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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। गांधी जी के सपनों का भारत बनाने के लिए हमें उनके सिद्धान्तों पर चलना होगा। 2 अक्टूबर को उनकी जयंती अहिंसा दिवस के रूप में मनाते हुए हमें उनके आदर्शों पर चलने के लिए संकल्पित होना होगा। गांधी के विचार विश्व के लिए इसलिए भी प्रासंगिक हैं क्योंकि उन विचारों को उन्होंने स्वयं अपने आचरण में ढालकर सिद्ध किया। उन विचारों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर जांचा-परखा। अहिंसा दिवस 2 अक्टूबर पर सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है डॉ. सुनील संचय का विशेष आलेख:

महात्मा गांधी को हमारे देश की आज़ादी में उच्चतम योगदान की वजह से उन्हें “राष्ट्रपिता या बापू ” के रूप में जाना जाता है। 2 अक्टूबर यानी महात्मा ग़ांधी जी का जन्म दिवस। गांधी जी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रूप में  मनाया जाता है। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस स्थापित करने के लिए मतदान हुआ।महासभा में सभी सदस्यों ने 2 अक्टूबर को इस रूप में स्वीकार किया। महात्मा गांधी को पूरा देश बापू के नाम से जानता है। बापू का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने आजीवन अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाई।  उन्होंने अपना सारा जीवन देश सेवा में लगा दिया। ये वो हैं जिन्होंने अहिंसा और लोगों की एकता में विश्वास किया और भारतीय राजनीति में आध्यात्मिकता लायी। उन्होंने भारतीय समाज से छुआछूत को हटाने के लिए, भारत में पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए, सामाजिक विकास के लिए गांवों का विकास करने के लिए आवाज उठाई, भारतीय लोगों को स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया और अन्य सामाजिक मुद्दों के लिए कठिन प्रयास किये। उन्होंने आम लोगों को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए सामने लाया और उनकी सच्ची स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए उन्हें प्रेरित किया।

गांधी जी मानते थे कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर सब कुछ हासिल किया जा सकता है। महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्तित्व थे ,जिनके विचारों ने पूरी दुनिया को शान्ति ,सद्भाव और अहिंसा का पाठ पढ़ाया| विश्व में ऐसे कई महान लोग हुए जो गांधीजी के विचारों से बेहद प्रभावित हुए| समाज की भावनाओं का आदर करते हुए भारत के आदर्श समाज की कल्पना करने वाले समाज सुधारक, राष्ट्रचिंतक एंव दार्शनिक महात्मा गाँधी जी के लिये अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र था। गाँधी जी के अनुसार-अहिंसा वो मुख्य तत्व है जिसने सम्पूर्ण मानवता को प्रेम और आत्मशुद्धी की सहायता से कठिन से कठिन संकटों में सफलता पाने का संदेश दिया है। गाँधी जी अहिंसा को सर्वोच्च नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानते थे। उनके अनुसार तो अहिंसा केवल दर्शन नही है बल्की कार्य करने की पद्धति है, ह्रदय परिवर्तन का साधन है। गाँधी जी ने तो अहिंसा की भावना को सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक तीनो क्षेत्रों के लिये आवश्यक तत्व माना है। अहिंसा पर गांधी जी ने बड़ा सूक्ष्म विचार किया है।  वे लिखते हैं, “अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है।  मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है।  लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।

अहिंसा को हिंदु, जैन, बौद्ध, व अन्य धर्मों में मानवीय क्रियाओं का आधार माना गया है। अहिंसा की शिक्षा तो भारतीय संस्कृति की पहचान है। उपनिषदों में भी अहिंसा को विशेष महत्व दिया गया है। जैन धर्म में अहिंसा परमो धर्मः के रूप में एक महान धर्म माना गया है। अहिंसा की सबसे सूक्ष्म विवेचना जैनधर्म में कई गयी है। गांधी जी ने भी अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया।

गाँधी जी का अटूट विश्वास था कि, अन्याय और अत्याचार का मुकाबला हिंसा से नही बल्की प्रेम, दया, करुणा, त्याग और सत्य से किया जा सकता है। अहिंसा सिर्फ एक उपदेश नही है बल्कि जीवन का क्रियात्मक सिद्धांत है। विश्वशांति, सामाजिक व्यवस्था तथा व्यक्तिगत जीवन संघठन के लिये एक ब्रह्मास्त्र है जिसका प्रयोग परिस्थिती जन्य है एवं आज की प्रासंगिता भी है। दरअसल सर्वधर्म सम्भाव की जीती जागती तस्वीर समझे जाने वाले गांधी जी मानते थे कि हिंसा की बात चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न की जाए, परन्तु वास्तविकता यही है कि हिंसा किसी भी समस्या का सम्पूर्ण एवं स्थायी समाधान कतई नहीं है। जिस प्रकार आज के दौर में आतंकवाद व हिंसा विश्व स्तर पर अपने चरम पर दिखाई दे रही है तथा चारों ओर गांधी के आदर्शों की प्रासंगिकता की चर्चा छिड़ी हुई है, ठीक उसी प्रकार गांधीजी भी अहिंसा की बात उस समय करते थे जबकि हिंसा अपने चरम पर होती थी।

गांधी जी शरीर के दुबले-पतले लेकिन आत्मा के महान, शरीर पर कपड़े के नाम पर एक धोती लेकिन दिल के धनी, अपनी बात पर अड़ने वाले परंतु अहिंसा के पुजारी, उनके इन्हीं गुणों के कारण भारत के साथ-साथ पूरा संसार उनके समक्ष नतमस्तक हो गया।

