबर को प्रातः काल से सप्तमी तिथि है जो दोपहर 12:49 तक रहेगी उसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी। निर्णय सिंधु के अनुसार शुक्ल पक्ष में अष्टमी का व्रत नवमी युक्त तथा कृष्ण पक्ष में सप्तमी युक्त लिया जाता है और अहोई अष्टमी का संबंध विशेष रुप से तारों से है जिस स्थिति में तारे उदय हो रहे हो उसी तिथि को व्रत होता है और उस दिन अष्टमी तिथि में तारों का उदय हो रहा है इसलिए व्रत 28 तारीख को ही रखा जाएगा।
पूजा की विधि
आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल विश्लेषण करते हुए बताते हैं की अष्टमी तिथि 29 तारीख को दोपहर 2:11 तक रहेगी। 28 तारीख को सुबह से पुनर्वसु नक्षत्र 9:39 तक है उसके बाद ज्योतिष शास्त्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण पुष्य नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा जो 29 तारीख को प्रातः 11:38 तक रहेगा। बृहस्पतिवार भी और पुष्य नक्षत्र भी एक साथ होना बहुत बड़ा संयोग है। इसलिए मातृशक्ति को चाहिए कि 28 तारीख को प्रातः काल स्नान कर माता पार्वती और भगवान शिव सहित पूरे शिव परिवार का पूजन करें सायंकाल तारों को दूध फूल का अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारायण करें। इस व्रत में मुख्य रूप से मां पार्वती की पूजा की जाती है। मां पार्वती के साथ ही मां स्याऊ की भी पूजा करनी चाहिए। अहोई माता की पूजा से पहले दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाकर या बाजार से खरीदे चित्र को सामने रखकर, उनके सामने जल से भरा एक कलश रखें। रोली-चावल से माता की पूजा करें। वहीं माता को श्रद्धापूर्वक भोग लगाएं। कलश पर स्वास्तिक बनाने के साथ-साथ गेहूं के सात दाने लें, इसके बाद अहोई माता की कथा सुनें।
मुख्यमंत्री द्वारा ज्योतिष रत्न ज्योतिष विभूषण और ज्योतिष वैज्ञानिक संस्कृत गौरव जैसे सम्मान से सम्मानित डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल का कहना है कि जिन स्त्रियों को विवाह के कुछ वर्ष बाद भी संतान की प्राप्ति अभी तक नहीं हुई है, वह भी इस दिन श्रद्धा से यदि व्रत रखें तो उन्हें भी संतान की प्राप्ति होगी। और जिनकी संतान है उनकी संतान को दीर्घायु एवं सर्वत्र यश और सम्मान की प्राप्ति इस व्रत से होती है। आचार्य ने यह भी बताया कि इस व्रत में कोई विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। सामान्य रूप से निराहार रहकर देवी का ध्यान करते हुए व्रत रखने से ही फल की प्राप्ति हो जाती है।
आचार्य का परिचय
नाम-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
पब्लिक सर्विस कमीशन उत्तराखंड से चयनित प्रवक्ता संस्कृत।
निवास स्थान- 56 / 1 धर्मपुर देहरादून, उत्तराखंड। कैंप कार्यालय मकान नंबर सी 800 आईडीपीएल कॉलोनी वीरभद्र ऋषिकेश
मोबाइल नंबर-9411153845