bagwal-fair-devidhura

चंपावत: रक्षाबंधन पर्व के मौके पर आज कुमांऊ के चंपावत जनपद स्थित देवीधुरा मंदिर के प्रांगण में ऐतिहासिक बग्वाल खेली गई। जिला प्रशासन द्वारा कोरोना गाइडलाइन के तहत ही बग्वाल मेले का आयोजन किया गया था। चार खाम और सात थोक के बीच करीब आठ मिनट चली फूलों, पत्थरों और ईंटों की प्रसिद्ध बग्वाल में 75 से अधिक लोग घायल हुए हैं। घायलों में रणबांकुरों के अलावा कुछ दर्शक और कवरेज कर रहे मीडिया कर्मी भी शामिल रहे।

आज सुबह से ही मंदिर में विशेष पूजा अर्चना का दौर शुरू हो गया। सुबह छह बजे पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी के नेतृत्व में वाराही धाम में विशेष अनुष्ठान संपन्न हुआ। सुबह 11:02 बजे से शंखनाद के साथ चारो खामों ने फलों की बग्वाल शुरू कर दी थी। उसके कुछ ही सेकेंड बाद वहां पत्थरो, ईटो और डंडों की बग्वाल शुरू हुई। 11:10 बजे धर्मानंद पुजारी ने शंखनाद और चंवर झुलाकर बग्वाल समापन की घोषणा की। इस बीच पत्थर और ईंट लगने से रणबाँकुरे सहित 75 लोग घायल हो गए। सभी घायलों का नजदीकी अस्पताल में उपचार कराया गया। घायलों की हालत खतरे से बाहर है। सभी का उपचार कर दिया गया है। प्रशासन की ओर से मौके पर एंबुलेंस सहित पूरा स्टाफ तैनात किया गया था।

उत्तराखंड के कुमांऊ क्षेत्र के चंपावत जनपद में स्थित देवीधुरा के मंदिर के प्रांगण में रक्षाबंधन के दिन ऐतिहासिक और पारंपरिक लोक त्यौहार बग्वाल मनाया जाता है। देवीधुरा के मंदिर में बारही देवी को प्रसन्न करने के लिये रक्षाबंधन के दिन मनाये जाने वाले इस अनोखे पारंपरिक लोक त्यौहार (बग्वाल) में पत्थर फेंकने का खेल खेलकर लहू बहाये जाने की परंपरा है। हर साल रक्षाबंधन के दिन श्रावण की पूर्णिमा पर आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग बारही देवी को प्रसन्न करने के लिए देवीधुरा के मंदिर के प्रांगण में इकट्ठे होकर एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर बग्वाल मनाते हैं। मान्यता है कि जब खेल के दौरान एक मानव बलि के बराबर लहू बहाया जाए तभी देवी प्रसन्न होती हैं। पत्थर फेंकने के इस खेल को देखने के लिए आसपास के गांवों के हजारों लोग आते हैं। पत्थर फेंकने का यह खेल केवल 10 मिनट के लिए होता है। इस दौरान सैकड़ों लोग घायल हो जाते हैं।

हालाँकि वर्ष 2013 में नैनीताल हाईकोर्ट ने इस खेल में पत्थरों का इस्तेमाल ना करने के आदेश दे दिए थे। तभी से इस खेल में पत्थरों की जगह फूलों और फलों का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। परन्तु अभी भी यहाँ पुरानी परम्परा जारी है।