रामपुर तिराहा कांड : करीब तीन दशक पहले पृथक उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान शहीद हुए आन्दोलनकारियों के लिए न्याय की आस अब भी जगी है। उत्तराखंड राज्य गठन की मांग को लेकर हुए आंदोलन के दौरान गैंगरेप और दूसरे मामलों में सीबीआई ने चश्मदीद की गवाही कराई। इस दौरान सभी 15 आरोपी कोर्ट में मौजूद रहे। आज दो मुकदमों में कोर्ट में राधा मोहन द्विवेदी और मिलाप सिंह की गवाही हुई। वहीं लंबे समय से फरार चल रहे आरोपी विक्रम सिंह को कोर्ट ने भगोड़ा घोषित करते हुए उसका स्थाई गैर जमानती वारंट सीबीआई को जारी किया।
बुधवार को मुजफ्फरनगर कोर्ट में रामपुर तिराहा कांड के दो मुकदमों में राधा मोहन द्विवेदी और मिलाप सिंह की कोर्ट में गवाही हुई। मामले की सुनवाई एडीजे संख्या सात शक्ति सिंह कर रहे हैं। दोनों मामलों में सीबीआई ने कोर्ट में रामपुर निवासी चश्मदीद गवाह पेश किया गया। इस दौरान 15 आरोपी कोर्ट में मौजूद रहे।
वहीं, तीन आरोपियों राधा मोहन द्विवेदी, तमकीन अहमद और संजीव भारद्वाज के वकील ने उनकी हाजिरी माफी का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। सीबीआई के आवेदन पर कोर्ट ने लंबे समय से फरार चल रहे आरोपी विक्रम सिंह को भगोड़ा घोषित किया गया और उसका स्थायी गैर जमानती वारंट जारी किया गया है।
ये था पूरा मामला
बता दें कि करीब तीन दशक पहले पृथक उत्तराखंड गठन की मांग को लेकर पहाड़ों में आंदोलन शुरू हो गया था। अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर 2 अक्टूबर 1994 को देश की राजधानी दिल्ली में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन तय किया गया था। जिसमे शामिल होने के लिए 1 अक्टूबर 1994 की रात को सैकड़ों की संख्या में पहाड़ से लोग गाड़ियों में भरकर दिल्ली कूच कर रहे थे। इस दौरान आधी रात को तत्कालीन यूपी पुलिस द्वारा मुजफ्फरनगर जिले के छपार थाना क्षेत्र में रामपुर तिराहे पर सभी आंदोलनकारियों की गाड़ियों को रोक लिया गया था। पुलिस ने आंदोलनकारियों को आगे नहीं जाने दिया तो आंदोलनकारी वहीं सड़क पर बैठकर प्रदर्शन करने लगे। आन्दोलनकारियों के अनुसार यूपी पुलिस ने इस आंदोलन का कुचलने के लिए उन पर लाठीचार्ज किया और आंसू गैस छोड़नी शुरु कर दीं। इसके बाद पुलिस ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियां भी चलाई थीं। इसमें कई आंदोलनकारी शहीद हुए थे। इस दौरान महिलाओं के साथ भी ज्यादती की गई थी। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और सामूहिक दुष्कर्म तक किया गया था।
आज़ाद भारत में सत्ता के दुरुपयोग के सबसे शर्मनाक मामलों में से एक रामपुर तिराहा कांड को लेकर 7 अक्टूबर, 1994 को उत्तराखंड संघर्ष समिति ने आधा दर्जन याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल कीं। 6 दिसंबर, 1994 को कोर्ट ने सीबीआई से खटीमा, मसूरी व मुजफ्फरनगर कांड पर रिपोर्ट मांगी।
सीबीआई ने कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि उत्तराखंड आंदोलन के दौरान 7 सामूहिक दुष्कर्म के मामले हुए, 17 महिलाओं से छेड़छाड़ की गई और 28 हत्याएं की गईं। सीबीआइ के पास कुल 660 शिकायतें आई थीं। 12 मामलों में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी।
आंदोलन के दौरान गोलीकांड में 7 लोगों की मौत और महिलाओं से हुए गैंग रेप, छेड़छाड़ की शिकायतों के मामले में दर्ज मुकदमों की विवेचना सीबीआई ने की थी। सीबीआई ने विवेचना कर अलग-अलग मामलों में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी थी। दोनों मामलों में सीबीआई ने कोर्ट में रामपुर निवासी चश्मदीद गवाह पेश किया। जबकि तीन आरोपियों राधा मोहन द्विवेदी, तमकीन अहमद और संजीव भारद्वाज के अधिवक्ता की ओर से उनकी हाजिरी माफी का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। सीबीआई के आवेदन पर कोर्ट ने लंबे समय से फरार चल रहे आरोपी विक्रम सिंह को भगोड़ा घोषित करते हुए उसका स्थाई गैर जमानती वारंट जारी किया। बीते कई सालों से उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला है।