अलीगढ़: जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के संयोजन में अलीगढ़ के विभिन्न सामाजिक व गैर राजनैतिक संगठनों ने भारत की संसद के संकल्प के 28 वर्ष पूर्ण होने पर संकल्प स्मरण दिवस के अवसर पर विदेशी आधिपत्य से भारतीय क्षेत्रों को कब्जा मुक्त कराने के संबंध में भारत के महामहिम राष्ट्रपति के नाम एक संकल्प स्मरण पत्र जिलाधिकारी अलीगढ़ के माध्यम से सक्षम अधिकारी ए सी एम प्रथम द्वारा प्रदान किया।
22 फरवरी 1994 एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन संसद ने एक संकल्प लिया कि वह विदेशी आधिपत्य मैं भारत के लगभग लगभग 126000 वर्ग किलोमीटर भू भाग के उन सभी क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर लेगी। संकल्प स्मरण पत्र में कहा गया कि पाकिस्तान और चीन के आधिपत्य वाले क्षेत्र भारत के विभिन्न अंग हैं।
एक राष्ट्र अपने क्षेत्रों को केवल विदेशी शक्तियों के आधिपत्य से नहीं खोता है, बल्कि तब, जब राष्ट्र उन क्षेत्रों को भूल जाता है।
विदेशी आधिपत्य के तहत क्षेत्र मीरपुर मुजफ्फराबाद, जिसे पीओजेके (पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर) कहा जाता है। वर्तमान में जम्मू जिसका क्षेत्रफल और कश्मीर के केन्द्र शासित प्रदेश का एक जिला (14000 वर्ग किमी. लगभग), गिलगित बाल्टिस्तान जिसे (पाकिस्तान अधिकृत लद्दाख क्षेत्र) कहा जाता है। वर्तमान में भारत का केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले का हिस्सा है। क्षेत्रफल(75000 वर्ग किलोमीटर. लगभग), शक्सगाम घाटी- पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान का हिस्सा है जो, 2 मार्च 1963 को पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से चीन को उपहार में दिया गया। (5600 वर्ग किमी. लगभग), अक्साई चिन- लद्दाख का हिस्सा 21 नवम्बर 1962 से चीन के कब्जे में, 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद जिसका क्षेत्रफल लगभग (37000 वर्ग किमी.), मिनसर- दक्षिण पश्चिम तिब्बत में एक भारतीय एन्क्लेव, जिसने कैलाश मानसरोवर को बनाये रखा, 1954 की ”पंचशील“ वार्ता के दौरान भारत द्वारा चीन को एक तरफा उपहार में दिया।
इस अवसर पर अध्ययन केंद्र के अलीगढ़ के संयोजक दलबीर सिंह चौहान ने बताया कि 1993 में ‘आजाद जम्मू कश्मीर’ (पीओजेके) की पाकिस्तानी अदालत ने फैसला सुनाया था कि गिलगित बाल्टिस्तान जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था। 9 फरवरी 1990 को पाकिस्तानी संसद ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को खारिज करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। 1993 में अमेरिकी विदेश विभाग के रॉबिन राफेल ने भारत का दौरा किया और कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोली। सितम्बर 1993 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कश्मीर का उल्लेख किया।
भारत को कश्मीर से बेदखल करने के लिए अमेरिका और आईओसी एक अंतरराष्ट्रीय तख्ता पलट की सोच का हिस्सा थे। जिससे कश्मीर से भारत को जाये। इन दवाबों का मुकाबला करने के लिए सभी राजनैतिक दल एक रूप में खड़े हुए और प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव के मार्गदर्शन में 22 फरवरी 1994 को संसदीय प्रस्ताव पारित किया। जिसमें कहा गया कि जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के सभी कब्जे वाले क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है जिनको भारत मैं पूर्ण रूप से बिलय करने के लिए यह संसद प्रतिबंध है। यह प्रस्ताव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने 27 फरवरी 1994 को कश्मीर में भारत द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर जिनेवा में एक प्रस्ताव पेश करने की पाकिस्तान की योजना का मुकाबला करने में मदद की।
आहुति के अशोक चौधरी के अनुसार तत्कालीन विपक्ष के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक चार सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल जिनेवा गया और प्रस्ताव को पेश होने से रोक दिया गया। 11 मार्च 2020 को संसदीय प्रस्ताव पर संसदीय प्रश्न सं0 1977 के जबाव में विदेश मंत्री ने कहा कि सरकार संकल्प के लिए प्रतिबद्ध है और लगातार मांग करती है कि पाकिस्तान उसके द्वारा अवैध रूप से कब्जा किये क्षेत्रों को खाली कर दे। उन्होंने सवाल किया कि
भारत की संसद का संकल्प क्या बेकार जायेगा?
