Farmers Protest : नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसानों का आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये 3 केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित दर्जनभर राज्यों के किसानों का आंदोलन लगातार 6वें दिन भी जारी है। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन जारी है। किसानों का कहना है कि संविधान लोगों के द्वारा लोगों के लिए हैं मगर अब कॉरपोरेट इस कदर हावी हो रहे हैं कि नियम कॉरपोरेट के द्वारा कॉरपोरेट के लिए बनाया जा रहा है। इस दौरान हम जैसे किसानों का शोषण हो रहा है।
इसबीच यूपी-दिल्ली बॉर्डर पर शासन/प्रशासन द्वारा धारा 144 लगाये जाने के बाद सोमवार को किसानों ने गाजियाबाद के यूपी गेट पर किसान यूनियन की धारा 288 लगा दी है। भारतीय किसान यूनियन ने यहाँ चेतावनी का बैनर लगा दिया। बैनर पर लिखा है, ‘धारा 288 लागू है। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि पुलिस ने धारा 144 लगाकर हमें प्रतिबंधित करने की कोशिश की है, तो हमने धारा 288 लगाकर उन्हें प्रतिबंधित कर दिया है। अब हम उनकी सीमा में नहीं जाएंगे और उन्हें अपनी सीमा में नहीं आने देंगे। यानी दिल्ली यूपी गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के अलावा किसी का भी प्रवेश वर्जित है। सिर्फ किसान ही इस क्षेत्र में आ सकते हैं। तो दूसरी तरफ एक सीमा रेखा खींच दी गई है। दिल्ली से किसी को भी इस सीमा को पार करने की अनुमति नहीं है।
आखिर क्या है किसान धारा 288 और कब हुई इसकी शुरुआत
धारा 288 न तो आईपीसी की धारा है और न ही सीआरपीसी जैसे किसी कानून की धारा है। बल्कि यह धारा किसानों की धारा है। पहली बार 1988 में किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने इस धारा का इस्तेमाल दिल्ली में वोट क्लब पर किया था। इस धारा के तहत पुलिस को किसान की हद में नहीं आने दिया जाता है। सोमवार को 32 साल बाद एक बार फिर कृषि कानूनों के विरोध में भाकियू के नेतृत्व में किसानों ने गाजियाबाद में धारा 288 लगा दी है। इसके तहत इस क्षेत्र में किसानों के अलावा किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। यूपी गेट पर किसानों ने बाकायदा बैनर चस्पाकर चेतावनी लिख दी है। बैनर पर लिखा है, ‘धारा 288 लागू है। पहली बार इस धारा का प्रयोग 1988 में किया गया था। भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बताया कि यह भाकियू की अपनी धारा है। सबसे पहले 1988 में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने इस धारा का इस्तेमाल दिल्ली में वोट क्लब पर किया था। इस धारा के तहत पुलिस को किसान की हद में नहीं आने दिया जाता है। इससे आंदोलन को भी उग्र नहीं होने दिया जाता है। कोई असामाजिक तत्व घुस जाए तो भाकियू उसके खिलाफ भी अपनी धारा-288 के तहत कार्रवाई करती है। यह शांतिप्रिय आंदोलन का तरीका है। टिकैत ने कहा कि भाकियू ने 32 साल बाद देश में दूसरी बार यह धारा लगाई है। यूपी-दिल्ली बॉर्डर पर किसानों ने झोपड़ियां बनाकर इसे गांव का रूप दे दिया है। पंजाब, गुरदासपुर, उत्तराखंड के हरिद्वार, बाजपुर, रुड़की यूपी के खतौली, मुजफ्फरनगर, अयोध्या, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, बस्ती, सहारनपुर, बदायूं, मेरठ, बागपत, बड़ौत, सिसौली, हापुड, बुलंदशहर, रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, सीतापुर समेत अलग-अलग राज्य व जनपदों से किसान लगातार आंदोलन में शामिल होने के लिए पहुँच रहे हैं। किसानों की लगातार बढ़ रही संख्या के बीच राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने तीन दिसंबर को सरकार से वार्ता होने तक यूपी गेट पर ही डटे रहने का एलान किया। इसके बाद आगे की रणनीति बनाने की बात कही।