नई दिल्ली: उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली द्वारा मंगलवार, 11 नवम्बर 2025 को महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी की 92वीं जयंती के अवसर पर एक साहित्यिक श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में अनेक साहित्यकारों, पत्रकारों और समाजसेवियों ने भाग लेकर डंडरियाल जी के योगदान को याद किया तथा उनके साहित्य पर विस्तृत चर्चा की। इस अवसर पर ध्वनिमत से दो महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव भी पारित किए गए।
डंडरियाल जी की साहित्य साधना को किया नमन
कार्यक्रम का शुभारंभ गढ़वाली भाषा के इस महाकवि को स्मरण करते हुए किया गया। मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी ने कहा कि “महाकवि डंडरियाल जी ने गढ़वाली साहित्य सृजन के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। उन्होंने अपनी रोज़ी-रोटी से अधिक चिंता भाषा और साहित्य की की। उनके लेखन का ही परिणाम है कि हमें ‘नागराजा जनु’ जैसा महाकाव्य प्राप्त हुआ।”
उन्होंने बताया कि मंच द्वारा प्रतिवर्ष “महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान” भी प्रदान किया जाता है।
ध्यानि जी ने आगे कहा कि युवा साहित्यकार आशीष सुंदरियाल के अथक प्रयासों से डंडरियाल जी के कई अप्रकाशित ग्रंथ जैसे ‘रूद्री’, ‘अर बागी उपन्ना’ और ‘लड़ै खंड’ आदि प्रकाशित हुए हैं। साथ ही एक शब्दकोश भी शीघ्र प्रकाशनाधीन है।
“डंडरियाल जी हमारे साहित्य शिरोमणि हैं”: डॉ. विनोद बछेती
कार्यक्रम के संरक्षक एवं डीपीएमआई के चेयरमैन डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि “महाकवि डंडरियाल जी जैसे साहित्य शिरोमणि विरले ही जन्म लेते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने साहित्य सेवा में कोई कमी नहीं आने दी। नई पीढ़ी को उनके जीवन से प्रेरणा लेकर लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।”
वरिष्ठ साहित्यकारों और पत्रकारों ने साझा की स्मृतियाँ
मंच के कोषाध्यक्ष व वरिष्ठ रंगकर्मी दर्शन सिंह रावत ने डंडरियाल जी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया।
वरिष्ठ उपन्यासकार रमेश चन्द्र घिल्डियाल ‘सरस’ ने बताया कि मेरा सौभाग्य है कि मैंने डंड़रियाल जी जैसे व्यक्तित्व के साथ मंच साझा किया। डंडरियाल जी के प्रेरणा से ही उन्होंने गढ़वाली भाषा में लेखन आरंभ किया। पहले मैं हिन्दी में ही लिखता था। पर डंडरियाल जी ने मुझसे कहा कि तुम गढ़वाली भाषा में भी लिखो, उसके बाद मैंने गढ़वाली में लिखना शुरू किया और आज तक लगातार लिखता आ रहा हूं।
डॉ. हेमा उनियाल ने कहा कि डंडरियाल जी साहित्य साधना में सदैव तल्लीन रहे और कठिन परिस्थितियों में भी अपने संकल्प से कभी नहीं डिगे। डंडरियाल जी का साहित्य संसार अद्वितीय है। डंडरियाल जी निर्लिप्त व हमेशा किसी गहरे चिंतन में रहते थे।
पत्रकार श्रीमती सुषमा जुगरान ध्यानी ने कहा कि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी जैसे बुद्धिजीवी, गढ़वाली साहित्य संसार में मिलना बहुत मुश्किल है। डंडरियाल जी जो साहित्य रच गए हैं, वो सबसे उत्कृष्ट व द्वितीय है। डंडरियाल जी के साहित्य पर शोध होना चाहिए ।
न्यायाधीश भास्करानंद कुकरेती ने डंडरियाल जी के साहित्य को हिंदी के बड़े साहित्यकारों से भी श्रेष्ठ बताया।
बरिष्ठ पत्रकार, चिंतक चारू तिवारी जी ने दो कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि महाकवि डंडरियाल जी के साहित्य का और भाषाओं में भी अनुवाद होना चाहिए। जिससे की दुनिया को पता चल सके कि डंडरियाल जी ने कितने उच्च कोटि का साहित्य रचा है। इसके लिए हमें प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि डंडरियाल जी के “अंज्वाळ कविता संग्रै” को स्वर्गीय नत्थी प्रसाद सुयाल जी ने प्रकाशित किया था। सुयाल जी भाषा , साहित्य का प्रति सजग रहने वाले व्यक्ति तो थे ही, समाज को भी प्रेरित-उद्वैलित करते थे कि अपने भाषाई सरोकारों को बचा के रखें और उनको आगे बढ़ाओ।
