कहते हैं की पहाड़ के संघर्षशील रास्तों को जिसने सघंर्षों के साथ तय कर लिया। वह जीवन के हर पड़ाव में सफलता के मुकाम तक पहुंच जाता है। बशर्ते उस व्यक्ति को सघर्षों की परिभाषा का ज्ञान हो। आज के समय में पहाड़ की माटी से जुड़े बहुत से लोग ऐसे है, जो दुनिया में कहीं भी रह रहे हों, लेकिन पहाड़ उनके जीने का वजूद होता है। वह पहाड़ के लिए जीते है, पहाड़ का होकर रहना चाहते है। उनकी जीवनशैली में रग-रग में पहाड़ बसा होता है। वह पहाड़ की माटी,पहाड़ की थाती के उत्थान के लिए निरंतर कार्य कर रहे होते है। इसी लीक से जुड़ा नाम में संजय शर्मा दरमोड़ा का।
संजय शर्मा दरमोड़ा का जन्म रूद्रप्रायग जिले के दरम्वाणी गांव में हुआ। जहां उन्होंने तमाम संघर्षों से गुजरते हुए जाखधार स्कूल में प्रथामिक शिक्षा-दिक्षा ली और जीवन की आगे की यात्रा के लिए अपने पिताजी मनसाराम दरमोड़ा के साथ देश की राजधानी दिल्ली चले आए। लेकिन पहाड़ के प्रति उनका अथा प्रेम हमेशा मन में रहा, जीवन में कई पड़ाव आए, लेकिन संजय दरमोड़ा ने उन पड़ावों से गुजरते हुए सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता के तौर पर अपने जीवन संघर्षों की मंजिल को छुआ। इस मंजिल पर रहते हुए, संजय दरमोड़ा पहाड़ के धरातल पर उतरकर स्वास्थ्य-शिक्षा से लेकर तमाम दूसरे सामाजिक पटलों पर सेवा भाव से असंख्य लोगों के साथ खड़े होकर काम कर रहे है।
संजय शर्मा दरमोड़ा के सेवा के कैनवास पर कई ऐसे खूबसूरत रेखांकन विद्यमान है। जिनके बारे में बात की जाए तो उसके लिए विस्तार से एक बड़ा फलक तैयार करना पड़ेगा। आज के परिपेक्ष में बात करें तो आज पूरा विश्व कोविड-19 के संक्रमण से जूझ रहा है। इस संकट के समय में कई गरीब और असहाय परिवार ऐसे हैं जिनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। इस संकट के समय में सामाजिक पटल पर कई लोग और संस्थाएं ऐसी हैं जो इन लोगों के साथ खड़े होकर न सिर्फ इनके जीवन उत्थान के लिए निर्णायक भूमिका निभा रहे है बल्कि इनके भविष्य निर्माण के दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे है।
संजय शर्मा दरमोड़ा भी ऐसे गरीब और जरूरत मंद लोगों के लिए सशक्त आवाज़ बनकर खड़े है। जिनके पास आज जीवन को जीने के वजूद नहीं है। फिर चाहे वह सड़क की तपिश पर नंगे पांव चलते मजदूर हों, या फिर दुनिया में सबसे ऊंचाई पर विद्यमान भगवान शिव की अराधना करने वाले पूजारी हो. श्री दरमोड़ा की सेवा भाव का एक-एक कण-कण उनकी सेवा के लिए पहुंच रहा है। इस संकट के समय में संजय शर्मा दरमोड़ा पहाड़ के दूरस्थ गांव, खेत-खलिहानों तक अपने सेवा के पथ से पहुंच ही नहीं रहे है, बल्कि इन क्षेत्रों में रह रहे गरीब और असहाय लोगों तक खाद्य सामग्री के साथ-साथ रोजमर्रा के काम में आने वाला जरूरी समाना भी उपलब्ध करवा रहे है।
