Jakh Maharaj

हमारा देश ग्राम प्रधान देश है। यहां की सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज, त्योहार आदि का विकास गांव के द्वारा ही उजागर होता है। उत्तराखंड में गांव के नाम की सार्थकता गढ़वाल, स्वर्ग भूमि, तपोभूमि, हिमवन्त प्रदेश, बद्रीकाश्रम, केदार खन्ड, के नाम से जानी जाती है। पर्वत शिखरों पर अनेक भग्नावशेषों के कारण इस का नाम गढ़वाल पड़ा। गढ़वाल की पावन पूज्य भूमि पर ऋषि महर्षियों ने अनेक धार्मिक ग्रंथ वेद, वेदांग आदि शास्त्र रचे। जो मानव मात्र का कल्याण, उपकार, सुख शांति आदि के हेतु हैं।

पूरे विश्व में सदियों से ही गढ़वाल का वातावरण शान्ति मय रहा है। जिस कारण से श्रषि मुनियों ने यहां पर तपस्या करके आध्यात्मिक सत्ता के साथ आत्मसात किया है। आत्म सात का यह भाव मन्दिर के रूप में परिणित हुआ। इसी कारण हमारे उत्तराखंड में 33 कोटि देवताओं को मानने की मान्यता है। जनपद रुद्रप्रयाग के ग्राम कौशलपुर में जाख देवता का मन्दिर स्थित है। जो सदियों से गांव की रक्षा करने के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। सम्पूर्ण गांव के कुल देवता के रूप में इस देवता की आराधना व पूजा की जाती है। जब भी गांव में किसी तरह का संकट आता है तो जाख महाराज अर्ध रात्रि में गांव वालों को आवाज देकर सक्षेत कर देते हैं।

समय समय पर गांव वालों के द्वारा जाख महाराज की पूजा बड़े भव्य समारोह के साथ की जाती है। जिसमें जाख महाराज के साथ क्ई अन्य देवी देवताओं का भी प्रकटीकरण होता है। इस पूजन कार्य में सम्पूर्ण क्षेत्र का जन सैलाव बड़े उत्साह के साथ दिखाई देता है। जाख महाराज अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर समूचे जन समाज में उत्साह का सन्चार पैदा कर देते हैं। विगत माह जून में ग्राम प्रधान श्रीमती पुष्पा देवी तथा वासुदेव चमोला के दिशा निर्देशन में जाख महाराज के मन्दिर में यज्ञ अनुष्ठान के साथ नव दिवसीय देवी भागवत का आयोजन किया गया। जिसमें रात दिन भव्य मेले की तरह गांव वासियों में उत्साह देखने को मिल रहा था। मान्यता है कि जाख महाराज के नाम का स्मरण करने मात्र से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।

जाख महाराज के विषय में शास्त्रों में तरह तरह का वर्णन देखने को मिलता है। कतिपय विद्वान जाख महाराज को कुबेर का रुप मानते हैं। कुछ का मानना है कि महाभारत में जब पांडव अज्ञात वास का समय भोग रहे थे, उस समय जाख महाराज ने यक्ष के रुप में उनसे तरह तरह के प्रश्न किए, सही उत्तर केवल युधिष्ठिर ने ही दिया। फलस्वरूप फिर उन्हें अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित किया। देवी भागवत में जाख महाराज की सौंर्य गाथा का वर्णन इस रूप में भी देखने को मिलता है, दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया, शिव भगवान को किसी तरह का निमंत्रण नहीं भेजा। मांता दक्ष कन्या अपने पति के इस अपमान को सहन नहीं कर पाई, फलस्वरूप गुस्से में आकर याज्ञिक वेदी में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

इस तरह के समाचार की जानकारी जैसे शिव भगवान को मिली।शिव भगवान क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने गणों को दक्ष प्रजापति के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया, लेकिन दक्ष प्रजापति के आगे शिव भगवान के गण कुछ नहीं कर पाये। अन्त में शिव भगवान ने मां काली और जाख महाराज को भेजा, मां काली और जाख महाराज ने क्षण भर में दक्ष प्रजापति के यज्ञ को समाप्त कर दिया। आज भी जाख महाराज के साथ मां काली का प्रकटीकरण अवश्य होता है। बिना मां काली के जाख महाराज की पूजा अधूरी मानी जाती है। जाख महाराज को अग्नि और जल सबसे प्रिय है।

लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला