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महाशिवरात्रि 2021: भारतीय सँस्कृति की अपनी अनूठी विशेषता है कि यहाँ के प्रत्येक महीने मेँ किसी न किसी न किसी पर्व को मनाने का विवरण मिलता है। इसी कारण हमारे देश को त्योहारोँ का देश कहा जाता है। यहाँ मुख्य रुप से मकर संक्रांति, बसंत पंचमी, महा शिवरात्रि, होली, वैशाखी, नवरात्रे, दशहरा, दीपावली, ईद, क्रिसमस आदि त्योहारोँ की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। इन सभी त्योहारोँ मेँ शिवरात्रि का पर्व अपने आप मेँ कल्याण कारी मार्ग प्रशस्त करता है।

हिन्दू पँचाग के अनुसार यह त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। वैसे तो सामान्यतः प्रत्येक मास मेँ शिवरात्रि आती है, लेकिन यह पर्व महा शिवरात्रि के रुप मेँ उदघटित होने के कारण इसका महत्व बढ जाता है। इस वर्ष यह पुनीत त्योहार ग्यारह मार्च को है। इस दिन महत्वपूर्ण प्रभावकारी योग बन रहा है। जो शिवयोग के निहितार्थ को उजागर करता है।

महाशिवरात्रि के पूजन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार से है.

पूजा का समय 11मार्च रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक प्रथम प्रहर,11 मार्च साँय 6 बजकर 27 मिनट से 9 बजकर 29 मिनट तक दूसरा प्रहर, रात 9 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक तीसरा प्रहर, रात 12 बजकर 31मिनट से 03 बजकर 32 मिनट तक चौथा प्रहर, 12 मार्च सुबह 3 बजकर 32 मिनट तक महा शिवरात्रि परायण मुहूर्त है।

शंकर भगवान को भाँग सबसे अधिक प्रिय है। भक्तो को चाहिये कि भाँग को दूध मेँ मिलाकर 11सौ बार ऊ नम: शिवाय का जाप करते हुये शिव लिँग पर चढायेँ। धतूरा व गन्ने का रस शिवजी को अर्पित करेँ। गँगा जल शिव भगवान पर चढाये। ऐसा करने से भक्तोँ की मनोकामना तत्काल पूर्ण हो जाती है। अलोकिक शक्ति का सँचार होने लगता है।

शिव भगवान को कल्याण, मंगल, महादेव, शंकर आदि अनेक नामोँ से जाना जाता है। शिव भगवान की अराधना करने से कल्याण कारी भावना का प्रकटीकरण होने लगता है। जैसा कि हम जानते हैं कि भगवान शिव को अत्यन्त दयालू माना जाता है। सामान्य नाम का उच्चारण करने मात्र से भक्तोँ का कल्याण हो जाता है।

शिव मेँ शि ध्वनि का अर्थ ऊर्जा का प्रतीक है।। इस आधार पर केवल शि का ही प्रयोग करेँगे तो असन्तुलन की स्थिति आ जाती है। दूसरा व शब्द है। जिसका अर्थ वाम से लिया गया है। जो प्रवीणता के भाव को स्पष्ट करता है। इस प्रकार शिव नाम मेँ एक शव्द ऊर्जा देता है। दूसरा उसे नियन्त्रित करता है।

विद्येश्वर सँहिता मेँ शिव भगवान की महिमा का गुणगान इस प्रकार से किया गया है, वे धन्य हैं और कृतार्थ हैं। उन्ही का शरीर धारण करना भी सफल है और उन्होँने ही अपने कुल का उद्वार कर लिया। जो शिव की उपासना करते हैं। शिव का नाम विभूति, भस्म तथा रूद्राक्ष ये तीनोँ त्रिवेणी के समान परम पुण्य काल माने गये हैं। भगवान शिव का नाम गँगा है। विभूति यमुना मानी ग्ई है। रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है। इन तीनोँ की सँयुक्त त्रिवेणी समस्त पापोँ का नाश करने वाली है।

सम्पूर्ण वेदोँ का अवलोकन करके पूर्ववर्ती महर्षियोँ ने यही निश्चित किया है कि भगवान शिव के नाम का जाप सँसार सागर को पार करने का सर्वोत्तम उपाय है। शिवरात्रि के विषय मेँ यह माना जाता है कि भगवान शंकर रुद्र के रुप मेँ प्रजापिता व्रह्मा के शरीर से अवतरित हुये। इनका तीसरा नेत्र प्रलयकारी है। इस स्थिति मेँ तान्डव करते हुये सृष्टि का विनाश करते हैं। इस दिन शिव शक्ति का भी परस्पर मिलन माना जाता है।अर्थात माता पार्वती व शिव भगवान का विवाह माना जाता है। इस प्रकार शिव रात्रि का अर्थ यह हुआ कि जिसका शिव तत्व के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है। भगवान शंकर भी इस रात्रि से असीम स्नेह करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि मेँ चन्द्रमा का शिवरुपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। इस पर्व पर शिव की पूजा करने से सम्पूर्ण मनोकामनाये पूर्ण हो जाती है। शिव भगवान को निराकार निर्गुण परम तत्व के रुप मेँ माना जाता है। यही परम निर्गुण स्वरुप शिवरात्रि के दिन सगुण साकार के रुप मेँ अवतरित हो जाता है।यही अवतरण की रात्रि महाशिव रात्रि कहलाती है।

शिवरात्रि मनाने का कारण यह भी है कि रात्रि को तमोगुण का प्रतीक माना जाता है। शिव शक्ति का यह स्वरुप है जिसके सामने कोई वस्तु नहीँ टिक सकती है। यह रात्रि मनुष्य के अन्दर की सम्पूर्ण तामसिक वृत्तियोँ को समाप्त कर देती है।

शिवरात्रि के व्रत मेँ शिव की पूजा करने के लिये फल, पुष्प, गन्ध, चन्दन, विल्व पत्र, धतूरा, धूप, दीप, नैवेद्य आदि की आवश्यकता होती है। दूध, दही, घी, शहद, चीनी मिलाकर पन्चामृत से शिव भगवान का स्नान कर जलधारा से अभिषेक करना चाहिये। अपनी श्रद्धा नुसार,,,ऊँ नम:शिवाय,,, का जप करके ही भगवान शिव की आरती तथा परिक्रमा करनी चाहिये। अन्त मेँ निश्चल हृदय से इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिये “हे महादेव-मैँने जो ब्रत लिया है। हे स्वामिन-वह ब्रत पूर्ण हो गया है। अत: अब उसका विसर्जन करता हूँ”। हे देवेश्वर आप मुझ पर कृपा करके सँतुष्ट होँ।

महाशिव रात्रि का व्रत लेने से व्यक्ति सम्पूर्ण पापोँ से मुक्त हो जाता है। जीवन मेँ सुख समृद्वि की वृद्धि होने लगती है। अन्धकार समाप्त हो जाता है। सभी मनो कामनायेँ पूर्ण हो जाती हैं। अत: कल्याण के इच्छुक सभी मनुष्योँ को यह ब्रत जरुर लेना चाहिये।

लेखक : अखिलेश चन्द्र चमोला।

स्वर्ण पदक प्राप्त, विभिन्न राष्टीय सम्मानो पाधियोँ से सम्मानित, हिंदी अध्यापक