Holika dahan 2023: देशभर में होली का त्यौहार मनाने को लेकर इस बार लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दरसल होलिका दहन पर्व फाल्गुन मास की प्रदोषकालीन पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल 6 मार्च को प्रदोषकालीन पूर्णिमा के साथ ही भद्रा भी है। पूर्णिमा तिथि पर भद्रा के कारण होलिका दहन तिथि को लेकर उलझन उत्पन्न हो रही है। लोगों का मानना है कि भद्रा काल में होलिका दहन नहीं होता है। अब सवाल उठ रहा है कि होलिका दहन 6 मार्च को होगा या फिर 7 मार्च को?

इसबीच उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने बताया कि शास्त्र के अनुसार होलिका दहन प्रदोष कालीन पूर्णमासी तिथि में ही होता है, अब रही भद्रा की बात तो यद्यपि भद्रा का पुचछ काल जिसे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है, वह रात्रि 12:00 बजे के बाद शुरू हो रहा है ,परंतु होलिका दहन 6 मार्च को सायंकाल प्रदोष काल में 6:21 से 8:21 के मध्य किया जाना ही शास्त्र सम्मत है।

आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल के मुताबिक 7 तारीख को भी पूर्णमासी तिथि दिन भर है इसलिए उस दिन लोग मिठाई बना सकते हैं, परंतु प्रदोष काल में पूर्णमासी ना होने से उस दिन होलिका दहन नहीं हो सकता है। डॉक्टर घिल्डियाल बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार रंगोत्सव प्रतिपदा तिथि में मनाया जाना शास्त्र सम्मत है, इसलिए 8 मार्च को ही होली के रंग खेले जाएंगे।

यह पूछे जाने पर कि कुछ हिंदू पंचांग 6 मार्च की रात्रि 4:00 बजे से सुबह 6:00 बजे के बीच होलिका दहन की बात कर रहे हैं और केंद्र सरकार ने भी 8 मार्च का अवकाश रखा है, डॉ घिल्डियाल ने स्पष्ट किया कि दरअसल संपूर्ण उत्तर भारत के पश्चिमी इलाके में और दक्षिण भारत में प्रदोष काल 6 तारीख को प्राप्त हो रहा है, परंतु चंद्रमा की गति के अनुसार पूर्वी उत्तर प्रदेश और कुछ इलाकों में उस दिन प्रदोष प्राप्त ना होने से काशी के पंचांग ने यह व्यवस्था दी है, तो वहां के हिसाब से उन्होंने भी शास्त्र सम्मत बात ही की है। उसी आधार पर केंद्र सरकार ने 8 तारीख को अवकाश किया है।

पत्रकारों द्वारा यह कहने पर कि होली जैसा त्यौहार पूरे देश में अब  अलग-अलग तरीके से 2 दिन मनाया जा रहा है ,क्या यह उचित है? के जवाब में आचार्य घिल्डियाल ने बताया कि त्यौहार में वृद्धि होना पूरे राष्ट्र के लिए अत्यंत शुभ होता है, इसलिए इसको अन्यथा नहीं लेना चाहिए रंगो के त्यौहार को पूरे उत्साह के साथ शास्त्र सम्मत ही मनाना चाहिए।

होलिका दहन कथा और महत्व

होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह उत्सव हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रह्लाद की कथाओं से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी था, लेकिन उसका पुत्र भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र के अपने कट्टर-शत्रु के भक्त होने से क्रोधित था, इसलिए उसने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने ही पुत्र की हत्या करने का फैसला किया। हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था, और उसकी बहन एक राक्षसी थी। भगवान ब्रह्मा ने एक वरदान स्वरूप एक बार होलिका को एक शॉल दिया था जिसे ओढ़ने से आग उसे जला नहीं सकता था। साजिश स्वरूप उसने प्रहलाद को आग में बैठने के लिए आमंत्रित किया और प्रचंड लपटों से खुद को बचाने के लिए उस शाल में लपेट लिया। इस बीच, प्रहलाद ने भगवान विष्णु से रक्षा करने की प्रार्थना की और तब भगवान विष्णु हवा के झोंके के रूप में प्रकट हुए होलिका की शाल को उड़ा दिया जिससे होलिका आग में भस्म हो गई जबकि भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को आग जला नहीं पाया।

होलिका दहन उपाय

  • होलिका दहन की पूजा के दौरान नारियल के साथ पान और सुपारी अर्पित करना चाहिए। इससे सोया भाग्य जाग सकता है।
  • घर की नकारात्मकता दूर करने और परिवार के लोगों के जीवन की हर परेशानी को दूर करने के लिए होलिका दहन के दिन एक नारियल लें। इसे अपने और परिवार के लोगों पर सात बार वार लें। इसके बाद होलिका दहन की अग्नि में इस नारियल को डाल दें और सात बार होलिका की परिक्रमा करें।
  • होलिका दहन के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान जरूर करें। इससे जीवन में आने वाले संकट दूर हो जाते हैं।

होलिका दहन में न करें इन लकड़ियों का इस्तेमाल

पीपल, बरगद, शमी, आंवला, नीम, आम, केला और बेल की लकड़ियों का प्रयोग होलिका दहन के दौरान कभी नहीं किया जाना चाहिए। हिंदू धर्म में इन पेड़ों को काफी पवित्र और पूज्यनीय माना गया है। इनकी पूजा की जाती है और इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के लिए किया जाता है। होलिका दहन को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस कार्य में इन लकड़ियों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

होलाष्टक होते क्या हैं?

होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के साथ समाप्त हो जाते हैं। इस साल होलाष्टक 28 फरवरी से शुरु होकर 6 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त हो जायेंगे। होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। होलाष्टक के समय शुभ ग्रह भी अशुभ फल देते हैं। एक प्रकार से सभी ग्रहों का स्वभाव उग्र हो जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान कोई मांगलिक काम करता है तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है। इसलिए होलाष्टक के समय को शुभ नहीं माना जाता है।

होलाष्टक के दौरान ना करें ये काम

  1. इस दौरान शादी, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या कोई नया बिजनेस खोलना वर्जित माना जाता है।
  2. शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर भी रोक लग जाती है।
  3. किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है।
  4. इसके अलावा नव विवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है।