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नई दिल्ली : दिल्ली-एनसीआर में रह रहे उत्तराखण्डियों ने 2 अक्टूबर (गांधी जयंती के दिन) को मुजफ्फरनगर गोली कांड में शहीद हुए राज्य आन्दोलनकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस काण्ड के गुनाहगारों को 27 साल बाद भी सजा न दिये जाने के विरोध में संसद की चौखट जंतर मंतर पर काला दिवस के रूप पर मनाया. इस दौरान मौजूद आक्रोशित उत्तराखंडियों ने देश व उतराखण्ड के हुक्मरानों को धिक्कारा।

लोगों में इस बात से बेहद गुस्सा था कि मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को  इलाहाबाद उच्च न्यायालय व देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई द्वारा दोषी ठहराने के बाबजूद इस काण्ड के  27 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा इन गुनाहगारों को दण्डित करने के बजाय पद्दोन्नित करके पुरस्कृत किया गया। इसी के  विरोध में उत्तराखंड समाज के लोग विगत 27 सालों से संसद की चौखट जंतर मंतर पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए  काला दिवस मना कर देश के हुक्मरानों का धिक्कारते हैं।

इस आशय का एक ज्ञापन राष्ट्रपति महोदय को भी भेजा गया। ज्ञापन में राष्ट्रपति से देश की व्यवस्था के रक्षकों द्वारा देश के संविधान व मानवता को रौंदने वाले इस जघन्य काण्ड के दोषियों को तत्काल सजा देकर भारतीय  संविधान, संस्कृति व न्याय की रक्षा करने का गुहार की लगाई गयी।

काला दिवस आयोजन समिति के संयोजक व कार्यक्रम के संचालक देवसिंह रावत ने बताया कि 2 अक्टूबर को उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठनों व तमाम सामाजिक संगठनो  ने उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति के बैनर तले संसद की चैखट जंतर मंतर पर आयोजित इस काला दिवस में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड  लोकमंच, उत्तराखण्ड जनमोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, उत्तराखण्ड क्रांतिदल सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की तमाम प्रमुख सामाजिक संगठनों, उतराखण्ड एकता मंच, भू कानून समिति, देव सेना संगठन, उतराखण्ड प्रवासी संगठन, मातृभूमि सेवा पार्टी ने भाग लेते हुए मुजफ्फरनगर काण्ड-94 सहित राज्य गठन जनांदोलन के सभी शहीदों को अपनी भावभीनी श्रद्वांजलि अर्पित की. black-day-uttarakhand-agitator

इस दौरान ‘उत्तराखण्ड के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के  दोषियों को सजा दो, नरेन्द्र मोदी, पुष्कर धामी  शर्म करो’ व  मुलायम सिंह को फांसी दो  आदि गगनभेदी नारे लगाये। इस श्रद्धांजलि सभा में उतराखण्ड क्रांति दल, भाजपा, कांग्रेस व आप जैसे राजनैतिक दलों के नेताओं ने आंदोलनकारी व सामाजिक संगठनों के समर्पित पदाधिकारी के रूप में भाग लिया।

