नोएडा : उत्तराखंड में पौड़ी जिले के गहड-मलेथा और उत्तरकाशी जिले के नैटवाड-पोखरी इलाकों में फलोत्पादन कर रहे, फलोत्पादक अर्जुन सिंह पंवार को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ‘कर्मयोगी कृषक सम्मान’ से नवाजा गया। पर्वतीय लोकविकास समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र सेमवाल और कात्यायनी ट्रस्ट की चेयरपर्सन कुसुम असवाल के हाथों से फलोत्पादक अर्जुन सिंह पंवार को यह सम्मान दिया गया।

गौरतलब है कि पीडब्लूडी से सेवानिवृत अर्जुन सिंह पंवार ने उत्तरकाशी जिले में नैटवाड़ इलाके के पोखरी गाँव में करीब साढ़े सात हजार से जयादा उन्नत किस्म के सेब के पेड़ लगाये हैं। जहाँ पर वे लाखों रुपये के सेब का व्यापर कर रहे हैं. उनके बगीचे से उत्पादित सेव दिल्ली, कानपुर, कलकत्ता और अहमदाबाद तक बेचे जाते हैं. यही नहीं फलोत्पादक अर्जुन सिंह पंवार ने श्रीनगर के नजदीक अपने गांव गहड़ और मलेथा गांव में भी आम और लीची के बड़े-बड़े बगीचे लगाये हैं।

पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्वतीय लोकविकास समिति और बुरांस साहित्य एवं कला केंद्र द्वारा नोएडा  के सेक्टर-62 स्थित प्रेरणा भवन में “पहाड़, प्रकृति और पर्यावरण” पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।

वरेण्य अतिथि के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख श्री कृपा शंकर ने कहा कि पर्यावरण आज समूची दुनिया की चिंता का विषय है, भारत गो आधारित अर्थव्यवस्था, जैविक खेती और ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों का उपयोग कर विश्व को रास्ता दिखा सकता है। भारत को प्रकृति के सम्मान और पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा हिमालय और गंगा की पावन भूमि उत्तराखंड से मिलती रही है।

पर्यावरण परिचर्चा के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध फलोत्पादक और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अर्जुन सिंह पंवार ने कहा कि प्रकृति मनुष्य की पोषक है, उसके लिए मां स्वरूपा है। उत्तराखंड हो या अन्य कोई भी राज्य विकास के लिए एक स्थाई और ठोस नीति होनी चाहिए। राजनेताओं से किसी बड़े परिवर्तन और समाज हित की अपेक्षा करना नासमझी है। सरकार और नेता एक सीमित समय के लिए प्रभाव डालते हैं, स्थाई तो प्रकृति और पहाड़ में रहने वाले जन हैं, जिन्होंने वहां के ही नहीं पूरे देश के पर्यावरण को रक्षित करना है। प्रवासी लोगों को अपने पैतृक मकानों को सुधार कर कम से कम वर्ष में एक बार अवश्य गांव जाना चाहिए। इसी तरह वहां काम कर रहे किसानों को उन फलों, सब्जियों या अन्न के उत्पादन को प्राथमिकता देनी चाहिए जो अधिक उपयोगी भी हों और जिनका बाजार भाव भी अधिक हो।

परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए पर्वतीय लोकविकास समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र दत्त सेमवाल ने कहा कि प्रकृति वास्तव में मनुष्यों के लिए जीवनदायिनी है, स्वार्थ के लिए इसका अंधाधुंध विदोहन होता है तो यह रौद्र रूप भी दिखाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण पर कोरी गोष्ठियां ही न हों बल्कि इसे जनजागरण का अभियान बनाया जाए। महानगरों में भी प्राथमिक कक्षा से ही नौनिहालों को पर्यावरण की शिक्षा देने की आवश्यकता है।

कात्यायनी की चेयरपर्सन कुसुम असवाल ने कहा कि पर्यावरण के प्रति जब तक बच्चा बच्चा जागरूक नहीं होगा तब तक सफलता नहीं मिलेगी। प्रवासी यदि गांव की ओर, अपने घरों और खेत खलिहानों की देखरेख करने जाते रहेंगे और जो हमारे बंधु पहाड़ों में जीवन बिता रहे हैं उनके साथ हाथ बढ़ाएंगे तो जब वहां की बसावट सुरक्षित रहेगी तो हिमालय भी सुरक्षित रहेगा।

