दिल्ली : गढ़वाली भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार स्व. कन्हैयालाल डंडरियाल की अठारहवीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया गया। पूर्वी विनोद नगर स्थित स्यारा रिटेल्स में बुरांस साहित्य एवं कला केन्द्र ने कन्हैयालाल डंडरियाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गुरुवार, 2 जून को एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर पत्रकार एवं साहित्यकार प्रदीप वेदवाल ने गढ़वाली भाषा के महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल के साथ बिताए अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि दिल्ली-एनसीआर में मैंने डंडरियाल जी के साथ कई कवि सम्मेलनों का संचालन करते हुए उनसे से बहुत कुछ सीखा और समझा है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सुषमा जुगरान ध्यानी ने चांठों का घ्वीड़ यात्रा संस्मरण को गढ़वाली साहित्य की अमूल्य निधि बताते हुए कहा कि अपनी इस यात्रा में लेखक कन्हैयालाल डंडरियाल पर्वत, झरने, खेत-खलिहान, नदी-पनघट से लेकर और हवाओं तक से बात-विचार करते नज़र आते हैं। इस दौरान सुषमा जुगरान ध्यानी और राज्यसभा सचिवालय में अतिरिक्त निदेशक मीना कण्डवाल ने महाकवि डंडरियाल की रचनाओं का शानदार पाठ किया।

वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चंद्र जुगरान ने कहा कि डंडरियाल जी जैसे कालजयी गढ़वाली कवियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उनकी रचनाओं को गेय शैली की दरकार है। जब गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी ने महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल के गीत (दादू मी पर्वतों कू वासी…) को स्वर दिया, तब मुझ जैसे आम लोगों ने कवि के रूप में कन्हैयालाल डंडरियाल को जाना। उन्होंने नई शिक्षा नीति में डंडरियाल जी जैसे गढ़वाली कवियों और उन पर लघु शोध की भी बात की।

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उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी ने साहित्यकार कन्हैयालाल डंडरियाल के लेखन को याद करते हुए डंडरियाल जी के सादा जीवन और उच्च विचारों के संस्मरण साझा किए। युवा पत्रकार दीपिका नयाल दियोपा ने कन्हैयालाल डंडरियाल के अब तक प्रकाशित साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करने का सुझाव दिया।

ध्रुव इन्सुलेशन प्रा.लि. के निदेशक विनोद नौटियाल ने प्रसंगवश उत्तराखंड में कृषि, पलायन और भू-कानून पर एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि पहाड़ में बची-खुची खेती भी उसी पुराने ढर्रे पर होती रहेगी तो ऐसी कष्टदायी खेती के लिए पर्वतीय महिला अपने हाड़ क्यों तोड़े! विनोद नौटियाल ने कहा कि कवि कन्हैयालाल डंडरियाल पर भगवान कृष्ण की विशेष अनुकंपा थी तभी तो वो नाराजा जैसी कालजयी कृतियां लिख सके, रच सके।

वहीँ स्यारा रिटेल्स के निदेशक दीपक ध्यानी ने पर्वतीय उत्पादों के संवर्धन पर जोर दिया। उन्होंने पारंपरिक पर्वतीय परिधान पिछौड़ा के संवर्धित रूप (स्ट्राल) की नुमाइश की। उपस्थित मातृशक्ति को पिछौड़े और पुरुषों को स्यारा रिटेल्स की लोकप्रिय पहाड़ी टुपली भी पहनाई गई।

इस अवसर पर बुरांस साहित्य एवं कला केन्द्र के अध्यक्ष साहित्यकार एवं पत्रकार प्रदीप वेदवाल ने स्यारा रिटेल्स की खुचकंडी में कन्हैया का कलेऊ के तौर पर कन्हैयालाल डंडरियाल की अज्वाल़, कुयेडी, नागराजा भाग दो, तीन और चार तथा चांठो का ध्वीड़ पुस्तकें भेंट की। वेदवाल ने कवि कन्हैयालाल डंडरियाल की पुस्तक अंज्वाल़ में से चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक चारू तिवारी, उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी, वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान, वरिष्ठ पत्रकार सुषमा जुगरान ध्यानी, वासुकी फाउंडेशन के अध्यक्ष पीएन शर्मा, समाजसेविका मीना कंडवाल, समाजसेवी विनोद कपटियाल, शिक्षा विभाग दिल्ली की उपनिदेशक डा. राजेश्वरी कापड़ी, देवभूमि संवाद न्यूज पोर्टल के सत्येन्द्र नेगी, पत्रकार दीपिका नयाल दियोपा, स्यारा रिटेल्स की एक्जीक्यूटिव गरिमा सुंदरियाल और नैटवाड़ (उत्तरकाशी) में सेब क्रांति की अलख जगा रहे अर्जुन सिंह पंवार के प्रतिनिधि हरिपाल सिंह की गरिमामय उपस्थिति रही। इस आयोजन की मेज़बानी का दायित्व स्यारा रिटेल्स के प्रमोटर दीपक ध्यानी ने निभाया जबकि मंच संचालन साहित्यकार एवं पत्रकार प्रदीप वेदवाल ने किया।

डंडरियाल जी ने सत्तर-अस्सी के दशक की दिल्ली में अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी पहाड़ और वहां की संवेदना को अपने भीतर एवं बाहर समग्रता में जीया तथा अपने लेखन से लोकभाषा गढ़वाली को समृद्ध किया। उनकी कालजयी रचनाओं में से एक निम्न है….

दादू मेरि उल्यारू जिकुड़ी दादू मी पर्वतों को वासी
झम झामले दादू………
दादू मेरि सोंज्यड़या च काफू, दादू मेरि गेल्या च हिलांसी !
झम झामले दादू………
छायो मी बाजी को पियारो, छायो मी मांजी को लाडूलो
छो मेरा गौला को हंसुलो, दादू रे बौजी को बिटूलो !
झम झामले दादू………
दादू मिन रौंसल्यूं का बीच, बैठी की बांसुरी बजैनी,
दादू मिन चैरी की चुलाख्युं चलखदा ह्युं चुला देखिनी !
झम झामले दादू………
देखि मिन म्वारियुं को रुणाट, दादू रे कौथिग का थाल
दादू बे पोतली देखिनी लेंद मिन रेशमी रुमाल !
दादू वो रूड़ी का कौथिग स्यूंद सी सैंणा मा की कूल
दादू वो सोंज्यड़यों की टोल व्हेग्यायी तिम्ला को फूल !
दादू रे उडमिला बुरांसुन लुछीन भौरों की जिकुड़ी
दादू रे किन्गोड़ीयूँ का बीच देखी मिन हैंसदी फ्युन्लाड़ी !
झम झामले दादू………
झुमकी सी तुड तुड़ी मंगरी, मखमली हैरी से अंगडी
हिल्वार्यों हल्क्दी धौपेली घुन्कदी लोंक्दी कुयेडी !
झम झामले दादू मेरि उल्यारू जिकुड़ी दादू मी पर्वतों को वासी