देश में कई व्रत (उपवास) रखने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। हिंदू धर्म में व्रत आस्था से जुड़े हुए हैं। आज एक ऐसा व्रत है जो सबसे कठोर माना जाता है। जिसे हम ‘निर्जला एकादशी’ कहते हैं। यह गंगा दशहरा के अगले दिन पड़ती है। निर्जला व्रत का मतलब बिना जल पिए व्रत रखना। निर्जला एकादशी के व्रत को ज्यादा कठिन इसलिए माना जाता है क्योंकि यह व्रत जून की तेज गर्मी के दौरान रखा जाता है।
इन दिनों पूरे उत्तर भारत में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी है। ऐसे में बिना जल पिए व्रत रखना कठिन हो जाता है। इतनी गर्मी में जब पानी, शरबत समेत कई तरह के पेय पीने के बाद भी सूर्य के ताप को सह पाना आसान नहीं होता है, ऐसे में बिना पानी पिए रहना बहुत मुश्किल काम है। फिर भी लोग यह व्रत करते हैं। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से बाकी सभी एकादशी का पुण्य प्राप्त होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है, इस बार एकादशी तिथि 10 और 11 जून दोनों दिन है और द्वादशी तिथि का लोप हो रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार निर्जला एकादशी शुक्रवार और शनिवार, दोनों दिन शुभ संयोग बन रहा है।
पूरे साल की 24 एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वोत्तम मानी जाती है
पूरे साल में 24 एकादशी पड़ती है। इनमें जेष्ठ शुक्ल एकादशी धार्मिक रूप से सबसे अधिक सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु-माता पार्वती की आराधना करते हैं। यह व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से जीवन के सारे दुख दूर होते हैं और खूब धन-समृद्धि आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी तिथि का व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देश में अधिकांश स्थानों पर निर्जला एकादशी का व्रत आज ही रखा गया है। दरअसल, एकादशी तिथि का बड़ा भाग इसी तारीख को है और द्वादशी तिथि 11 जून को सुबह 5.45 बजे प्रारंभ हो जाएगी। इस वजह से निर्जला एकादशी का व्रत करने की सही तिथि 10 जून है। हालांकि 11 जून को कुछ शुभ संयोग बनने की वजह से कुछ जानकार एकादशी व्रत इस दिन रखने की सलाह भी दे रहे हैं।