उड़ान सोसायटी के अध्यक्ष ज्ञानेन्द्र मिश्रा ने कहा कि देश की संसद ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मत संकल्प पारित किया जिसके अनुसार- 1. जम्मू- कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। इसे भारत से अलग करने के किसी भी प्रयास का हर संभव प्रतिरोध किया जायेगा।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिला अध्यक्ष डॉक्टर राजेश चौहान ने कहा कि भारत की एकता, संप्रभुता तथा भौगोलिक अखण्डता के विरूद्ध होने वाले किसी भी षड्यंत्र से निपटने की इच्छा और क्षमता भारत में है।
कर्नल आरके सिंह ने कहा कि भारतीय राज्य जम्मू- कश्मीर के पाकिस्तान द्वारा अतिक्रमण कर कब्जाये गये भू-भाग को वह खाली करे तथा भारत के आन्तरिक मामलों में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप दृढ़ता से निपटा जायेगा। संकल्प के दो दशक पूरे होने के बाद भी न तो सीमा पर स्थिति बदली है और न ही केन्द्र सरकार द्वारा इसके लिये कोई प्रयास होता दिखाई देता है। इस बीच चीन ने भी हमारी बहुत सी भूमि अधिक्रान्त कर ली है और शासन मौन है।
स्मरण पत्र देने हेतु उपस्थित लोगों ने कहा कि के 28 वर्ष पूरे होने के अवसर पर देश के सम्मुख प्रश्न उपस्थित है कि-
क्या हर दिन सीमा पर होते हमले राष्ट्र की संप्रभुता को चुनौती नहीं है?
● क्या सरकार को देश की संप्रभुता से समझौते करने का अधिकार है?
● क्या सीमा पर शान्ति बनाये रखने के नाम पर देश का भू-भाग शत्रु को सौंपा जा सकता है?
● क्या उस क्षेत्र के नागरिकों की मुक्ति देश का कर्तव्य नहीं जो दशकों से शत्रु के चंगुल में है?
●भारत के एक राष्ट्रभक्त नागरिक के रूप में मैं सरकार से अनुरोध करता हूँ कि वह सीमा पर होने वाले अतिक्रमण का दृढ़ता से प्रत्युत्तर दे तथा बीस वर्ष पूर्व संसद द्वारा लिये गये संकल्प के अनुसार पाकिस्तान तथा चीन द्वारा अधिक्रान्त किये गये भू-भाग को वापस लेकर वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों को भारत की मुख्य धारा में शामिल होने तथा प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों के उपभोग का अवसर प्रदान करे।
उपस्थित संगठन
राष्ट्रवादी विचार मंच
जाबांज पूर्व सैनिक समिति, उड़ान सोसायटी,
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,
क्वार्सी व्यापार मंडल रामघाट रोड,
भारतीय करनी सेना,
अखिल भारतीय राष्ट्रीय स्नातक संघ,
आहुति, मिशन मोदी अगेन पी एम, बजरंग बल, भारतीय जनमानस ट्रस्ट आदि संगठनों की ओर से विवेक चौहान, गौरव शर्मा, डॉक्टर सुनील चौहान, मुकेश राजपूत, डॉक्टर कुंज बिहारी दुबे, कैलाश चंद्र रावत, महेश सारस्वत, अनिल कुमार, भूदेव सिंह, सुमित कुमार सिंह, मनोज वार्ष्णेय, संजय भारद्वाज, सुशील शर्मा, माहे जेहरा, डॉक्टर निदाज खान, गौरी पाठक, विनोद कुमार सिंह, आशीष चतुर्वेदी, यशपाल बिष्ट, संजय गुप्ता, दक्ष प्रिया, ललित पुंढीर, एड 0 अजीत राघव, राहुल चौहान, हरी मोहन सिंह, लोकेश कुमार दीक्षित, जे पी राजपूत, हरिओम चौहान, अमित रावत, सौरभ रावत, उभयवीर सिंह, राहुल युद्धवीर सिंह चौहान, रश्मि सिंह, संदीप सिंह, रमेश चंद्र सतीश कुमार चौहान आदि उपस्थित थे।