श्रीनगर गढ़वाल: जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो हमें मानवीय संवेदनाओं की गहराई से परिचित कराती हैं। श्रीनगर गढ़वाल निवासी शिक्षक अखिलेश चन्द्र चमोला की जीवनकथा भी ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है “शालू की स्मृति और श्रीमती का समर्पण”। यह कथा सिर्फ एक पालतू पिल्ले “शालू” की नहीं, बल्कि एक पत्नी के समर्पण और करुणा की गाथा भी है।
करीब 15 वर्ष पूर्व, अखिलेश चमोला पशु प्रेम के चलते एक छोटा-सा पिल्ला अपने घर लेकर आये। उस समय श्रीमती की नाराजगी और परिवार के बीच का मतभेद यह सोचने पर मजबूर कर गया कि शायद निर्णय गलत था। किंतु समय के साथ जो दृश्य सामने आया, उसने परिवार में प्रेम और अपनत्व की नई परिभाषा गढ़ दी।
धीरे-धीरे वही पिल्ला ‘शालू’ न केवल परिवार का सदस्य बन गया, बल्कि श्रीमती का सबसे प्रिय साथी भी। उन्होंने उसके लिए कपड़े सिलना, उसकी देखभाल करना और बच्चों को उसके प्रति दया सिखाना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। शालू की वफादारी और समझदारी ने पूरे परिवार का दिल जीत लिया।
श्रीमती का पशु-प्रेम यहीं नहीं रुका। जब शालू गंभीर रूप से बीमार हुआ, तो उन्होंने पूरी सिम्मत के साथ उसका उपचार कराया। हालांकि कुछ समय बाद शालू ने प्राण त्याग दिए, पर उसकी यादें और श्रीमती का समर्पण आज भी परिवार को प्रेरित करते हैं।
आज भी श्रीमती अपने आस-पास के गाय-बछड़ों, कुत्तों और अन्य पशुओं की सेवा में लगी रहती हैं। योगा और बी.एड जैसी डिग्रियाँ होने के बावजूद उन्होंने समाज सेवा और पशु कल्याण को ही अपना जीवन उद्देश्य बना लिया है।
शिक्षक चमोला बताते हैं, “शालू के जाने के बाद मैंने समझा कि प्रेम कभी व्यर्थ नहीं जाता। श्रीमती ने जिस निस्वार्थ भाव से उसकी सेवा की, वह मेरे जीवन की सबसे अमूल्य सीख है।”
यह सच्ची कहानी हमें यह याद दिलाती है कि मानवता केवल मनुष्यों के प्रति नहीं, बल्कि उन मूक जीवों के प्रति भी उतनी ही आवश्यक है, जो हमारे स्नेह और करुणा से जीवन का अर्थ पाते हैं।
“शालू भले चला गया, पर उसकी स्मृति और श्रीमती का समर्पण आज भी हर दिल को यह सिखाता है कि प्रेम सबसे ऊँचा धर्म है।”
लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला
श्रीनगर गढ़वाल।


