कहते है कि देश के विकास में जो सोच, जो परिकल्पना और जो विचारधारा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वह होती है युवा सोच। इसी युवा विचारधारा की परिकल्पना है कि आज पूरे विश्व में भारत के युवा हर दिन नयी ऊँचाइयों को छू रहे हैं। यह बात जब पहाड़ के परिपेक्ष में हो तो पहाड़ के युवा धरातल पर यह कहना भले ही कठिन हो कि हम कहाँ खड़े थे? कहाँ खड़े है? और भविष्य में कहाँ होंगे? तो कहा जा सकता है कि रोजी-रोटी की जुगत में हमने जिन खेत-खलिहानों को खुद के वजूद के साथ खंडहर होने के लिए खुद से दूर किया था। आज हम उन तक लौट रहे है। हमारी युवा सोच हमारी इस परिकल्पना को साकार ही नहीं कर रही बल्कि इसे सशख्त विचारधारा के साथ जमीन पर उतार रही हैं।
इस जमीन से जुड़ी सोच है सिलोर घाटी के युवाओं की जो अपने संघर्षों से बता रहे कि भले ही उत्तराखंड राज्य के गठित होने के 20 वर्ष बात पहाड़ निराशा हो, सरकार के पटल पर पलायन रोकने की थोड़ी बहुत कोशिशें हो। लेकिन इनके मन मस्तिष्क में रिवर्स पलायन के जरिए विकास के कई फलक है। जिसके जरिए सिलोर घाटी के युवा वापस अपने पहाड़ लौटकर पहाड़ के युवाओं को कृषि के क्षेत्र में नई तकनीकों से अपनी आजीविका चलाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। उन्हें उनके खेत-खलिहानों में ही रोजगार के साधन उपलब्ध करवा रहे है।
रानीखेत तहसील में सिलोर पट्टी के ग्राम डढूली, सरना, मोटा एवं सिलोर घाटी के युवाओं की इस मुहिम ने इस घाटी में विकास के नये फलक खोल दिए हैं। इन युवाओं द्वारा DSMS विकास समिति का गठन किया गया है। जिसके माध्यम से यह युवा, युवा वर्ग की शिक्षा-स्वास्थ्य, कृषि जैसी समस्याओं पर तो काम कर ही रहे है, साथ ही आज के समय में पहाड़ पर खेती को बर्बाद करने वाले जंगली जानवरों की समस्या के निदान के लिए यह युवा सोच गंभीरता से काम कर रही है। सिलोर घाटी के इन युवाओं का यह संगठन निरंतर गांव और प्रवासी युवाओं से जुड़कर अपने-अपने क्षेत्रों की बदहाली को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है।
अगर पिछले 6 महीने में इनके कार्यों का अवलोकन किया जाए तो इन युवाओं का संगठन आपसी संवाद और सहयोग से अपनी जमीनी हकीकत से रूबरू होने के उद्देश्य से आने वाली गर्मियों में रानीखेत तहसील के गाँव और प्रवासी युवाओं ने एक सम्मेलन का आयोजन करने जा रहा है। जिसके जरिए अपने घर-गांव समस्याओं पर सिर्फ मंथन नहीं होगा बल्कि उन्हें रेखांकित कर उन्हें निवारण और अपने खेत-खलिहानों को आबाद करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे। इसी के साथ सरकार को भी इन समस्याओं से अवगत करवाया जाएगा। कोशिश यह की जाएगी की रिवर्स पलायन की परिकल्पना से उन युवाओं को अपने घर-गांव लौटाया जाए जो देहरादून, दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ जैसे शहरों में छोटी-मोटी नौकरियों में अपना समय काट रहे है।
इस परिकल्पना को युवा पटल पर उकेरने वाली युवा सोच समिति के संस्थापक सदस्य हेमचंद तिवारी ने बताते है कि समिति का प्रयास ग्राम स्तर पर एक नई चेतना को जागृत करना और युवाओं को रोजगार के लिए स्वरोजगार के तहत पशुपालन,मुर्गी पालन, बकरी पालन,मत्स्य पालन एवं बहुत सारी लाभकारी योजनाओं को सार्थक ढंग से चलाने के लिए प्रोत्साहित करना तो है ही साथ ही अपनी मूल जड़ो से जोड़ना भी है।
इसी के साथ समिति भविष्य में ग्राम विकास हेतु सरकार की विभिन्न लाभकारी योजनाओं को ग्राम वासियों तक पहुंचाने का प्रयास करेगी। गांव के बच्चों को कक्षा दसवीं तक के लिए नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था, प्रभावशाली व्यक्तित्व निर्माण के संबंध में कार्यशाला, मॉर्डन शिक्षा पद्धति के माध्यम से जोड़ना हमारी प्राथमिकता में है। हेमचंद तिवारी बताते है कि गांव में बंजर होती जमीनों पर हल्दी, अदरक, मशरूम एवं अखरोट की खेती के लिए प्रयोग करना भी हमारी प्राथमिकता में है। समिति उत्तराखंड के तमाम सामाजिक संगठनों से निवेदन कर रही है कि ग्राम उत्थान के इस कार्यक्रम में DSMS विकास समिति का सहयोग करें और इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए समिति को आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर सहयोग के आगे आएं।