श्रीनगर गढ़वाल : दीपावली के 14 दिन बाद कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी पर श्रीनगर गढ़वाल के पौराणिक कमलेश्वर महादेव मंदिर मे संतान प्राप्ति के लिए किये जाने वाला ‘खड़ दीया’ अनुष्ठान आज विधि-विधान एवं प्राचीन मान्यताओं के साथ आयोजित किया गया। बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर संतान प्राप्ति के लिए सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में 191 दंपति ‘खड़ दिया’ अनुष्ठान में शामिल हुए। मंगलवार शाम को गोधूलि बेला से अनुष्ठान शुरू हुआ। अनुष्ठान के लिए 235 से अधिक दंपतियों ने पंजीकरण करवाया था. हालाँकि 191 दंपति ही अनुष्ठान में शामिल हुए।
मंगलवार शाम गोधुलि बेला (सांय 5 बजकर 30 मिनट) पर कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने दीपक जलाकर खड़ा दीया अनुष्ठान का शुभारंभ किया। महिलाओं के कमर में एक कपड़े में जुड़वा नींबू, श्रीफल, पंचमेवा एवं चावल की पोटली बांधी गई। तत्पश्चात महंत ने सभी दंपतियों के हाथ में दीपक रखते हुए पूजा-अर्चना की।
दंपति रातभर हाथ में जलते दीपक लेकर भगवान भगवान शिव की पूजा करेंगे। बुधवार सुबह स्नान के बाद महंत दंपतियों को आशीर्वाद देकर पूजा संपन्न करेंगे। ऐसा विश्वास है कि खड़ा दीया अनुष्ठान करने से संतान प्राप्ति होती है। अनुष्ठान में शामिल होने के लिए उत्तराखंड के अलावा अमरिका, नोएडा, गाजियाबाद,दिल्ली, बंगलौर,चंडीगढ़, महाराष्ट्र,राजस्थान सहित विभिन्न प्रांतों से यहां दंपति पहुंचे हैं।
क्या है मान्यता और कैसे पड़ा कमलेश्वर नाम
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार देवासुर संग्राम के दौरान जब देवता दानवों से पराजित हो गए, तब भगवान विष्णु दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ पर भगवान शिव की तपस्या करने आए। पूजा के दौरान वह शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण कर सहस्र (एक हजार) कमलों को एक-एक करके शिवलिंग पर चढ़ाने लगे। विष्णु की परीक्षा लेने के लिए शिव ने एक कमल पुष्प छुपा लिया। एक कमल पुष्प कम होने से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इससे भगवान विष्णु चिंतित हुए, फिर उन्हें ध्यान आया कि उन्हें कमल नयन नाम से भी पुकारा जाता है, यही सोचकर विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर यज्ञ में अर्पित करने का संकल्प लिया। इससे प्रसन्न होकर शिव ने भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया। जिससे विष्णु ने राक्षसों का विनाश किया। सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा। इस पूजा को एक निसंतान दंपति देख रहे थे। मां पर्वती के अनुरोध पर शिव ने उन्हे संतान प्राप्ति का वर दिया। तब से यहां कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) की रात संतान की मनोकामना लेकर लोग पहुंचते हैं।