रूद्रप्रयाग जिले की बात करें तो अपनी जन्मभूमि के पटल पर संजय शर्मा दरमोड़ा उन लोगों के जीवन की रेखा बन कर खड़े है। जो खुद को अकेला और असहाय समझते थे। आज इन लोगों के घरों तक श्री दरमोड़ा ने स्वास्थ्य-शिक्षा के साथ जीवन यापन के कई मार्ग प्रस्तत कर दिए है। जिस पर चलते हुए कई लोगों का जीवन स्तर नयी विचारधार को गढते हुए आगे बढ़ रहा है। रूद्रप्रयाग जिले के कई दूरस्थ गांव में संजय शर्मा दरमोड़ा कोरोना काल में निरंतर अपनी सेवाएं दे रहे है। कई लोगों का जीवन संवार रहे है। कई लोगों को उत्थान के मार्ग पर लेकर जा रहे हैं, और यह सब जीवन के वास्तविक धारतल पर होते हुए देखा जा सकता है।
संजय शर्मा दरमोड़ा बताते हैं कि मैं मानता हूं, पहाड़ के लोगों का जीवन बहुत संघर्षों भरा होता है। चाहे वह कोई भी हो, पहाड़ पर रहते, पहाड़ जैसे होना हम सब पहाड़ियों के लिए सम्मान की बात है। मेरा जन्म पहाड़ में हुआ रूद्रप्रायग जिले के दरम्वाणी गांव के खेत-खलिहानों में मैंने जीवन को जाना-समझा। आज भी जब गांव जाता हूं तो, खुद के पैरों के संघर्षों के निशान इन खेत-खलिहानों में खोजता हूं। घर-आगन की यादों से बातें करता हूं। उन खेलों को खोजता हूं, जिनके साथ मैं बचपन में खेला था। इन खेत-खलिहानों के लिए आज में कुछ कर पा रहा हूं तो यह सब हमारे देवों का आशीर्वाद और मेरे साथ काम कर रही मेरी पूरी टीम का सहयोग है।
दरमोड़ा जी कहते है जिन पहाड़ों के साथ में खेला-कूदा जिन पहाड़ों ने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया, मैं उनकी सेवा करना कैसे भूल सकता हूं। हम भले ही पहाड़ से अपनी शिक्षा-दिक्षा और रोजगार के लिए शहरों में आ गए हों, लेकिन पहाड़ की माटी की महक और पहाड़ी होने की खुशी मेरे जह्न में हमेशा है। मुझे गर्व होता हैं, जब कोई मुझे कहता हैं कि आप उत्तराखंड से हैं। पहाड़ हमारी माँ-पिता और हमारे बुर्जर्गों की थाती है। इसकी सेवा करने का मौका यदि हमें मिलता हैं तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
हम पहाड़ के उन दूरस्थ क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। जहां आज के समय में पहुंचना बहुत मुश्किल है। इन क्षेत्रों में कई बार सुनने में आता हैं कि स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण हमारी माँ-बहने और हमारे गांव के लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं के आभाव में मृत्यु तक हो जाती है। बचपन से पहाड़ की स्वास्थ्य सुविधाओं को देख रहा हूं। कई बार हमारे पहाड़ की दीदी-भुल्ली के बारे में खबर आती हैं कि घास काटते हुए वह गिर गई, लेकिन उन्हें समय पर इलाज नहीं मिला और उनका निधन हो गया। कोई बच्चा अचानक बीमार पड़ जाता हैं तो लोग परेशान हो जाते है। कई किलोमीटर की यात्रा करने के बाद बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाया जाता था। यह सारे दृश्य मन को बहुत दुःखी करते है। इसलिए हम समय-समय पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में रूद्रप्रायग सहित उत्तराखंड के कई दूरस्थ गांवों में स्वास्थ्य जांच के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करते है। इन शिविरों में लोगों को निःशुल्क दवाइयां प्रदान करते है। इन शिविरों आए जिन लोगों के ऑपरेशन और तमाम दूसरी गंभीर बीमारियों की जांच की आवश्यकता होती हैं, हम उन्हें देहरादून, ऋषिकेश और रूद्रप्रयाग स्थिति बडे अस्पतालों में इलाज के लिए लेकर जाते है। दिल्ली और उत्तराखंड में हम कुष्ठ रोगियों, दिव्यांगजनों की जागरूकता के लिए निरंतर अभियान चला रहे है।