फिल्मकार खुशहाल सिंह बिष्ट, वरिष्ठ लेखक नेत्र सिंह असवाल, राज्य आंदोलनकारी धीरेन्द्र प्रताप, समाजसेवी दिग्मोहन नेगी सहित अनेक वक्ताओं ने भी अपने विचार साझा किए।
परिवार की ओर से भावनात्मक स्मरण
महाकवि के सुपुत्र हरिकृष्ण डंडरियाल ने कहा कि उनके पिता ने साहित्य के लिए अपना जीवन समर्पित किया और कभी समझौता नहीं किया।
उन्होंने कहा कि “पिताजी ने नौकरी छोड़ दी पर साहित्य साधना नहीं छोड़ी। मैं मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी और संरक्षक डॉ. विनोद बछेती का आभारी हूं, जिन्होंने उनके नाम से सम्मान प्रारंभ किया।”
काव्यपाठ और सांस्कृतिक प्रस्तुति
इस अवसर पर कई कवियों ने डंडरियाल जी की कविताओं और अपनी रचनाओं का पाठ किया। प्रमुख कवियों में जगमोहन सिंह रावत ‘जगमोरा’, सुशील बुड़ाकोटी, बृजमोहन वेदवाल, भगवती जुयाल ‘गढ़देशी’, चन्दन प्रेमी, रमेश चन्द्र घिल्डियाल ‘सरस’, शशि बडोला, डॉ. पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, डॉ. कुसुम भट्ट, रोशन लाल हिंदकवि आदि सम्मिलित थे।
वरिष्ठ कवि जयपाल सिंह रावत ‘छिप्वडूदा’ ने डंडरियाल जी के साथ बिताए अपने संस्मरण साझा किए।
दो प्रस्ताव हुए पारित
मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी ने कार्यक्रम में दो प्रस्ताव रखे, जिन्हें उपस्थित सभी प्रतिभागियों ने ध्वनिमत से पारित किया.
- गढ़वाली और कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए, तथा उत्तराखण्ड विधानसभा इस विषय पर चर्चा कर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे।
- गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी भाषा अकादमी का उत्तराखण्ड में गठन किया जाए, जैसा कि हिंदी, संस्कृत, पंजाबी और उर्दू की अकादमियाँ पहले से हैं।
कार्यक्रम संचालन और उपस्थिति
कार्यक्रम का संयोजन और संचालन दिनेश ध्यानी एवं बृजमोहन वेदवाल ने संयुक्त रूप से किया।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी और बुद्धिजीवी उपस्थित रहे, जिनमें कई सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवी, पत्रकार, साहित्यकार, कविगण और जनसरोकारों से संबंध रखने वाले बुद्धिजीवी मौजूद थे। जिनमें जगदीश ढौंडियाल, डॉ हेमा उनियाल, रघुनन्दन उनियाल, डॉ विनोद बछेती, श्रीमती ममता रावत, श्रीमती सुषमा जुगरान ध्यानी, दर्शन सिंह रावत, बृजमोहन वेदवाल, खुशहाल सिंह बिष्ट, नेत्र सिंह असवाल, शशि बडोला, जयपाल सिंह रावत, जय सिंह रावत, दिगमोहन नेगी, मोहन चन्द्र पांथरी, श्रीमती सीमा गुसाईं, नीरज बवाड़ी, विकास चमोली, हरिकृष्ण डंडरियाल, भास्करानंद कुकरेती, रविन्द्र गुडियाल, चारु तिवारी, दीवान सिंह नेगी रिंगूण, युगराज सिंह रावत, गोविंदराम भट्ट, जगमोहन रावत जगमोरा, संजय बोरा, रोशन लाल हिंदकवि, चन्दन प्रेमी, उमेश बंदूनी , डॉ कुसुम भट्ट, ओमप्रकाश ध्यानी, सुशील बुड़ाकोटी, श्रीमती विजयलक्ष्मी नौटियाल, ऋषिकांत ममगाईं, रामपाल किमली, प्रताप थलवाल, श्रीमती रेनू उनियाल, महिपाल सिंह असवाल, जबर सिंह कैंतुरा, सुशील डंडरियाल, धीरेन्द्र प्रताप, कमलेश, मुकेश, मथुरा प्रसाद थपलियाल, प्रदीप तिवारी, सुमाता देवी तिवारी, शशि बडोला, डॉ पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, मान सिंह घुघतियाल अर वीरेन्द्र सिंह रावत आदि लोग उपस्थित सहित अनेक साहित्य प्रेमी सम्मिलित थे।


