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उत्तराखंड में सख्त भू-कानून बनाए जाने की मांग को लेकर पिछले लम्बे समय से आन्दोलनरत उत्तराखंड भू-कानून संघर्ष समिति दिल्ली-एनसीआर अब निर्णायक जंग के मूड में आ गई है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में अगले दो महीने बाद यानी 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विधानसभा चुनावों से पहले वर्तमान धामी सरकार के कार्यकाल का अंतिम विधानसभा सत्र 9 और 10 दिसंबर को राजधानी देहरादून में होने जा रहा है। और जिस तरह से हाल के दिनों में सरकारों ने जनता के दबाव में कृषि कानून तथा देवस्थानम बोर्ड जैसे बड़े फैसलों को वापस लेना का निर्णय लिया है, उसको देखकर लगता है कि अगर उत्तराखंड की जनता भी राज्य सरकार पर दबाव डालने का संगठित प्रयास करेगी तो उत्तराखंड में भी हिमांचल प्रदेश की तर्ज पर एक सशक्त भू-कानून बनाया जा सकता है।

इसी को लेकर लम्बे समय से संघर्षरत दिल्ली-एनसीआर की भू-कानून संघर्ष समिति द्वारा 7 दिसम्बर (मंगलवार) को उत्तराखंड सरकार के दिल्ली, कोटला रोड़ स्थित स्थानिक आयुक्त कार्यालय के बाहर सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक एक धरना प्रदर्शन एवं सामूहिक अनशन रखा गया है। जिसमे दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले तमाम प्रवासी उत्तराखंडी शामिल होंगे और अपनी आवाज को उत्तराखंड की धामी सरकार तक पहुंचाएंगे। ताकि उत्तराखंड सरकार दो दिन बाद होने जा रहे अंतिम विधानसभा सत्र में सख्त भू कानून को लेकर विधेयक लाये और उसे ध्वनिमत से पारित कर कानून बनाने का रास्ता साफ करे।

उत्तराखंड भू-कानून संघर्ष समिति के जगत सिंह बिष्ट ने दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले सभी प्रवासी उत्तराखंडियों से आग्रह करते हुए कहा कि अभी नहीं तो फिर कब?, उन्होंने कहा कि इस समय उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव मुहाने पर हैं। ऐसे में अगर इस समय हम लोग एक जुट एक मुट होकर जोर लगायेंगे तो सरकार निश्चित तौर पर हमारी मांग को इसी विधानसभा सत्र में पूरा करेगी। वर्ना फिर बहुत देर हो जाएगी। इसलिए 7 दिसम्बर को अधिक से अधिक संख्या में कोटला स्थित धरनास्थल पर पहुंचकर इस आन्दोलन को सफल बनाने का प्रयास करें।

भू कानून संघर्ष समिति का कहना है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा भू सुधार कानूनों में संशोधन करके राज्य में भूमि खरीद की असीमित छूट दे दी गई है। इससे राज्य में भूमिहीन हो रहे स्थानीय नागरिकों में काफी रोष है। समिति का कहना है कि सरकार द्वारा भूमि खरीद की असीमित छूट दिए जाने से पिछले कुछ वर्षों में बाहरी लोगों द्वारा जमीनों की खरीद-फरोख्त की जा रही है। जिसके कारण प्रदेश की संस्कृति सभ्यता आदि को भारी खतरा होने की आशंका के चलते आज स्थानीय लोग अपनी जमीन में चौकीदारी करने को मजबूर हो रहे हैं। संघर्ष समिति का कहना है कि उत्तराखंड की सामाजिक सांस्कृतिक एवं मूल अवधारणा को बनाए रखने हेतु उत्तराखंड में भी हिमाचल की तर्ज पर सशक्त भू संरक्षण कानून बनाया जाना चाहिए।