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नई दिल्ली : भारत अपनी आजादी के अमृत महोत्सव में कुशल राजनीतिक नेतृत्व के कारण सभी जगह और हर मोर्चे पर प्रतिष्ठित हो रहा है। सुनियोजित दुष्प्रचार के जरिए जो विमर्श गढ़े गए उनकी कलई खुल रही है। सत्ता के इशारे पर चाहे राजशाही ने हो या लोकतांत्रिक निरंकुशता ने, जिसने भी देश की आजादी के महानायकों को हाशिए पर पहुंचाया, देश उनकी वास्तविकता को भांपकर अब धूल चटा रहा है। अपने एक ही जीवन में मृत्युदंड की सजा पाने वाले वीर दामोदर सावरकर हों या 84 दिन की भूख हड़ताल कर अंग्रेजी दासता और निरंकुश राजशाही के विरुद्ध बिगुल बजाने वाले टिहरी के मुक्तिनायक अमर बलिदानी श्रीदेव सुमन। इस परंपरा के असंख्य राष्ट्रभक्तों के सत्कर्म और समर्पण कोई नहीं भुला सकता। देश में नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर जोर देने के साथ ऐसे गुमनाम ऐतिहासिक प्रेरक व्यक्तित्वों के अध्ययन पर अमल आजादी के अमृत पर्व पर हो रहा है।

ये विचार स्वातंत्र्यवीर श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर पर्वतीय लोकविकास समिति और हिम उत्तरायणी पत्रिका द्वारा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में “आजादी का अमृत महोत्सव और सुमन की टिहरी” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री के सलाहकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. निरंजन कुमार ने व्यक्त किए। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड कॉंग्रेस के उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री धीरेन्द्र प्रताप ने कहा कि अपने 28 साल के अल्प जीवन काल में श्रीदेव सुमन ने न केवल राजशाही के विरुद्ध संघर्ष ही किया बल्कि टिहरी राजशाही को हिलाकर रख दिया और 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनका बलिदान हो गया.

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्यामलाल मजेडा ने कहा कि हमारी आज की पीढ़ी को समाज और देश के लिए सब कुछ समर्पित करने की प्रेरणा अमर बलिदानी श्रीदेव सुमन जैसे चिरयुवा देते हैं। श्रीदेव सुमन के व्यक्तित्व और कृतित्व को राष्ट्रीय स्तर पर और महत्त्व देने की आवश्यकता है। सुप्रसिद्ध समाजसेवी और भिलंगन क्षेत्र विकास समिति के सलाहकार इन्द्र दत्त पैन्यूली ने कहा कि पहाड़ की जनता ही नहीं देश के लोग भी टिहरी के मुक्तिनायक श्रीदेव सुमन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा देने की चाह रखते हैं।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए पर्वतीय लोकविकास समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र दत्त सेमवाल ने कहा कि अमर शहीद श्रीदेव सुमन केवल टिहरी के ही नहीं स्वतंत्रता के लिए लड़ने और लोकतंत्र की मांग करने वाले राष्ट्रीय नेता थे। आज उनका इतिहास देशभर के नौनिहालों को सिखाने और पढ़ाने की आवश्यकता है। गोष्ठी के विषय पर दर्जनभर से अधिक लेखकों, पत्रकारों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और समाजसेवियों ने विचार रखते हुए टिहरी की बदहाली, उपेक्षा और उदासी पर चिंता प्रकट की। प्रमुख वक्ताओं में वरिष्ठ पत्रकार संजीव सचदेवा, मनोज टिबड़ेवाल, सुनील नेगी, पूर्व नौकरशाह महेश चंद्रा, चार्टर्ड अकाउन्टेंट राजेश्वर पैन्यूली, पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल, प्यारा उत्तराखंड के संपादक देव सिंह रावत, लेखक एसपी गौड़, प्रो. सुषमा चौधरी, दीवान सिंह रावत, सुषमा जुगरान ध्यानी, मोहनलाल लासियाल और कवि प्रदीप वेदवाल ने भी अपने विचार रखे।

इस अवसर पर विभिन्न संस्थाओं की ओर से विशिष्ट योगदान के लिए जिन लोगों को सम्मानित किया गया उनमें समाजसेवी पवन मैठाणी, समाजसेवी लखपत सिंह भंडारी,  लेखक डॉ. सतीश कालेश्वरी, पत्रकार वेद प्रकाश, सुभाष त्रान, सुरेश नौटियाल, पाञ्चजन्य संपादकीय विभाग से जुड़े मंगल सिंह नेगी, राज्य आंदोलनकारी डॉ. एसएन बसलियाल, ऑर्गनाइजर और पाञ्चजन्य के चीफ आर्ट डायरेक्टर शशिमोहन रावत,  भाजपा नेता प्रमोद रतूड़ी, समाजसेवी गंभीर सिंह नेगी, योग विशेषज्ञ रमेश कांडपाल, पत्रकार राजेन्द्र रतूडी, समाजसेवी देवेश नौटियाल, सोहन सिंह भंडारी, बिजेंद्र पैन्यूली, जगदम्बा सेमवाल और समन सिंह रौथान को सम्मानित किया गया।

समारोह का संचालन करते हुए पर्वतीय लोकविकास समिति के संयोजक प्रो. सूर्य प्रकाश  सेमवाल ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में देश में आदिवासी समाज से श्रीमती द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित हो रही हैं, यह गौरव की बात है, ऐसे में दुर्गम क्षेत्रों और बीहड़ जंगलों में 75 वर्षों से उपेक्षित और हाशिये पर पहुंचे लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाना बड़ी चुनौती है। टिहरी तक सीमित कर दिए गए भारतीय स्वातंत्र्य समर के महानायक श्रीदेव सुमन और कभी भी अंग्रेजों के यूनियन जैक को न लहराने वाले टिहरी को इतिहास और विकास की मुख्यधारा में लाने का संकल्प लिया जाना चाहिए। समिति के कोषाध्यक्ष वीर सिंह राणा ने सभी अतिथियों और आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।