भगत सिंह कोश्यारी उतराखण्डी भाषा

मुंबई: उतराखण्डी भाषा की बात महाराष्ट्र के राज्यपाल और उतराखण्ड के वरिष्ठ, दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी तक पहुंच गई। मुंबई से समाज सेवी शिक्षाविद चामू सिंह राणा, वरिष्ठ साहित्यकार समाजसेवी डॉ राजेश्वर उनियाल और उतराखण्डी भाषा के ध्वजवाहक डॉ बिहारीलाल जलन्धरी ने कोश्यारी जी से मुलाकात की। कोश्यारी ने उत्तराखंडी भाषा में पहला पाठ्यक्रम मौल्यार को भाषा का एक नया आयाम बताया।

उन्होंने कहा कि आज बृज, अवधी, भोजपुरी आदि भाषाएं अपनी जगह पर यथावत हैं परंतु जो भाषा हिंदी खड़ी बोली के रूप में प्रचलित हुई थी उसको भारत देश में एक संपर्क भाषा के रूप में और राष्ट्र भाषा के रूप में सम्मान मिला है जो आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो चुकी है। इसी प्रकार उतराखण्डी भाषा पर भी काम हो तो भाषा के रूप में एक अन्य आयाम जुड़ जाएगा। जैसे हिंदी भाषा के विषय में सूर, तुलसी, जायसी, बिहारी या यूं कहें कि भक्ति काला के साहित्यकारों की रचनाओं और जीवनी को पढ़ाया जाता है, उसी तरह उतराखण्डी भाषाम भी कुमाऊनी गढ़वाली के साहित्यकारों की रचना और जीवनी को भी पढ़ाया ए जाएगा। उत्तराखंडी भाषा का यह पहला माडल पाठ्यक्रम प्रशंसनीय है।

चामू सिंह राणा ने निकट भविष्य में मुंबई महानगर में उत्तराखंडी भाषा के लिए एक सम्मेलन करने और उसमें उपस्थित होने का आग्रह महामहिम राज्यपाल महोदय से किया। उन्होंने कुमाऊं गढ़वाल में बंटे उतराखण्ड समाज को उत्तराखंडी भाषा के माध्यम से जोड़ने की इस मुहिम का स्वागत किया। कोश्यारी जी ने अपनी उपस्थित के साथ सहयोग करने का आश्वासन दिया।

डॉ राजेश्वर उनियाल ने उत्तराखंडी भाषा को उत्तराखंड के लोगों की अपनी पहचान बताया। उन्होंने भी गढ़वाली कुमाऊनी के अस्तित्व को अवधी बुंदेली बृज आदि भाषाओं जैसा यथावत रहने का उदाहरण दिया। उन्होंने पंजाबी, गुजराती, मराठी, मलयालम, असामी, बंगाली आदि भाषाओं के उदाहरण देकर कहा कि यह भाषाएं भी वहां की उपबोलियों के समान शब्दों को भाषा वैज्ञानिक आधार पर समाकलित कर अस्तित्व में आई जो आज वहां की प्रदेशिक भाषा के रूप में स्थापित है। उत्तराखंडी भाषा के लिए भी कुछ इसी तरह की अपेक्षा है।

कोश्यारी जी ने डॉ जलन्धरी को उत्तराखंडी भाषा की मुहिम पूरे देश में चलाने के लिए बधाई दी और भविष्य में इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए आश्वासन दिया।