Special on the birth anniversary of Sumitranandan Pant, the pillar of Hindi literature

सुमित्रानंदन पंत : हिंदी साहित्य को एक नया आयाम देने वाले, पद्मभूषण एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत जी की आज 123वीं जयंती है। सुमित्रानंदन पंत जी को हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और ,महादेवी वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है।

सुमित्रानंदन पंत गीत और कविताएं लिखते थे। जब वे सात वर्ष की उम्र में थे तो उन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था। वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ थी। सुमित्रानंदन पंत को हिंदी साहित्य सेवा के लिए पद्मभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया।

उत्तराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे कौसानी गांव में, जहाँ उनका बचपन बीता था, वहां का उनका घर आज ‘सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय बन चुका है। इस में उनके कपड़े, चश्मा, कलम आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। संग्रहालय में उनकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यान माला का आयोजन होता है। यहाँ से ‘सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व और कृतित्व’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम ‘सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान’ कर दिया गया है।

सुमित्रानंदन पंत की जीवनी

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को भारत का स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले खुबसूरत पर्यटक स्थल कौसानी, उत्तराखंड में हुआ था। उनका बचपन का नाम गुसाई दत्त था। जन्म के 6 घंटे बाद ही उनकी माँ देहांत हो गया जिसके बाद उनका लालन-पालन उनके दादी के द्वारा किया गया। सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम गंगा दत्त था। वे कौसनी के चाय बगीचे के मैनेजर थे। पंत के भाई संस्कृत और अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे, जो हिंदी, कुमाऊनी में कविताएं भी लिखा करते थे।

सुमित्रानंदन पंत की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के ‘वर्नाक्यूलर स्कूल’  में हुई। इसके बाद वे वाराणसी चले गए और वहां पर उन्होंने ‘जयनारायण हाई स्कूल’ से शिक्षा प्राप्त की। उसके के बाद में उन्होंने इलाहाबाद के ‘म्योर सेंट्रल कॉलेज’ में दाखिला लिया। वहां पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही वे 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।

1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान 1930 के ‘नमक सत्याग्रह’ के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, उन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके हृदय में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने युगवाणी (1938) और ग्राम्या (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग का जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। स्वर्णकिरण तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।

सुमित्रानंदन पंत की कुछ  काव्य कृतियाँ हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि। उनके अपने जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं। पंत जी अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं लेकिन उनकी सबसे कलात्मक कविताएं ‘पल्लव’ में संगृहीत हैं, जो 1928 से 1934 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है। इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता ‘परिवर्तन’ सम्मिलित है। ‘तारापथ’ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है।

सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु 28 दिसम्बर, 1977 को 77 वर्ष की आयु में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुई।