उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध गढ़वाली लोकगायक जगदीश बकरोला का आज तड़के नई दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया है। उनके निधन की खबर से उत्तराखंड संगीत जगत में शोक की लहर है। जगदीश बकरोला मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के विकासखंड कल्जीखाल के अंतर्गत अस्वालस्यूं पट्टी के ग्राम बकरोली के निवासी थे। अपने गांव बकरोली के नाम पर ही उन्होंने अपना उपनाम बकरोला रखा।

बतादें कि 80 के दशक में गढ़वाली लोक संगीत के क्षेत्र अपने लोकगीतों से धूम मचाने वाले जगदीश बकरोला एक दृष्टिविहीन कलाकार थे। मात्र ढाई साल की उम्र में उनकी दोनों आँखों की रौशनी चली गयी थी। जगदीश बकरोला ने गीत-संगीत की शिक्षा बचपन में गांव में लगने वाले मेलों, रामलीला और स्कूल के कार्यक्रमों में गाने वाले लोगों को सुनकर ली। जिसके बाद इस महान कलाकार ने उत्तराखंडी लोक-संगीत को एक नया रूप दिया। एक समय जगदीश बकरोला और लोक गायिका सुनीता बेलवाल की युगल प्रस्तुतियों ने पहाड़ के हर संगीत प्रेमी को अपने गीतों का दीवाना बना दिया था।

जगदीश बकरोला के नाम सबसे ज्यादा गढ़वाली गीत ऑडियो रिकॉर्ड है। उनके सुपरहिट गीतों की बात करें तो सनका बांद, बौ हे सतपुली का सैणा मेरी बौऊ सुरीला, लाला मंसारामा तक चीनी भी रईं चा, अंग्रेजी बुलबुल, मि छौ मिलटरी कु छोरा, मेरी बौऊ सुशीला बौजी मिन कॉथिग जाणा या, सड़की तीर को छै घसेरी, सतपुली बाजार क्यो आन्दी मेरी ब्वारी गौमती हे या, कुछ न पूछ द्यूरा मिथै जुखाम लग्यूचा आदि सैकड़ों सुपरहिट गीत हैं। बकरोला जी ने अपने नजदीकी बाजार सतपुली पर कई गीत लिखे और गाये हैं।

64 वर्षीय लोक गायक जगदीश बकरोला के निधन पर तमाम संगीत प्रेमियों ने गहरा दुःख व्यक्त किया है। उत्तराखंड लोक-संगीत जगत में लोक गायक जगदीश बकरोला का योगदान सदैव याद रखा जायेगा। देवभूमि संवाद की ओर से जगदीश बकरोला जी को विनम्र श्रद्धांजलि।