इस अवसर पर आंदोलनकारियों ने उत्तराखण्ड प्रदेश की अब तक की सरकारों को प्रदेश के आत्म सम्मान व जनांकांक्षाओं को रौंदने पर कड़ी भर्त्सना  करते हुए उनको राव-मुलायम से बदतर बताया।  भाग लेने वाले प्रमुख लोगों में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के खुशहाल बिष्ट व विनोद नेगी, उत्तराखण्ड महासभा के  हरिपाल रावत व  अनिल पंत, उतराखण्ड   जनमोर्चा के रवींद्र बिष्ट व डॉ. एस एन बसलियाल, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती,  उक्रांद के वरिष्ठ नेता प्रताप शाही, संयुक्त संघर्ष समिति के मनमोहन शाह,  लीलाधर पाण्डे, उतराखण्ड एकता मंच के सुरेंद्र सिंह हालसी, देव सेना संगठन के कमल चतुवेदी, उतराखण्ड प्रवासी संगठन के अध्यक्ष गिरीश सत्यवली, मातृभूमि सेवा पार्टी के अध्यक्ष सुधीर नेगी, अग्रणी समाजसेवी बलबीर  धर्मवान, मोहन जोशी, प्रताप बिष्ट, दयाल सिंह नेगी, आंदोलनकारी किशोर रावत, शिवसिंह रावत व सच्चिदानंद भट्ट, भूकानून समिति के जगत सिंह बिष्ट, रोशनी चमोली, प्रेमा धोनी, आशा बरारा, मंजू रतूड़ी, बीना नयाल, राकेश नेगी, सरिता कठैत, हरिप्रकाश आर्य, उदय मंमगाई राठी, यशोदा जोशी, सविता,   शिव प्रसाद बलूनी, एम पी नवानी, डीबी थपलियाल, लता रावत, लक्ष्मी रावत, वरिष्ट पत्रकार व्योमेश जुगरान, सुनील नेगी, अमरचंद व सतेंद्र रावत सहित तमाम वरिष्ठ आंदोलनकारियों व समाजसेवियों ने भाग लिया। सभा के अंत में उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन में मुजफ्फरनगर काण्ड सहित सभी शहीदों की पावन स्मृति में दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर तमाम वक्ताओं ने एक स्वर में इस काण्ड की कडी भर्सना करते कहा कि  देश की एकता, अखण्डता व विकास के लिए समर्पित रहे ‘उत्तराखण्ड  राज्य गठन जनांदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को,  मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्तासीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई।

परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया। सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे  शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद (उप्र) के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह व पुलिस अधिकारियों डीआईजी बुआ सिंह व नसीम इत्यादि को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था।

यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो  परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 20 साल बाद भी अक्षम रही है।

इस काण्ड से पीड़ित उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी, निशंक, बहुगुणा, रावत त्रिवेन्द्र,तीरथ व धामी जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनके शासन में इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देने की शर्मनाक कृत्य किया गया। वर्तमान में देश, उप्र व उतराखण्ड तीनों सरकारें भाजपा की ही है। उतराखण्ड सरकार क्यों इस काण्ड के गुनाहगारों को सजा दिलाने की मांग केंद्र व उप्र सरकार से क्यों नहीं कर रही है।

संसद की चोखट पर काला दिवस मनाने वाले अन्य प्रमुख लोगों में शूरवीर सिंह नेगी,, श्याम प्रसाद खंतवाल, प्रदीप रावत, भीमराज सिंह ,वीरेंद्र बुटोला, विक्रम सिंह चैहान, मुकेश कुमार, भीम सिंह नेगी, लक्ष्मण कडाकोटि, कमल सिंह नेगी, रवीन्द्र चैहान, पदम सिंह विष्ट, साहित्यकार  दर्शन सिंह रावत,  दिनेश ध्यानी व रमेश घड़ियाल, प्रताप थलवाल, म्यर पहाड समिति के कुंदन भैसोड़ा, विनोद पटवाल, संतोष सिंह नेगी, धनपाल सिंह रावत, कमलकिशोर रावत, अर्जुन सिंह, अनिल कुमार, यशपाल नेगी, दीपक धस्माना, मनीष खंडूडी, देवेदकतं पटवाल, देवेंद्र सिंह रावत,  महावीर सिंह फर्सवान, दिनेश कोठियाल, महेश नेगी, मोर सिंह, कमल सिंह नेगी, रोशन नेगी, एमएन पनेरू, अमित नेगी, सुनील नेगी, हर्ष बर्धन, बीपी उनियाल, सुखदीप रावत, संदीप नेगी, सतीश सिंह, अरूण सिंह रावत, हरीश प्रकाश आर्य, महेंद्र रावत, मनोहर सिंह, कमल किशोर भट्ट, सुंदर रावत, ठाकुर सहिल राणा, उमेड सिंह, बादल सिंह मेहरा, सुरेंश, गोकुल सिंह नरेश सिंह, प्रकाश सिंह, कृष्णपाल सिंह, अजय सिंह, मनोहर सिंह नेगी,  प्रदीप सिंह रावत खुदेड, नरेंद्र सिंह गुसांई, नरेंद्र जोशी, अमित चैहान, पीएस बिष्ट, बुराड़ी से राकेश नेगी, नरेंद्र सिंह, विनोद, पीबी कंडवाल, ओपी बलूनी, वीरेंद्र सिंह हीते बिष्ट, मनोज आर्य, उतराखण्ड भू-कानून समिति के देव बौदरी आदि उपस्थित थे।