दिल्ली : कोरोना (कोविड-19) रूपी महामारी से इस समय पूरा देश संकट के दौर से गुजर रहा है। इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए अब तक दिख रहे एक मात्र उपाय (लॉकडाउन) के चलते लोग अपने अपने घरों में कैद (सुरक्षित) हैं। लॉकडाउन के दौरान लोग जन्मदिन, शादी की सालगिरह से लेकर बड़े तीज त्योहारों को अपने अपने घरों में बैठकर ही मना रहे हैं। दो दिन पहले 10 मई को दुनियाभर में मदर्स डे (मातृ दिवस) भी मनाया गया।
मदर्स डे (मातृ दिवस) पर पर्वतीय न्यूज़ के संपादक प्रदीप वेदवाल ने दिल्ली/एनसीआर में रह रहे अपने पहाड़ के लोककलाकारों से बातचीत कर जानने की कोशिश की, कि कोरोना संकट के बीच लॉकडाउन में पहाड़ों से दूर परदेश में रह कर वे मदर्स डे पर किस तरह से जन्म देने वाली माँ के साथ अपनी मातृभूमि (जन्मभूमि) को याद कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने यहाँ रह रही बुजर्ग माताओं से बातचीत कर बताया कि किस तरह से वे लोग अपने पहाड़ को मिस कर रहे हैं। बतादें कि अक्सर इन दिनों प्रवासी उत्तराखंडी (खासकर बुजुर्ग) दिल्ली/एनसीआर की गर्मी से निजात पाने के लिए पहाड़ में अपने अपने गाँव चले जाते थे। परन्तु इस समय परिस्थितियां दूसरी हैं।
यहाँ नीचे दिए गए वीडियो में देखे उत्तराखंडी लोक कलाकारों के द्वारा मातृ दिवस पर मातृभूमि को समर्पित कुछ लोकगीत “खै जाली माँजी डाल्युं कि बेरी, कन किस्मत रै होलि मेरी” (मुधु बेरिया शाह), नि छै ब्वे अब तेरी याद आणी चा, जब छै तु तब तेरी कदर नि जाणी (कुंजबिहारी मुंडेपी),।