परिचर्चा का विषय प्रवर्तन करते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के मीडिया सलाहकार डॉ. सूर्य प्रकाश सेमवाल ने कहा कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण आज सारी दुनिया में कहीं जलवृष्टि हो रही है, कहीं तूफान आ रहे हैं तो कहीं बेमौसम भारी बर्फ पड़ रही है, दीर्घावधि में मानवता के लिए ये शुभ संकेत नहीं है। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो भारत में भी ऐसे दुष्परिणाम आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। लोक भारती के राष्ट्रीय सह संपर्क प्रमुख कुँवर नीरज सिंह ने नदियों की स्वच्छता अभियान को और धरातल पर बल देने की बात करते हुए लोक भारती के नदी बचाओ अभियान का उल्लेख किया। वहीँ पद्मश्री ने गौ सेवा और जैविक कृषि के लाभ गिनाए। उन्होंने कम्युनिटी फार्मिंग पर जोर दिया, बताया महानगरों में आपके पास खेत नहीं हैं तो आसपास के किसान को गोद लें, अर्थात हमेशा उनसे ही सब्जी, फल, अन्न आदि लेंगे तो वे आपके लिए जैविक खेती कर सकते हैं।

विंग कमांडर डॉ. सरिता नेगी पंवार ने कहा कि हमें पर्यावरण बचाने की पहल अपने घर से करनी चाहिए। पोलिथीन का उपयोग न करके और कूड़ा निस्तारण की उचित व्यवस्था करके हम पर्यावरण बचाने में अपना योगदान दे सकते हैं।

रणजीत रावत स्वरोजगारवाला ने कहा कि अक्सर उत्तराखंड में गाँव में हम लोग कहते हैं कि बंदरों ने फसल बर्बाद कर दी है। जंगलों में फलदार पेड़ लगाकर बंदरों से अपनी खेती को बचाया जा सकता है। वहीँ सड़को के किनारे पेड़ लगाने से पर्यावरण के साथ साथ सडक दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।

पूर्व सैनिक एवं इंद्रापुरम निगम पार्षद हरीश कडाकोटी ने फलोत्पादक अर्जुन सिंह पंवार की प्रशंसा करते हुए कहा कि हम सबको पर्यावरण बचाने के लिए कुछ न कुछ पहल करनी चहिये। सब लोग संकल्प ले कि पोलिथीन का उपयोग नही करेंगे।

इससे पहले परिचर्चा के शुभारंभ में लेखिका प्रीति रमोला गुसाईं और पूजा भट्ट ने सरस्वती वंदना करते हुए आह्वान किया कि मां सरस्वती हम सबको प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की शक्ति दे। परिचर्चा में भारतीय धरोहर पत्रिका के संपादक प्रवीण शर्मा, निगम पार्षद हरीश कडाकोटी, विंग कमांडर डॉ. सरिता नेगी पंवार, लक्ष्मी बिष्ट, उत्तराखंड में स्वरोजगार पर काम कर रहे रणजीत सिंह रावत स्वरोजगारवाला, जैविक कृषि और जैविक उत्पादों पर काम कर रही इंदु भंडारी सिन्हा, भूपेंद्र सिंह रावत ने शिरकत की।

इस अवसर पर समाजसेवी विनोद कबटियाल, गोपाल असवाल, गोपाल दत्त ममगाईं, पृथ्वीपाल सिंह केदारखंडी, वरिष्ठ पत्रकार चार तिवारी, चंद्र सिंह रावत ‘स्वतंत्र’, हरीश असवाल, गोपाल नेगी, सत्येंद्र नेगी, बृजमोहन नौगाईं, सुभाष गैरोला, नीरज रावत, सौरव कबटियाल, सत्येंद्र रावत, संजय उनियाल, चंदन गुसाईं, अनिल रतूड़ी, हरपाल सिंह, ब्रिजेश मिश्र,मंजू रतूड़ी, विनीता नयाल, प्रीति रमोला गुसाईं, पूजा भट्ट, कुमु जोशी भटनागर, रेनू उनियाल, प्रतिभा डिमरी, सुमन गुसाईं बिष्ट, हेमा सरदा, पल्लवी मंडल, रश्मि मिश्रा आदि मौजूद थे। परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार प्रदीप कुमार वेदवाल ने किया।

रिपोर्ट: मंजू रतूड़ी/सौरव कबटियाल