मैं मनाता हूं कि आज भी उत्तराखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की बहुत आवश्यकता है। हम एक छोटा सा प्रयास कर रहे है। कोशिश हैं हमारे लोगों को स्वास्थ्य की बेहतर से बेहतर सुविधाएं मिल सके। इसी तरह हम शिक्षा के लिए भी निरंतर काम कर रहे है। पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों में चल रहे स्कूलों के बच्चों के पास कई बार देखने में आता हैं कि इन बच्चों के पास स्कूल यूनिफॉर्म नहीं है, कई स्कूलों को भवन जर्जर हालात में है। बच्चों के पास बैठने के लिए टेबल-कुर्सियां नहीं है। हम सबसे पहले तो ऐसे स्कूलों के भवनों को दूरूस्त करने की दिशा में काम कर रहे है, जो जर्जर स्थिति में है। इस दिशा में हमने कई स्कूलों में नये क्लासरूम बनाए है। स्कूली बच्चों को स्कूल ड्रेस, स्कूल बेग, कॉपी-किताबें, स्कूल फीस और स्कूल के लिए टेबल-कुर्सियों का इंतजाम किया है। हम कई गरीब एवं निम्न आय वर्ग के बच्चों को विभिन्न स्कूलों में दाखिला दिलावा उनके भविष्य निर्माण के लिए भी काम कर रहे है।
हमारा मानना हैं कि जब बच्चे अच्छी तरह से शिक्षित होंगे तभी उनका भविष्य सही दिशा में आगे बढ़ेगा। इसलिए हम शिक्षा की दिशा में काम कर रहे है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी हमारा एक छोटा सा प्रयास ‘नई पहल नई सोच’ के जरिए जारी है। पिछले कई वर्षों से इस दिशा में हम पर्यावरण साफ-सुथरा रहे। इस के लिए हम अपने गांव दरम्वाड़ी, सन और सतेराखाल के बजार में कूड़ेदान लगा रहे है। इसका सुफल परिणाम यह हुआ हैं कि आज के समय में इन क्षेत्रों में आपको कूड़ा इधर-उधर बिखरा हुआ नहीं मिलता है। जिससे इस क्षेत्र में सफाई की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है।
हम अपनी दोनों संस्थाओं ‘कलश ट्रस्ट’ और ‘नई पहल नई सोच’ के तत्वावधान में अपनी लोक संस्कृति, अपने लोक परिवेश, अपनी लोक परंपराओं और इन से जुड़े लोगों की सेवा कर रहे है। हम खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि इन संस्थाओं के माध्मय से हमें अपने लोक और अपने लोगों की सेवा करने का मौका मिला है। कलश की स्थापना हमने आदरणीय बड़े भाई साहब और लेखक-कवि ओम प्रकाश सेमवाल जी के सानिध्य में की, उद्देश्य था कि एक ऐसा मंच स्थापित किया जाए, जिसके माध्यम से अपनी भाषा-बोली का संरक्षण तो हो ही, साथ ही ऐसे लोगों को मंच मिले जो लोग, बहुत अच्छा पढ़ते-लिखते हैं, लेकिन उनकी रचनाओं को वह मंच नहीं मिल पाता, जिसके वह हकदार है। कलश के माध्मय से हम देशभर में कई कवि सम्मेलनों का आयोजन कर चुके है। इन मंचों पर