श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई शनिवार को श्रीनगर के नागेश्वर मंदिर में महंत नागेश्वर पूज्य नितिन पुरी के द्वारा घोघा माता (फूलों की देवी) की पूजा और बच्चों को मिष्ठान व दक्षिणा देकर सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर आयोजक संयोजक अनुप बहुगुणा, महेश गिरि के साथ महंत नागेश्वर नितिन पुरी जी, गिरिश पैन्यूली, जितेन्द्र रावत, जगमोहन कठैत, प्रदीप अडथ्वाल, नरेश खण्डूरी, बीरेंद्र रतुडी आदि उपस्थित रहे। श्रीनगर में यह आयोजन चैत्र मास के पहले दिन से प्रातः श्रीनगर के मुख्य कस्बों में फूलदेई की यात्रा से आरम्भ हुआ, जिसमें बच्चे, बूढ़े, जवान, रंगकर्मी, साहित्य कर्मियों एवं समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने प्रतिभाग किया। आयोजन के पहले दिन प्रतिष्ठित लेखक व साहित्यकार अरूण खुगशाल, पत्रकार श्रीमती गंगा असनोड़ा थपलियाल व रंगकर्मी गणेश बलूनी ने बच्चों से रूबरू होकर उन्हें इस त्योहार की विस्तृत जानकारी दी। उसी दिन की शाम को बारिश की भीगी शाम को अजीम प्रेमजी फाउडेशन के सभागार में में लोक गायक डॉ संजय पांडे श्रीमती लता तिवारी पाण्डे तथा डॉ सुभाष पाण्डे ने फूलदेई व चैती के गीत गाकर सभी का मन मोहा।
श्रीनगर के सभी संभ्रांत व्यक्तियों के सहयोग से यह आयोजन सम्पन्न हुआ जिसमें गिरिश पैन्यूली, जगमोहन कठैत, प्रदीप अडथ्वाल, गंगा असनोड़ा थपलियाल, राजीव खत्री, श्रीकृष्ण उनियाल, गोपी मैठाणी, पीयूष धस्माना, मनोज कण्डियाल, जितेन्द्र रावत, नरेश खण्डूरी, देवेन्द्र उनियाल आदि रहे।
आयोजक संयोजक अनुप बहुगुणा, महेश गिरि व राजीव खत्री ने सभी का आभार व्यक्त किया.
देवभूमि उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति से मनाये जाने वाला प्रसिद्ध एवम् लोकप्रिय लोकपर्व “फूलदेई पर्व” एक लोकपर्व है। उत्तराखंड में इस त्योहार को फूल सक्रांति भी कहते हैं, जिसका सीधा संबंध प्रकृति से है। इस समय चारों ओर छाई हरियाली और नए-नए प्रकार के खिले फूल प्रकृति की खूबसूरती में चार-चांद लगा देते है। उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार “फूलदेई” मनाया जाता है, जो कि बसन्त ऋतु के स्वागत का प्रतीक है। चैत्र के महीने में उत्तराखंड के जंगलो में कई प्रकार के फूल खिलते है, ये फूल इतने मनमोहक व् सुन्दर होते है कि जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। इस फूल पर्व में नन्हे-मुन्ने बच्चे प्रातः सूर्योदय के साथ-साथ घर-घर की देहली पर रंग बिरंगे फूल को चढ़ाते हुए घर की खुशहाली, सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं अर्थात जिसका मतलब यह है कि हमारा समाज फूलों के साथ नए साल की शुरूआत करे। ज्योतिषियों के मुताबिक यह पर्व पर्वतीय परंपरा में बेटियों की पूजा, समृद्धि का प्रतीक होने के साथ ही “रोग निवारक औषधि संरक्षण” के दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। फूलदेई पर्व के दिन एक मुख्य प्रकार का व्यंजन बनाया जाता है जिसे “सयेई” कहा जाता है। फूलों का यह पर्व कहीं पूरे चैत्र मास तक चलता है, तो कहीं आठ दिनों तक। बच्चे फ्योंली, बुरांस और दूसरे स्थानीय रंग बिरंगे फूलों को चुनकर लाते हैं और उनसे सजी फूलकंडी लेकर घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। भेंट स्वरूप लोग इन बच्चों की थाली में पैसे, चावल, गुड़ इत्यादि चढ़ाते हैं। घोघा माता को ” फूलों की देवी” माना जाता है। फूलों के इस देवी को बच्चे ही पूजते हैं। अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की बड़ी पूजा करते हैं और इस अवधि के दौरान इकठ्ठे हुए चावल, दाल और भेंट राशि से सामूहिक भोज पकाया जाता है।
फूलदेई पर्व के मौके पर बच्चे गीत गाते हैं।
फूल देई, छम्मा देई,
इस दिन से लोकगीतों के गायन का अंदाज भी बदल जाता है , होली के त्यौहार की खुमारी में डूबे लोग इस दिन से ऋतुरैंण और चैती गायन में डूबने लगते हैं। ढोल-दमाऊ बजाने वाले लोग जिन्हें बाजगी, औली या ढोली कहा जाता है। वे भी इस दिन गांव के हर घर के आंगन में जाकर गीतों गायन करते हैं , जिसके फलस्वरुप उन्हें घर के मुखिया द्वारा चावल, आटा या अन्य कोई अनाज और दक्षिणा देकर विदा किया जाता है।
उत्तराखंड में घी त्यौहार , बसंत पंचमी , घुघुतिया त्यौहार और मकर सक्रांति पर्व भी लोकपर्व है, जिसे उत्तराखंड में बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है।