नई दिल्ली: उतराखण्ड राज्य में यूँ तो अलग-अलग क्षेत्रों में कुल 14 बोलियां (गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी, बंगाणी, जाड़, जौहारी, जौनपुरी, मार्च्छा, थारू, बोक्साड़ी, राजी, रंल्वू, रवांल्टी, कौरवी) बोली जाती हैं। परन्तु bतक उत्तराखंड की अपनी प्रतिनिधि भाषा नहीं है। उतराखण्ड में एक प्रतिनिधि भाषा के लिए शासकीय संरक्षण में काम हो, इस उद्देश्य का प्रस्ताव के साथ उतराखण्डी भाषा प्रसार समिति के प्रतिनिधि मंडल ने उत्तराखण्ड के तीन सांसदों से भेंट की। सबसे पहले गढ़वाल के सांसद तीरथ सिंह रावत से मुलाकात की और उनसे प्रतिनिधि भाषा पर विमर्श किया गया। सांसद रावत ने स्वीकार किया कि इस विषय पर राज्य गठन के बाद ही कार्य आरंभ हो जाना चाहिए था, परंतु हमारे साहित्यकार, समाज सेवी केवल अपनी-अपनी भाषाओं की बात ही करते रहे। इस तरह का ठोस प्रस्ताव बहुत पहले आता तो अभी तक समग्र उतराखण्ड को जोड़ने वाली प्रतिष्ठित भाषा का प्रारूप सबके सामने होता। हम इस प्रस्ताव पर शासन में विमर्श करेंगे। उन्होंने इस विषय में एक संस्तुति पत्र बनवाकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भेज दिया है, जिसकी प्रतिलिपि प्रतिनिधि मंडल को दी गयी।
उसके बाद प्रतिनिधि मंडल ने राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी से बीजेपी कार्यालय में मुलाकात की। बलूनी ने उत्तराखण्ड की सभी 14 बोलियों के संरक्षण संवर्धन की बात की। उन्होंने कहा कि प्रतिनिधि भाषा पर बिना शोध के काम कैसे संपन्न होगा। उन्होंने कहा हम शासन से विमर्श कर जल्दी ही इस प्रस्ताव पर कार्य आरंभ कर देंगे। उन्होंने इस विषय पर संसद सत्र समाप्त होने के बाद काम आरंभ करने के लिए कहा।
उसके बाद टिहरी की सांसद श्रीमती राज्य लक्ष्मी शाह से प्रतिनिधि मंडल ने भेंट की। उन्होंने प्रतिनिधि भाषा के संबंध में विद्वानों की बातें उत्साहित हो कर सुनी। उन्होंने कहा कि गढ़वाली तो टिहरी राजशाही की भाषा रही है। परंतु अब कई बोलियों के क्षेत्र को मिलाकर उतराखण्ड राज्य स्थापित हुआ है यहां की सभी बोलियों में एक भाषा ऐसी हो जिसको प्रतिनिधि भाषा कहा जा सके। उन्होंने भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी संस्तुति पत्र बनवाया और उसकी एक प्रति प्रतिनिधि मण्डल को दी।
इसके अलावा उत्तराखंड के अन्य सांसदों डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, अजय टम्टा और अजय भट्ट के वर्तमान में दिल्ली से बाहर होने के कारण मुलाकात नहीं हो सकी और इन सभी सांसदों से दूरभाष पर बात की गयी। सभी ने इस प्रस्ताव पर काम करने की बात कही।
प्रतिनिधि मंडल में डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी, डॉ. पृथ्वी सिंह केदारखंडी, चंद्र सिंह रावत, डॉ. केएन कंडवाल, दिनेश मोहन घिल्डियाल, खजान दत्त शर्मा, सुल्तान सिंह तोमर उपस्थित हुए। डॉ. जलन्धरी ने सभी सांसदों के समक्ष उतराखण्ड की प्रतिनिधि भाषा की आवश्यकता के संबंध में जानकारी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि यह भी जरूरी है कि उत्तराखंड की गढ़वाली कुमाऊनी को संविधान की अष्टम सूची में स्थान मिलना चाहिए, उतराखण्ड की इन दोनों बोली/भाषाओँ का अपना साहित्य है और इनमें लेखन जारी है जो आगे भी यथावत जारी रहेगा।
उन्होंने ने कहा कि उत्तराखंड की प्रतिनिधि भाषा को किसी प्रयोग शाला में टेस्ट ट्यूब से नहीं निकाला जाएगा। इसके लिए 14 बोलियों के विद्वानों को वैठकर विमर्श करना होगा, यह एक शोध का विषय है जिसे भविष्य में सरकार का संरक्षण प्राप्त हो। उन्होंने इस विषय कर आलोचना करने वालों से कहा कि जब तक हम मिल बैठकर किसी विषय पर विमर्श नहीं करेंगे तब तक भ्रांतियां उभरती रहेंगी आरोप प्रत्यारोप लगते रहेंगे। इससे पहले मत भेद और बाद में मन भेद हो सकता है। उन्होंने कहा इस विषय पर विमर्श हो विवाद नहीं। हम एक टेबल में आकर इस विषय की गंभीरता पर विमर्श कर सकते हैं विवाद नहीं।