हमने गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के साथ ऐसे लोगों को मंच प्रदान किया है। जो गुमनामी की आगोश में अपनी रचनाओं के साथ जी रहे थे। कलश के सानिध्य में हम उत्तराखंड की भाषा-बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने लिए निरंतर आवाज उठा रहे है। मुझे विश्वास हैं कि हमारी यह आवाज एक दिन उन कानों तक जरूर पहुंचेगी, जिन्होंने यह निर्णय लेना है, और हमारी भाषा-बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा।
कलश हमारी सांस्कृतिक विचारधारा है। जिसके माध्यम से हम उत्तराखंड की लोक संस्कृति को विश्व सांस्कृति मंच पर नयी पहचान दिलाने में आगे बढ़ रहे है। ‘नई पहल, नई सोच’ के माध्यम से हम उन लोगों के लिए काम कर रहे है। जिन्हें हमारे ही लोगों ने अंतिम छोर पर अकेले छोड़ दिया था। हम उन कलाकारों, साहित्यकारों, बुर्जर्गों, दिव्यांग बच्चों, खेल प्रतिभाओं और उन जरूरमंद लोगों के लिए ‘नई पलह नई सोच’ के पटल पर काम कर रहे है। जिन्हें आज सही मायने में मदद की आवश्यकता है। मुझे आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारी सेवा की इस कड़ी में आज असंख्य लोग जुड़े हैं, जिन्हें हम सेवाएं दे रहे है। इस कड़ी में हौसलों की उड़ान कार्यक्रम के माध्यम से हमने उत्तराखंड के उन दिव्यांग कलाकारों को मंच प्रदान किया, जो उत्तराखंड के दूर-दराज के गांव में रहते हैं। इन कलाकारों के हुनर को निखारने के लिए हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं। इसी के साथ अनाथालयों में रह रहे बच्चों, वृद्धाश्रमों में रहे बुर्जर्गों, तमाम खेलों से जुड़े दिव्यांग खिलाड़ियों को हम अपनी संस्था नई पहल नई सोच से जोड़ते हुए, सेवाएं दे रहे हैं।
आपको बता दें की संजय शर्मा दरमोड़ा आज के संकट के समय में उत्तराखंड के दूरस्थ ग्रामीणों क्षेत्रों में बसे गरीब और असहाय लोगों तक मदद तो पहुंचा ही रहे हैं। साथ ही उत्तराखंड के लोक कलाकारों तक भी निरंतर मदद पहुंचा रहे है। इन कलाकारों में मुख्य तौर पर वे कलाकार हैं, जो पर्दे की पीछे रहकर मंच की शोभा बढ़ाते है। इसी के साथ संजय दरमोड़ा अपने परिवार और के साथ मिलकर उत्तराखंड का कोई गांव हो, स्कूल हो, कुष्ठ रोग आश्रम हो, वृद्धाश्रम हो दिव्यांगजन हो या फिर कोई जरूरतमंद व्यक्ति, हर व्यक्ति तक सेवा पहुंचा रहे है।
अपनी सेवाओं को धरातल पर उकेरने वाले संजय शर्मा दरमोड़ा जी अपनी सेवाओं के बारे में बताते हैं कि मेरा सौभाग्य हैं कि मेरे साथ इतनी बड़ी संख्या में कई लोग, सेवा के मार्ग पर चल रहे है। मेरे पिताजी स्वं. मनसाराम दरमोड़ा जी का आशीर्वाद मेरे साथ है। माँजी मेरे प्रेरक के रूप में हमारे साथ खड़ी है। मेरी पत्नी प्रतिभा शर्मा, नई पहल नई सोच और कलश ट्रस्ट के सभी सदस्य रात-दिन मेरे संघर्षों के साथ है। ऐसे में मैं कह सकता हूं कि जिस पथ पर हम चल रहे है। उस पथ पर चलते हुए हम सेवा धर्म के नये मायने स्थापित करेंगे और असंख्य जरूरमंद लोगों की सेवा कर पाएंगे।