लेखक: अखिलेश चंद्र चमोला, श्रीनगर गढ़वाल
भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति में व्रत उपवास का विशेष महत्व है। यह अपने आप में बेजोड़ व अनुपम है। इसकी अपनी अलग पहचान है। यहां नारी को अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखा गया है। जहां पाश्चात्य सभ्यता में स्त्री की पहचान एक मां बहन बेटी तक की सीमित थी, भारतीय संस्कृति में उसे देवी का स्थान प्राप्त था। मानव सभ्यता के तीन आधार बुद्धि, शक्ति, धन तीनों को अधिष्ठात्री देवियां हैं। बुद्धि की सरस्वती धन की लक्ष्मी, शक्ति की देवी दुर्गा, काली आदि। मनुस्मृति में कहा गया है-
यत्र नार्रेयेस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता।
अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है। वहां देवता भी निवास करते हैं। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने अपने महाकाव्य कामायनी में कहा है- नर से बढ़कर नारी, पुरुष की प्रगति में नारी की विशेष भूमिका रहती है, यही कारण है कि नारायण के साथ लक्ष्मी, शिव के साथ पार्वती, श्री राम के साथ सीता, कृष्ण के साथ राधा की आराधना नारी शक्ति की प्रभाव को उजागर करती है।
सुखद जीवन यापन करने के लिए धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में करवा चौथ की व्रत का महत्व बताया गया है। और सुहागिन स्त्री की हार्दिक इच्छा होती है कि उसका सुहाग जीवन प्रयन्त बना रहे। धार्मिक ग्रंथो की मान्यता के अनुसार-नारी के जप तप उपवास व पतिव्रता धर्म पर पति की उम्र बहुत ज्यादा निर्भर करती है। यह पुनीत पर्व 20 अक्टूबर को है। ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार इस वर्ष करवा चौथ में 72 साल बाद शश, महालक्ष्मी, गजकेसरी, बुध आदित्य योग का निर्माण हो रहा है। क्योंकि अपने आप में परम शुभता उजागर करता है।
करवा चौथ के संदर्भ में हमारे धार्मिक ग्रंथो में अनेक मनोरम एवं हृदय स्पर्शी कहानी मिलती है। सत्यवान की अल्पायु होने पर उनकी पत्नी सावित्री अपने चारित्रिक बल पर यमराज से अपने सुहाग के प्राण वापस ले आई। महाभारत में भी जब पांडवों के साथ कदम कदम पर छल हुआ और जीवन की हर मोड़ पर उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा तो भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ व्रत देने की सलाह दी। इस परत को धारण करने से पांडवों को अद्भुत विजय मिली।
करवा चौथ व्रत से पति की लंबी उम्र व पति को हर संकट से मुक्ति दिलाने के लिए महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत रखा जाता है। मातृशक्ति को चाहिए कि इस दिन करवा चौथ का कैलेंडर अपने पूजा स्थान में रखें। अपने श्रृंगार की वस्तुओं को भी पूजा स्थान में रखें। गणेश भगवान, महाकाली शिव पार्वती, कार्तिकेय की बड़ी तन्मयता व भक्ति पूर्वक अर्चना करें। पूजा-अर्चना के बाद सुन्दर व सुसज्जित परिधान धारण करें। पूजा के स्थान पर जल से भरा लोटा या करवे को रखें। करवे को गेहूं से भरे। करवे के ढक्कन में चीनी रखें। करवे पर गोली अलग-अलग तरह की आकर्षक बिंदिया रखें।
पूजन में अक्षत, गुड, और तरह-तरह के पकवान का भोग लगाएं। पूजा करने के बाद गेहूं के तेरह दाने हाथ में रखकर सुयोग्य पंडित से कथा का वचन करायें। कथा श्रवण करने के समय मां काली का ध्यान जरूर करें। काली ही कल पर विजय प्राप्त करती है। शास्त्रों में करवा को भी मां काली का एक रूप माना गया है। अखंड सौभाग्य के लिए पंडित जी से आशीर्वाद लेकर सास के चरण स्पर्श करें।
पूजा में रखी हुई सामग्री चंद्रमा को अर्पित करें। चंद्रमा का दर्शन करने के लिए अपने सुखद दांपत्य जीवन की कामना के लिए प्रार्थना करें। छननी से पति के दर्शन करें। सास को उपहार देने के बाद ही व्रत तोड़े। सुख दांपत्य जीवन के लिए पति की भी विशेष जिम्मेदारी बनती है। 19 व्रत पर अपनी पत्नी को भरपूर सहयोग देना चाहिए। इस दिन शुद्ध सात्विकता का भी ध्यान जरूर रखें। मन को चंचल होने ना दे। अपनी पुरानी कमजोरियों को उजागर न करें। पूर्ण रूप से सुखद जीवन यापन करने के लिए इस दिन संकल्प लें। नियमानुसार उपवास रखने से जीवन में सुखद स्थितियां आनी शुरू हो जाती है। चारों ओर सुगंधमय वातावरण बन जाता है। सुहाग अखंड बना रहता है।