danda-nagraja- mela

पौड़ी: पौड़ी गढ़वाल के बणेलस्यूं पट्टी स्थित पौराणिक डांडा नागराजा मंदिर में प्रत्येक वर्ष बैसाखी के दूसरे दिन लगने वाला ऐतिहासिक डांडा नागराजा इस वर्ष आगामी 15 अप्रैल को आयोजित किया जा रहा है। इस मेले को कण्डार मेला भी कहा जाता है। मण्डल मुख्यालय पौड़ी से करीब 45 किलोमीटर दूर अदवानी-बगानीखाल मार्ग पर स्थित डांडा नागराजा के नाम से विख्यात भगवान कृष्ण (नागराज देवता) का यह पौराणिक मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र है। मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रीडांडा नागराजा के दर्शन करने पहुंचते हैं।

मंदिर समिति मेले को भव्य रूप से मनाये जाने की तैयारियों में जुटी है। मंदिर समिति ने एसडीएम से मुलाकात कर मेले के दिन व्यवस्थाएं करने के लिए सहयोग की अपील की है। मंदिर समिति के उपाध्यक्ष उपेंद्र भट्ट व मीडिया प्रभारी सिद्धांत उनियाल ने सोमवार को एसडीएम को ज्ञापन देकर मेले के दौरान स्वास्थ्य शिविर लगाने व अन्य व्यवस्थाएं जुटाने के लिए ज्ञापन दिया। एसडीएम ने समिति को उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया।

डांडा नागराजा की पौराणिक मान्यता

करीब 140 वर्ष पुराने ऐतिहासिक डांडा नागराजा मंदिर के बारे में मान्यता है कि 140 साल पहले स्थानीय लसेरा गाँव में गुमाल जाति के पास एक दुधारू गाय थी। जो अन्य डंगरों के साथ डांडा (पहाड़) घास चरने जाती थी। और वहाँ एक पत्थर को हर रोज़ अपने दूध से नलहाती थी। इस वजह से गाय के मालिक को उसका दूध नहीं मिल पाता था। इस बात से परेशान मालिक ने एक दिन गुस्से में आकर गाय पर ऊपर कुल्हाड़ी से वार कर दिया। परन्तु सयोंग से उसका वार गाय को न लगकर सीधे उस पत्थर पर जा लगा जिसे वह गाय अपने दूध से नहलाती थी। कुल्हाड़ी लगते ही पत्थर दो भागों में टूट गया और इसका एक भाग आज भी डांडा नागराजा मंदिर में मौजूद है। इस क्रूर घटना के बाद गुमाल जाती पूरी तरह से समाप्त हो गई।