Sangeet Natak Akademi Award: संगीत नाटक अकादमी परिषद द्वारा वर्ष 2019, 2020 और 2021 के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। इस बार 128 लोगों का चयन किया है। ये सभी लोग संगीत, नृत्य, रंगमंच, पारंपरिक/लोक/आदिवासी क्षेत्र के कलाकार हैं। लोक कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में उत्तराखंड की तीन हस्तियों को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है। इनमें हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में कला निष्पादन केंद्र के संस्थापक प्रो. डीआर पुरोहित को लोक रंगमंच, लोक संगीत के क्षेत्र में राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
इसके साथ देहरादून के ठाकुरपुर निवासी कठपुतली कलाकार रामलाल भट्ट को लोक संगीत व पपेट्री के जरिये पर्यावरण, शिक्षा व स्कूली बच्चों जागरूक करने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। वहीं, पिथौरागढ़ के ललित सिंह पोखरिया को रंगमंच के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एक विशेष समारोह में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू प्रदान करेंगी। अकादमी पुरस्कार में ताम्रपत्र और अंगवस्त्रम के साथ 1,00,000/- रुपए का नकद पुरस्कार शामिल होता है।
प्रो. डीआर पुरोहित कर रहे कला व संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य
मूलरूप से उत्तराखंड के जनपद रुद्रप्रयाग के क्वीली गांव निवासी प्रो. डीआर पुरोहित वर्तमान में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र में एडर्जेट प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2006 में उन्होंने ही इस विभाग की स्थापना की थी और वर्ष 2007 से लेकर 2010 तक इस विभाग के निदेशक भी रहे। वर्ष 2018 में वह गढ़वाल विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए। गढ़वाल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहते हुए उन्होंने कला संस्कृति, रंगमंच व पहाड़ के परंपरागत वाद्य यंत्र ढोल सहित लोक कला जैसे विषयों पर निरंतर शोध किया और उसे पहचान दिलाई। उन्हें उत्तराखंड लोक संस्कृति का ध्वजवाहक भी कहा जाता है।
कठपुतलियों को लेकर नए प्रयोग कर रहे हैं रामलाल भट्ट
कठपुतली कलाकार रामलाल भट्ट करीब 40 वर्षों से कठपुतलियों को लेकर नए प्रयोग कर रहे हैं। वह बताते हैं कि 12 वर्ष की आयु से ही उन्होंने कठपुतली का खेल दिखाना शुरू कर दिया था। अपने पिता से ही उन्हें इसकी शिक्षा मिली और वह चौथी पीढ़ी के कठपुतली कलाकार हैं। विगत 40 वर्षं से वह उत्तराखंड के दूर-दराज सहित अन्य इलाकों में कठपुतली के जरिये पर्यावरण, शिक्षा सहित अन्य विषयों को लेकर कठपुतली शो किए हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कठपुतली को आम जन में जागरुकता का माध्यम बनाया।
ललित सिंह पोखरिया ने रंगमंच को बनाई अपनी कर्मभूमि
मूलरूप से पिथौरागढ़ के डोकूना गांव में एक दिसंबर, 1960 को जन्मे ललित सिंह पोखरिया की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। इसके बाद उनका परिवार खटीमा के चकरपुर में आ गया था। आगे की पढ़ाई वहां करने के बाद वह पीलीभीत और फिर लखनऊ चले गए। स्नातक करने के बाद बाद साहित्य व रंगमंच की दुनिया में रुचि के चलते उनका चयन वर्ष 1984 में भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ में हो गया। इसके बाद वह रंगमंच की दुनिया में इस कदर रम गए कि कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रंगमंच की दुनिया को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले ललित सिंह पोखरिया नाटक लेखन के साथ ही अभिनय व निर्देशन के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं।
उन्हें भारतीय नाट्य अकादमी रजत जयंती पुरस्कार, कलाकार एसोसिएशन उत्तर प्रदेश की ओर से सर्वश्रेष्ठ लेखक निर्देशक पुरस्कार, मंजुश्री पुरस्कार, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की ओर से कलानिधि पुरस्कार और मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा सीनियर फ़ेलोशिप से कई महत्वपूर्ण सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। अब तक 55 नाटकों की रचना जिसमें से 30 बच्चों के लिए लिखे गए। अभी तक 72 नाटकों का निर्देशन और 60 से अधिक नाटकों में अभिनय कर चुके हैं।