नई दिल्ली : उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली की ओर से शनिवार को दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में भव्य शिक्षक सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस मौके पर उत्तराखंड की लोक भाषाओं (गढ़वाली, कुमांउनी एवं जौनसारी) को पढ़ाने वाले करीब 150 शिक्षकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन गढ़वाली भाषा की प्रसिद्ध “धाद पत्रिका” के संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल गणी ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ विशष्ट अतिथि प्रोफ़ेसर दयाल सिंह पंवार (लालबहादुर शास्त्री संस्कृत अकादमी दिल्ली), उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती, संयोजक दिनेश ध्यानी तथा योगाचार्य एवं ध्यान गुरु रमेश कांडपाल ने दीप प्रज्वलित कर किया।
इस अवसर पर उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संरक्षक एवं दिल्ली बीजेपी के प्रदेश मंत्री विनोद बछेती ने कहा कि हम 2012 से ही राज्य की लोक भाषाओं को बचाने के लिए अभियान चला रहे हैं। जिसके तहत दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषा की मुफ्त कक्षाएं चलाई जाती हैं। इस बार भी दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग शहरों में 41 जगहों पर अपनी लोक भाषाओँ की कक्षाएं चलाई गईं थी। इन कक्षाओं में पढ़ाने वाले 150 शिक्षकों को आज उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच की ओर से सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी को उचित स्थान मिलना चाहिए।
इस मौके पर उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी ने उत्तराखंड की लोक भाषाओँ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी भाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी करीब 1200 वर्ष पुरानी हैं। हमारी लोक भाषा हमें अपनी संस्कृति से जोड़ती हैं। वंही मंच संचालक गणेश खुगशाल गणी ने दिनेश ध्यानी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारी लोक भाषा 12 सौ साल पहले ताम्रपत्र में लिखी गयी थी, इससे यह पता चलता है कि हमारी लोक भाषा उस समय से कई पहले भी अस्तित्व में रही होगी। उन्होंने कहा कि हमारी लोक भाषा, हमारी मातृभाषा हिंदी से कई पुरानी है।
कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के अशोक नगर के आई नन्ही बालिका दर्शिता तोपाल ने गढ़वाली भाषा में अपना परिचय देने के साथ ही उत्तराखंड के बारे विभिन्न जानकारी दर्शकों के साथ साझा की। अपने पहाड़ की पारम्परिक पोशाक पहने मंच पर आई प्यारी बालिका के मुख से गढ़वाली भाषा सुनकर दर्शक दीर्घा में बैठे लोग मंत्रमुग्ध हो गए। दर्शिता ने बताया कि उसने इसी साल ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान डीपीएमआई में चलाई गयी कक्षाओं में गढ़वाली भाषा सीखी है। और उसे गढ़वाली में बात करना बहुत अच्छा लगता है। दर्शिता की ही तरह कुमांऊनी भाषा सीखने वाली नेहा पपने, अजय शर्मा ने भी मंच पर कुमांऊनी भाषा तथा अरोही जुयाल ने गढ़वाली भाषा में अपना परिचय दिया।
सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि भाषा का जीवन में अहम स्थान है। आप लोग अपनी बोली-भाषा को आगे बढ़ाने के जिस तरह प्रयासरत हैं वह काबिले तारीफ है।
सम्मान समारोह में शिक्षकों के अलावा कवि दर्शन सिंह रावत, ग्रामीण पत्रकार जगमोहन डांगी, फेसबुक पर हर रोज दोस्तों के जनमदिन पर शानदार पोस्ट शेयर करने वाले सोशल मीडिया गुरु रमेश चंद, लेखिका रामेश्वरी नादान, रोशनी चमोली समेत कई समाजिक कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह का आयोजन उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच, उत्तराखंड एकता मंच और भुयाल मंच की ओर से किया गया था।
सम्मान समारोह में लालबहादुर शास्त्री संस्कृत अकादमी दिल्ली के प्रोफ़ेसर दयाल सिंह पंवार, उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती, उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी, योगाचार्य एवं ध्यान गुरु रमेश, भुयाल मंच के दयाल नेगी, दर्शन सिंह रावत, जगमोहन सिंह रावत, देहरादून निवासी एवं यमकेश्वर ब्लाक में शिक्षिका सुनीता बहुगुणा, निर्मला नेगी, भारती रावत नेगी, चम्पा पांडे, रोशनी चमोली, रामेश्वरी नादान, रमेश चंद, प्रताप थलवाल, प्रेमचंद्रा, जगमोहन बिष्ट, पत्रकार अमर चंद, दीपसिलोड़ी, ग्रामीण पत्रकार जगमोहन डांगी, गणेश नेगी, जितेन्द्र बिष्ट, रत्नेश तोपाल आदि सैकड़ों लोग मौजूद रहे।