Banshidhar-Bhagat-statement

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कालाढूंगी विधायक बंशीधर भगत ने एक दिन पूर्व देवी-देवताओं पर दिए अपने विवादित बयान पर माफी मांगी है। पूर्व कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत ने बालिका दिवस पर देवी-देवताओं को लेकर दिए बयान पर खेद जताते हुए कहा कि उन्होंने महिला शक्ति को लेकर महिलाओं को देवी की उपाधि देते हुए बयान दिया था। उनके बयान के दूसरे मायने नहीं लगाए जाने चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को उनके बयान से ठेस पहुंची है तो इसके लिए वह जनता से क्षमा मांगते हैं।

क्या था पूरा मामला

दरसल बीते मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय बालिक दिवस पर रामपुर रोड पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। जिसमें मुख्य अतिथि महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य भी मौजूद थीं। इस दौरान भाजपा विधायक बंशीधर भगत ने अपने संबोधन में महिलाओं की ओर से इशारा करते हुए कहा था कि भगवान ने आपकी ही सुनी है। विद्या चाहिए तो सरस्वती को पटाओ,  बल व शक्ति चाहिए तो दुर्गा को को पटाओ और धन चाहिए तो लक्ष्मी को पटाओ। भगवान शिव को लेकर उन्होंने कहा कि आदमी के पास है ही क्या? एक शिव जी हैं, वह भी पहाड़ में पड़े हुए हैं। कपड़े कुछ हैं नहीं, सिर पर सांप रखा है। एक विष्णु भगवान हैं, जो समुद्र में रहते हैं। दोनों की आपस में बात भी नहीं होती है। महिला सशक्तीकरण तो पहले से ही है।

उनका यह बयान सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद चर्चा का विषय बन गया। विधायक के अटपटे बोल को लेकर उनकी आलोचना की जाने लगी। कांग्रेस ने उत्तराखंड में बीजेपी के विधायक बंशीधर भगत पर हाल में हिंदू देवी-देवताओं पर की गई उनकी टिप्पणी से धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया है। साधु-संतों के एक समूह ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी उत्तराखंड के पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भगत के खिलाफ उनकी टिप्पणी के मामले में कार्रवाई करने की अपील की है।

बुधवार को देवलचौड़ स्थिति एक रेस्टोरेंट में प्रेस कान्फ्रेंस में बंशीधर भगत ने कहा कि मेरा आशय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने या मनाने से था। जैसे कि मैं कई बार घर पर भी पूजा करते समय बोल देता हूं कि देवी-देवताओं को पटा रहा हूं, मना रहा हूं, खुश कर रहा हूं। इसमें मेरा इरादा बिल्कुल भी गलत नहीं था। फिर भी किसी को लगता है कि मैंने गलत बोल दिया है तो विनम्रतापूर्वक शब्द वापस लेता हूं और माफी मांगता हूं। लेकिन, मैंने किसी की भावना को ठोस पहुंचाने के लिए ऐसा नहीं बोला था।