1947 में देश तो आजाद हुआ परंतु भारत के दो टुकड़े हो गए। राम के पुजारी और गीता के उपासक का जब अंतिम समय आया तो उनके मुंह से ‘हे राम’ निकला। बिना किसी हथियार के देश को आजादी दिलाने वाले साबरमती के इस संत के बारे में कहा जाता है-

‘‘दे दी हमें आजादी बिना खडग़ बिना ढाल,

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’’

गांधी जी से प्रभावित होकर प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईन-सरोन को यह कहना पड़ा था, ‘‘पीढिय़ां आएंगी और उन्हें यह विश्वास नहीं होगा कि गांधी जी जैसे सादे व्यक्ति ने खून की एक बूंद गिराए बिना ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला दीं।’’ ऐसे व्यक्ति का जीवन साधना,  त्याग,  बलिदान और तपस्या की प्रतिमूर्ति के रूप में आज भी जनमानस के हृदय में सजीव है।

गांधी का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अप्रितम योगदान था। महात्मा गांधी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे अत्यंत धार्मिक भी थे और साथ में एक सिद्धहस्त राजनेता भी। वे एक क्रांतिकारी भी थे और समाज सुधारक भी। वे विरोधाभासी और कठिन परिस्थितियों में से भी एक ऐसा रास्ता निकालने में सक्षम थे जो दुनिया को करूणा और प्रेम की राह पर ले जाता है। गाँधी केवल इस युग के महान व्यक्ति नहीं थे अपितु उनका स्थान इतिहास के उन समादरणीय महापुरुषों में है जिन्होंने अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं आदर्शवादिता से सम्पूर्ण मानवता को प्रेरित किया।डॉ धीरेन्द्र मोहन दत्त ने ठीक ही लिखा है कि- ‘आस्था एवं संकल्प के कारण गाँधी जी एक साधारण व्यक्ति से कोटि-कोटि लोगों के मसीहा बन गये। सत्य और अहिंसा के माध्यम से उन्होंने जो कुछ किया वह सब आधुनिक युग में चमत्कार जैसा लगता है। उनके सुन्दर किन्तु अपूर्ण कार्यों को पूर्ण करने की जिम्मेवारी विश्व के सभी स्त्री-पुरुष पर और विशेष कर पौरूष और अभिक्रम से पूर्ण विश्व की युवा पीढ़ी पर है, जो विश्व का नैतिक नेतृत्व कर सके। बापू जी ने विश्व को शोषण तथा अत्याचार के खिलाफ संगठित रहकर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और सामाजिक समरसता के मार्ग पर चलना सिखाया। हमें चाहिए कि हम  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों का अनुसरण  करते हुए उनका स्वच्छता का सिद्धान्त अपनाएं और अपने घर मोहल्ले व शहर को साफ-सुथरा बनाएं।

गांधीवाद, अहिंसा और सत्याग्रह पर टिका है जो चार उपसिद्धांतों सत्य, प्रेम, अनुशासन एवं न्याय पर आधारित है, जिनकी उपादेयता एवं प्रासंगिकता, वैश्वीकरण के वर्तमान हिंसक दौर में और बढ़ जाती है। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने गांधी जी की जन्म तिथि 2 अक्टूबर को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में स्वीकार कर मान्यता प्रदान की है। वैश्विक स्तर पर व्याप्त हिंसा, मतभेद, बेरोजगारी, महंगाई तथा तनावपूर्ण वातावरण में आज बार-बार यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि गांधी के सत्य व अहिंसा पर आधारित दर्शन और विचारों की आज कितनी प्रासंगिकता महसूस की जा रही है।

आज हम गांधी जयंती, पर ‘महात्मा गांधी की जय’ का नारा तो लगाते हैं, लेकिन उनके द्वारा बताये गए सिद्धांतों पर चलना नहीं चाहते। शायद यही वजह है कि आज का मानव पहले से ज्यादा परेशान दिखाई देता है। आज हर तरफ असत्य, हिंसा, फरेब का बोलबाला है। अगर आज गांधी जी हम लोगों के बीच जीवित होते तो आज के भारत की दशा देखकर उन्हें बेहद निराशा होती। ऐसे समय में जब पूरे विश्व में हिंसा का बोलबाला है, राष्ट्र आपस में उलझ रहे हैं, मानवता खतरे में है, गरीबी, भूखमरी और कुपोषण लोगों को लील रहा है तो गांधी के विचार प्रासंगिक हो जाते हैं. अब विश्व महसूस भी करने लगा है कि गांधी के बताए रास्ते पर चलकर ही विश्व को हिंसा,द्वेष और प्रतिहिंसा से बचाया जा सकता है। गांधी जी के विचार विश्व के लिए इसलिए भी प्रासंगिक हैं कि उन विचारों को उन्होंने स्वयं अपने आचरण में ढालकर सिद्ध किया। उन विचारों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर जांचा-परखा।

यकीनन गांधी के सिद्धान्तों पर चलकर ही भारत को गांधी के सपनों का भारत बनाया जा सकता है। गांधी जी हम सब के बीच सदैव प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे। गांधी जयंती पर अहिंसा दिवस मनाते हुए हमें गांधी जी के पदचिन्हों पर चलने के लिए संकलित होना होगा, तभी इसको मनाने की सार्थकता है।

आज बेशक गांधी जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज भी उनकी शिक्षाएं हमारे जीवन में खास महत्व रखती हैं। गांधी जयंती पर हम आजीवन गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने का प्रण लें।

डॉ. सुनील जैन संचय