Noida towel seller's son

नोएडा: “सपने वो नहीं होते जो आप सोने के बाद देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।” पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का कथन ऐसे मेहनती बच्चों पर सटीक बैठता है। ऐसा ही एक मेहनती और होनहार बालक है सुजल सिंह, जिसने कठिन परिस्थितियों के बीच देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक जेईई-एडवांस्ड क्रैक की है। जिसके बाद सुजल सिंह का आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग के लिए चयन हुआ है। हालांकि मनमुताविक स्ट्रीम नहीं मिलने पर सुजल ने आईआईटी दिल्ली की सीट छोड़कर, दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी (DTU) में कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया है।

सुजल के पिता बलवंत सिंह नोएडा की सड़कों पर फेरी लगाकर तौलिया वेचते हैं। वलवंत सिंह मूलरूप से अलीगढ़ के मढौली गांव के रहने वाले हैं। वे पिछले 28 साल से नोएडा के अट्टा के आसपास फेरी लगाकर तौलिये बेचने का काम करते हैं। बलवंत का पूरा परिवार दिल्ली के भजनपुरा में एक किराए के घर में रहता है।

सुजल ने दिल्ली के मोरी गेट स्थित सरकारी स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। उसके बाद एक साल की तैयारी कर जेईई मेंस में 99.25 फीसदी परसेंटाइल हासिल किए। इसके वाद एडवांस परीक्षा में सफल हुआ और उसका सिलेक्शन आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग के लिए हुआ, लेकिन उसमें दाखिला न लेकर दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया है।

दरसल सुजल की दिलचस्पी कंप्यूटर साइंस में है। इसलिए उसने आईआईटी की सीट छोड़ने का फैसला किया और दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई का फैसला लिया। हालांकि दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की सालाना फीस दो लाख रुपये है और बलवंत सिंह जैसे रोज कमाने खाने वाले शख्स के लिए मुश्किल भरा काम है। परन्तु बलवंत का कहना है कि भले ही DTU में पढ़ाई कराना उनकी जेब के अनुकूल नहीं है। कॉलेज की करीब 2.2 लाख रुपये की वार्षिक फीस वहन करना उन्हें चुनौतीपूर्ण लगता है। लेकिन मेरा बच्चा पढ़ने में बहुत अच्छा है, उसको पढ़ाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। बलवंत का कहना है कि उन्हें एक दिन में करीब 5-6 ग्राहक मिलते हैं। खासकर महामारी की चपेट में आने के बाद उनका कारोबार काफी कम हो गया है। वह अब प्रति माह 20,000 रुपये से भी कम कमाते हैं लेकिन अपने बेटे को शिक्षित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उन्होंने कहा, “मैं किसी तरह प्रबंध करूंगा, मुझे अपने बच्चों को शिक्षित करना है और मैं इसे किसी भी तरह से करूंगा।” “बेटे को इस कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए मुझे रिश्तेदारों से पैसे लेने पड़े। सुजल के चाचा ने उसकी शिक्षा के लिए 1 लाख रुपये उधार दिए।

बलवंत को इस बात का बिलकुल गम नहीं है की उनके बेटे ने आईआईटी की सीट छोड़ दी, वो कहते हैं मैंने अपने बच्चों को कभी करियर के लिए फ़ोर्स नहीं किया, मेरे बच्चे जो पढाई कर रहे हैं वो मेरी जेब के लिए अफोर्डेबल तो नहीं है लेकिन जैसे आज तक मैं उनका हर खर्च आराम से वहन करता आ रहा हूं आगे भी करूँगा। मैं बस उनको भविष्य में चमकते हुए देखना चाहता हूं। बलवंत की बेटी भी बीएससी कर रही है और साथ में यूपीएससी की तैयारी कर रही है।