उत्तराखंड ने अपने उन्नीस सालों का सफर पूरा कर बीसवें बर्ष में प्रवेश कर लिया। जिन सपनों को लेकर पहाड़ी राज्य की स्थापना की गई थी, वे सपने आज भी सपने बन कर रह गए हैं। आलू की व्यवसायिक खेती उत्तराखंड के ऊंचाई व अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सदियों से होती आ रही है। आलू उत्पादन इन क्षेत्रो के कास्तकारौं की रोजी रोटी व आजीविका से जुड़ा हुआ विषय है। उत्तराखंड के हुक्मरानों/नीति निर्धारकों के गलत निर्णयों के कारण आज पहाड़ी क्षेत्रों विशेष रूप से सीमांत जनपदों के आलू उत्पादक परेशान व निराश हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व पर्वतीय क्षेत्रों के प्रत्येक जनपद में एक या दो आलू बीज उत्पादन फार्म होते थे- टेहरी जनपद में धनौल्टी, काणाताल, उत्तरकाशी में द्वारी, रैथल, पौड़ी में भरसार, खपरोली, रुद्रप्रयाग में चिरवटिया, घिमतोली, चमोली जिले में परसारी, कोटी, रामणी पिथौरागढ़ में मुनस्यारी, धारचुला, अल्मोड़ा में दूनागिरी, जागेश्वर, नैनीताल जनपद में गागर, रामगढ़ आदि। इन विभागीय आलू फार्मों में हिमाचल प्रदेश के कुफरी या अन्य क्षेत्रों से आलू का फाउंडेशन बीज मंगा कर आलू का प्रमाणित बीज तैयार किया जाता था जिसे मांग के अनुसार स्थानीय कास्तकारों को आलू बुवाई के समय वितरित किया जाता था। आलू के प्रमाणित बीज की मांग बहुत अधिक रहती है इन आलू फार्मौ में कुछ कास्तकार दैनिक श्रमिक के रूप मात्र इसलिए कार्य करते थे कि उन्हें आलू बीज की छर्री याने ग्रेडिंग के बाद जो छोटा आलू का बीज बच जाता है उन्हें मिल सके क्योंकि दैनिक श्रमिकों को ही आलू की छर्रियां उचित मूल्य पर दी जाती थी ऐसा मेरा आलू फार्म गागर जनपद नैनीताल का अनुभव रहा है।
हमारे देश में मात्र 30 प्रतिशत ही आलू का प्रमाणित बीज उपलब्ध हो पाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पादित आलू बीज की मांग अधिक रहती है। पहाडी क्षेत्रों में उत्पादित प्रमाणित आलू बीज बोने से कास्तकारौं को 16-20 गुना से भी अधिक उपज मिलती है। वहीं बाजार से क्रय किए गए सामान्य व अपनी पुरानी फसल से रखे आलू बीज से उपज काफी कम याने मात्र 3-4 गुना ही आलू की उपज मिल पाती हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में आलू बीज की महत्वा देखते हुए अस्सी के दशक में बीज प्रमाणीकरण संस्था का कार्यालय चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में खोला गया था। जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के कास्तकार आसानी से प्रमाणीकरण कर प्रमाणित आलू बीज का उत्पादन कर सकें। इस कार्य के लिए जोशीमठ मुनस्यारी व उत्तरकाशी में उद्यान विभाग के अतिरिक्त कर्मचारियों को आलू के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु नियुक्त भी किया गया था। दुर्भाग्य से आज ये पद और कार्यालय कहां गए कुछ पता नहीं।
उत्तराखंड राज्य बनने पर उमीद जगी थी कि पर्वतीय क्षेत्रों के कास्तकारौ की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा किन्तु अलग राज्य बनते ही उत्तराखंड के हुक्मरानों/ नीति निर्धारकों द्वारा उद्यान विभाग के आलू बीज उत्पादन फार्मों को बन्द कर दिया गया तथा इन फार्मों को स्वंयम सेवी संस्थाओं तथा पन्त नगर कृषि विश्व विद्यालय को हस्थानान्तरण कर दिया गया। इन आलू फार्मौ के बन्द होने से स्थानीय कास्तकारों को आलू का प्रमाणित बीज मिलना बंद हो गया ।
उद्यान विभाग द्वारा आलू बीज की कोई अतिरिक्त व्यवस्था पहाड़ी क्षेत्रों के आलू उत्पादकों के लिए नहीं की गई। कास्तकारों ने स्वयंम के आलू बीज से या बाजार में उपलब्ध सामान्य किस्म के आलू की बुवाई की जिससे उनको आलू की बहुत कम उपज मिली। आलू उत्पादकों को आलू की खेती कम उपज के कारण अलाभ कारी लगने लगी जिस कारण आलू की खेती कम होती गई। उद्यान विभाग द्वारा फरवरी मार्च माह में काशीपुर व अन्य मैदानी क्षेत्रों में उगाया गया नया बीज का आलू बिना dormancy break किये कई पर्वतीय क्षेत्रों में भेजने से भी आलू उपज पर प्रतिकूल असर पड़ा। आज इन क्षेत्रों के कृषकौं के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है। पिथौरागढ़ में मुनस्यारी, धारचुला व मदकोट क्षेत्र में बौना, गांधीनगर, क्वीरी, सरमोली, गोल्फा, निर्तोली, गिरगांव आदि लगभग 40 से भी अधिक गांवों के कास्तकार सहकारिता के माध्यम से आलू प्रमाणित बीज का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं।
अन्य जनपदों में भी इसी तरह के प्रयास होने चाहिए। उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी व चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंडों में आलू प्रमाणित बीज उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। उद्यान विभाग द्वारा बजट के अनुसार आलू का प्रमाणित बीज मुनस्यारी धारचुला व अन्य स्थानों से मंगा कर आधी कीमत पर आलू उत्पादकों को वितरित किया जाता है किन्तु मांग के अनुसार यह काफी कम होता है साथ ही दूर से लाने के कारण कभी कभी समय पर भी उपलब्ध नहीं हो पाता है। यदि इन क्षेत्रों के कास्तकारों को योजनाओं में समय पर प्रमाणित आलू का बीज उपलब्ध कराया जाय तो इन कास्तकारौ की आर्थिक स्थिति अच्छी हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्र के इन आलू उत्पादकों के लिए सरकार को विशेष प्रयास करने होंगे यदि यही स्थिति बनी रहती है तो इन क्षेत्रों से भी पलायन बढेगा।
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