Chhath Puja, a great festival of public faith, begins in Bihar from today

छठ पूजा: आज से बिहार में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा शुरू हो चुकी है। इस महापर्व को मनाने के लिए अन्य राज्यों में रह रहे लाखों लोग अपने घर लौट आए हैं। ‌‌ हालांकि यह महापर्व बिहार के साथ कई राज्यों में भी मनाया जाता है। छठ पूजा दीपावली के बाद से छठ पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है। यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है इसमें व्रती महिलाएं लगातार 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्य देव की उपासना और छठ मैया की पूजा करते संतान की प्राप्ति और उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाए खाए किया जाता है।

छठ पर्व की शुरुआत शुक्रवार से हो रही है। नहाए खाए के दिन महिलाएं घर की साफ-सफाई करती हैं। घर में चने की दाल, लौकी की सब्जी और भात प्रसाद के रूप में बनता है। इस भोजन में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। 4 दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के महापर्व छठ के बारे में अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोग भी जानते हैं। आधुनिकता की दौड़ में शायद यही वो त्योहार है जो जरा भी नहीं बदला, शायद इसलिए ही इसे महापर्व कहा जाता है। इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की भी पूजा-उपासना विधि-विधान के साथ की जाती है। छठी माई को सूर्यदेव की बहन है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का त्योहार व्रत संतान प्राप्ति करने की कामना, कुशलता,सुख-समृद्धि और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा, व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है। इस साल छठ पूजा का महापर्व 28 अक्टूबर 2022 से शुरू हो रहा है। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस साल ये पर्व 28 अक्टूबर से शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा।

इस महापर्व की शुरुआत आज नहाय खाय होगी। 29 अक्टूबर को खरना होगा। 30 अक्टूबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन किया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया,जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया । इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य,सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। नवरात्रि पर षष्ठी तिथि को इनकी पूजा की जाती है।