ग्रेटर नोएडा : वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से आज हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। संकट के इस काल में मन में किसी तरह का नकारात्मक विचार उत्पन्न न हो यह बहुत जरूरी है। कोरोना महामारी से लड़ने के साथ शासन व प्रशासन लोगों का हौंसला बढ़ाने का भी काम कर रहा है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय भी छात्रों में नये उत्साह का संचार करने की कोशिश में लगा है। ऑनलाइन तकनीक के माध्यम से नये छात्रों के इंडक्शन पखवाड़ा कार्यक्रम के तहत ऐसी हस्तियों से रूबरू कराया जा रहा है,जो अपने प्रेरणादायक संबोधन से नये ऊर्जा का संचार कर रहे हैं। देश के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास ने अपने प्रेरणादायक संबोधन में छात्रों को बताया कि एजुकेटेड होना और लर्नेद (काबिल) होने में क्या अंतर है। उन्होंने कहा कि ये अंतर सिर्फ और सिर्फ भारत की शिक्षा पद्धति में ही मिल सकता है। विश्वविद्यालय शिक्षित कर सकता है, लेकिन जीवन में जीने के लिए लर्नेद यानी ज्ञानी होना होगा। डॉ. कुमार विश्वास ने भारत के प्राचीन मूल्यों का उदाहरण देते हुए छात्रों का उत्साहवर्धन किया। इतिहास की कई घटनाओं के जरिए यह समझाने का प्रयास किया कि किस तरह प्राचीन काल से लेकर आज के समय तक लोगों ने हर विषय परिस्थिति का सामना किया और उस पर जीत हासिल की। कोशिश करने पर हर विषयम परिस्थिति का मुकाबला किया जा सकता है। डॉ.विश्वास ने फिल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या करने के मुद्दे को भी साझा किया, जिनके साथ चंदा मामा नामक फिल्म पे वो काम कर रहे थे। आत्महत्या को उन्होंने साफ शब्दों में नकारा ही नहीं बल्कि इस बात पर जोर दिया कि ऐसी कोई परिस्थिति को अपने आप पर हावी ही नहीं होने देना चाहिए कि कोई व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम उठाने को सोचे भी। एक छात्र द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए डॉ. कुमार विश्वास ने इतिहास के कई उदाहरण दिए, जिसमें महात्मा गांधी से लेकर रोजेवेल्ट, विन्स्टॉन चर्चिल, मुस्सोलिनी, हिट्लर आदि का जिक्र कर यह समझाने की कोशिश की कि निराशा से लड़ने की जरूरत है डरने की नहीं। इस मौके पर कुलपति प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा, डॉ. मनमोहन सिंह शिशौदिया, डॉ. अरविंद कुमार सिंह आदि मौजूद रहे।