Janmashtami 2022: “जीवन में हार-जीत लगी रहती है, लेकिन सफलता सिर्फ उसी व्यक्ति को मिलती है जो अपनी गलतियों और हार से सीख लेकर आगे बढ़ते हैं। हारकर निराश होना किसी भी समस्या का हल नहीं है। “वर्तमान में भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता हैं। कारण जो समस्यायें वर्तमान में हैं, वे ही समस्याएं तत्समय में भी थी, पर श्रीकृष्ण ने विपरीत परिस्थतियों में अपने आपको कैसे संभालें, इसके के लिए उनकी शिक्षाएं आज भी कारगर हैं।
जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण, भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
जन्माष्टमी कथा
द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।
वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैँ इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।
कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। और बड़े होने पर कंस को मारकर अपने नाना उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।
जन्माष्टमी का महत्व
इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियाँ सजाई जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है। स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी का मुहूर्त
1. अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।
2. अष्टमी केवल दूसरे ही दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
3. अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन में किया जाता है।
4. अष्टमी दोनों दिन आधी रात को विद्यमान हो और दोनों ही दिन अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
5. अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में दोनों दिन रोहिणी नक्षत्र का योग न हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
6. अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा।
जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि
1. इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।
2. इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
3. उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।
4. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएँ। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।
5. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।
6. यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।
जीवन में आगे बढ़ने के लिए और अपनी अलग पहचान बनाने के लिए यदि आपको क्रांतिकारी बनना पड़े तो इससे पीछे न हटें। कहने का सीधा मतलब ये है कि जरूरत के हिसाब से खुद में बदलाव करें और समाज के बारे में न सोचते हुए अपने काम पूरे करें।
जीवन में दोस्तों की भूमिका बहुत अहम होती है। हम हमेशा यही सुनते हैं कि दोस्तों की पहचान हमेशा मुश्किल वक्त में ही होती है। जिस तरह भगवान कृष्ण ने पांडवों के मुश्किल वक्त में उनका साथ दिया था, वैसे ही आपको भी अपने दोस्तों का साथ देना चाहिए। इसके साथ ही आपको ऐसे ही दोस्त बनाने चाहिए जो आपके मुश्किल वक्त में आपके साथ खड़े रहें।
जीवन में हार-जीत लगी रहती है लेकिन सफलता सिर्फ उसी व्यक्ति को मिलती है जो अपनी गलतियों और हार से सीख लेकर आगे बढ़े। हारकर निराश होना किसी भी समस्या का हल नहीं है।
किसी भी परिस्थितियों से लड़ने के लिए उसके लिए एक बेहतर रणनीति बनाना बहुत जरूरी है। बिना रणनीति के आप हर मोर्चे पर कामयाब नहीं हो पाएंगे। यदि पांडव भी श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई रणनीति का पालन नहीं करते तो शायद कौरवों के खिलाफ हुए युद्ध में उन्हें जीत नहीं मिलती।
जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आपकी सोच दूरदर्शी होनी चाहिए। इसके साथ ही जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों का आकलन करना भी आपको आना चाहिए।
व्यक्ति के जीवन में आए दिन मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। श्री कृष्ण पांडवों को बताते हैं कि हमें खराब हालातों में हार मानने के बजाए उनका सामना करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे मन में बैठा डर खत्म होगा और जब एक बार डर निकल जाता है तो व्यक्ति किसी भी हालात को सफलतापूर्वक पार कर सकता है।
जीवन में सफल बनने के लिए व्यर्थ की चिंता के साथ-साथ भविष्य के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए। हमें हमेशा अपने वर्तमान को बेहतर बनाना चाहिए। यदि आप अपने वर्तमान को संवार लेते हैं तो आपका भविष्य अपने आप ही बेहतर बन जाएगा। इसके अलावा जीवन में कभी भी अनुशासनहीन नहीं होना चाहिए।
आज के इस समय में लोग अपनी आय के हिसाब से खर्च करते हैं। लेकिन ऐसे में जरूरत पड़ने पर उनके पास पैसे नहीं होते। किसी भी तरह की मुश्किल आर्थिक परिस्थितियों से बचने के लिए हमेशा सोच-समझकर खर्च करना चाहिए। कभी भी ऐसी चीज खरीदने में पैसा खर्च न करें, जिसकी आपको जरूरत न हो।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन, भोपाल