श्रीनगर गढ़वाल: राजकीय इंटर कॉलेज देवलगढ़ में आज प्रधानाचार्य अवधेश मणिलाल के नेतृत्व में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस को बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम में श्रीदेव सुमन के चित्र पर माल्यार्पण कर उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर वृहद वृक्षारोपण का कार्यक्रम रखा गया।

विद्यालय की इको क्लब प्रभारी सरिता नौटियाल एवं स्काउट प्रभारी मनमोहन भटृ के नेतृत्व में स्काउट गाइड छात्र-छात्राओं एवं समस्त स्टाफ ने विद्यालय की भूमि पर 150 फलदार, छायादार, चारा पत्ती तथा फूलों की पौध का रोपण किया गया। फलदार पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड की व्यवस्था भी की गई। कार्यक्रम में वन विभाग से चमन सिंह पवार (वित्त अधिकारी) सिविल एवं सोयम श्रीनगर रेंज, पौड़ी गढ़वाल का विशेष सहयोग रहा। वे वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत विद्यालय में उपस्थित रहे।

श्रीदेव सुमन की बारे में

उत्तराखंड के अमर बलिदानी शहीद श्रीदेव सुमन की आज 79वीं पुण्यतिथि है। मात्र 28 वर्ष 2 महीने की अल्पायु में ही अपने देश के लिए शहीद होने वाले श्रीदेव सुमन को टिहरी की ऐतिहासिक जनक्रांति का महानायक कहा जाता है। श्रीदेव सुमन ने ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ 84 दिनों की एतिहासिक भूख हड़ताल के बाद आज ही के दिन यानी 25 जुलाई 1944 को अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस को टिहरी में “सुमन दिवस” के रूप में मनाया जाता है। मशहूर हिंदी फिल्म “आनन्द मे राजेश खन्ना को वह डायलॉग ‘जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए बाबू मुशाय’, अगर किसी व्यक्ति की जिन्दगी पर फिट बैठता है, तो वो हैं मात्र 28 वर्ष 2 महीने की अल्पायु में ही अपने देश के लिए शहीद होने वाले अमर शहीद श्रीदेव सुमन।

श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था। उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था। उनका जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था। मात्र 3 वर्ष की अल्पायु मे इसके सर से पिता का साया उठ गया था। सुमन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से हासिल की। 1930 में मात्र 14 वर्ष की किशोरावस्था में ‘नमक सत्याग्रह’ आन्दोलन मे भाग लेकर श्रीदेव सुमन ने साबित कर दिया था कि उनके अन्दर देश प्रेम की भावना किस हद तक भारी हुई थी। इसके आलावा छोटी सी उम्र में ही श्रीनगर में आयोजित जिला राजनैतिक सम्मेलन में शामिल हुये, तथा इस अवसर पर उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरु को अपने ओजस्वी भाषण से गढ़वाल राज्य की दुर्दशा से परिचित कराया, तथा खुद का मुरीद भी बना दिया। यहीं से उन्होंने ‘जिला गढ़वाल’ और ‘राज्य गढ़वाल’ की एकता का नारा बुलंद किया।

मई 1940 में टिहरी रियासत ने श्रीदेव सुमन के भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया। और मई 1941 में उन्हें रियासत से निष्कासित कर दिया गया। जुलाई 1941 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया। उनके बाद अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई। और फिर नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें आगरा सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया।

उसके बाद ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया। जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया। 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों के भूख हड़ताल के बाद 25 जुलाई 1944 को मात्र 29 वर्ष की अल्पायु में श्रीदेव सुमन ने प्राण त्याग दिए।