चौबट्टाखाल विधानसभा से उत्तराखंड क्रांति दल के उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह रावत पिछले तीन महीने (जुलाई, अगस्त, सितम्बर-अक्टूबर) में अब तक 225 गांवों का भ्रर्मण कर चुके हैं। अब तक वह लगभग 4095 किलोमीटर का सफर पैदल और कार से तय कर चुके हैं। इस दौरान वे घर-घर तक अपने घोषणा पत्र दे रहे हैं और जन समस्याओं को सुन रहे हैं।

इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों की हकीकत देखकर वीरेंद्र सिंह रावत काफी आहात दिखे, उन्होंने कहा कि उत्तराखंड को बने 21 साल हो गए हैं। हमने भी एक क्रांतिकारी, आंदोलनकारी, राज्यहितकारी बनकर 1994 मे उत्तराखंड बनाने के लिए लाठी, डंडे, गोली खायी, जेल गए, शोषण सहा। इस आन्दोलन में हमारे 42 आंदोलनकारी शहीद हुये थे जबकि हजारों लापता हुये। उन्होंने कहा कि क्या हमने अलग उत्तराखंड राज्य इसीलिए बनाया था? इसलिए बनाया था की उत्तराखंड के उत्तराखंडी को मूल सुविधा से वंचित रहना पड़े, रोना आता है आज भी गांव मे बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार नहीं है। बुजुर्ग, महिला, युवा, बच्चे परेशान हैं। अंधेरा होते ही घर के अंदर दुबकना पड़ता है। कहीं जंगली जानवर ना आ जाए।

रावत ने कहा कि उन्होंने गांव भ्रमण के दौरान लोगों के दर्द को करीब से देखा। गांवों में लोगों के घरों मे शौचालय नही हैं, लाइट नही है, और ऊपर से घर के बाहर बाघ का आतंक लगातार बना रहा है। ऐसे में रात में छोटे बच्चों या किसी को भी शौच जाना हो तो कैसे और कहाँ जायेंगे?, इसके अलावा  बंदर और सुवर खेतो का नाश मार रहे है, मकान जर-जर हो रखे हैं, जिनमे रहना मुश्किल हो रखा है। स्कूल की बिल्डिंगों की हालत भी जर्जर है। बच्चे टूटी छत मे पड़ने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं का तो और भी बुरा हाल है। कहीं डॉक्टर नही हैं तो कहीं कोई दवाईयां नही हैं। बेचारा इंसान बिना इलाज के ही मर जाता है। रोजगार है नही, युवा नशे मे बर्बाद है, रोड टूटी हुई हैं। कई-कई गांव तक रोड नही बनी है।

विरेन्द्र सिंह रावत ने कहा लगाया कि पिछले 21 सालों मे चौबट्टाखाल विधानसभा ने मुख्यमंत्री, केबिनेट मंत्री एमपी, एमएलए दिए लेकिन चौबट्टाखाल विधानसभा का कोई विकास नही हुआ।

कहा कि अगर ये नेता 21 साल मे बारी-बारी से इस छेत्र का विकास करते तो इस क्षेत्र की यह दुर्दशा नही होती। उन्होंने कहा कि अब जनता जाग चुकी है। जनता राष्ट्रीय पार्टियों के फर्जी घोषणा पत्र पर अब विश्वास नही करेगी। क्षेत्रीय पार्टी ही क्षेत्र का विकास कर सकती है।

जगमोहन डांगी