Janmashtami 2025: ऋषि मुनियों की तपस्थली भारत वर्ष सदियों से ही विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है। यही कारण है कि यहां की धरती पर जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं. इस देश में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, श्री कृष्ण भगवान, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी जैसी शक्तियां अवतरित हुई। जिन्होंने समाज में मर्यादा स्थापित करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। इन अवतारी पुरुषों में श्री कृष्ण का नाम बडे ही गौरव व सम्मान के साथ लिया जाता है। क्योंकि ग्रन्थों में 16 कलाओं के मर्मज्ञ के रूप में इन्हें ही जाना जाता है। इन्हीं के जन्म को जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है।
पूर्ण पुरुषोत्तम विश्वंभर प्रभू का भाद्रपद मास के अन्धकार पक्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्ध रात्रि में अवतरित होना निराशा में आशा का संचार है। श्री मद भागवत में कहा गया है
- निशीथे तम उदभूते जायमाने जनार्दने।
- देवक्याम् देवरुपिण्याम विष्णु सर्व गुहाश्य:।
- आवीरासीद् यथा प्राच्याम् दिशीन्दुरिव पूष्कल:
अर्थात अर्धरात्रि के समय जबकि अज्ञान रूपी अन्धकार का विनाश और ज्ञान रूपी चन्द्रमा का उदय हो रहा था, उस समय देवकी के गर्भ से सबके अन्तःकरण में विराजमान पूर्ण पुरुषोत्तम व्यापक परवह्म विश्वंभर प्रभु भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए।
16 अगस्त को मनाया जायेगा जन्माष्टमी का त्यौहार
इस वर्ष यह पुनीत त्योहार 16 अगस्त को है। उदय तिथि के अनुसार इस पर्व पर अनेक प्रकार के दुर्लभ योग बन रहे हैं। ब्र्हृममूहूर्त -4 बजकर 24 मिनट से 5 बजकर 07 मिनट तक, विजय मूहूर्त 2 बजकर 37 मिनट से 3 बजकर 30 मिनट। गोधूलि मुहूर्त 7 बजकर 22 मिनट, निशित मूहूर्त 12 बजकर 4 मिनट पर है। इन मुहूर्तों मैं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि
जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत करने का विधान है। इस दिन केले के खम्भे आम व अशोक के पल्लव आदि से सजाया जाता है। रात्रि को षोडशोपचार विधि से श्री कृष्ण भगवान की पूजा की जाती है। ऊं नमः भगवते वासुदेवाय इस मन्त्र से पूजन कर के वस्त्रालंकार से सुसज्जित करके भगवान श्रीकृष्ण को हिंडोले में प्रतिष्ठित किया जाता है। विभिन्न प्रकार के फल, पुष्प छुहारे, अनार, नारियल के मिष्ठान तथा नाना प्रकार के मेवै का प्रसाद सजाकर भगवान को अर्पित किया जाता है। जन्मोत्सव के बाद कर्पूर आदि प्रज्वलित कर सस्वर भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है। उसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है। जन्माष्टमी का उपवास लेने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है। जीवन में ऊर्जा का संचार होता है। निसंतान दम्पति के लिए यह व्रत बड़ा ही प्रभाव कारी माना जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्ध रात्रि में घनघोर अन्धकार में श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था। पूर्व जन्म में वासुदेव श्रेष्ठ प्रजापति कश्यप व उनकी पत्नी सुतपा माता अदिति थी। प्रजापति कश्यप और अदिति ने श्री कृष्ण की कठोर तपस्या की। तपस्या से खुश होकर कृष्ण ने उनसे मन चाहा वर मांगने को कहा तो कश्यप ने उन्हें पुत्र के रूप में मांगा।
इस तरह से अन्य कथा भी है। त्रेता युग में राम चन्द्र के सूर्य वंश में जन्म लेने के कारण सूर्य देव अस्त ही नहीं हुए। इससे चन्द्रमा बहुत दुःखी हुए। राम से अपनी व्यथा सुनाई। रामचन्द्र ने उन्हें कहा कि इस जन्म में मेरे जन्म के साथ तुम्हारा नाम भी जुडेगा। दूसरे जन्म में अवतार स्वरूप भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ और उनके मुकुट पर मोर पंख के साथ चंद्रमा भी सोभायमान हुआ।
उपवास में सावधानियां
- किसी भी स्थिति में क्रोध न करें।
- इन्द्रिय निग्रह का पालन करें।
- अन्न ग्रहण न करें।
- दिन में न सोये।
- विवादो से दूर रहें।
- गाय की सेवा करें।
- श्रद्वापूर्वक विधि विधान से गीता के द्वितीय अध्याय का पाठ करते हुए श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करें।
- गोमाता को शुद्धता पूर्वक खाना खिलाये।
शास्त्रीय मान्यता है कि जो मनुष्य जन्माष्टमी का ब्रत लेता है, वह विष्णु लोक को प्राप्त होता है।
लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला, वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक, राजकीय इंटर कॉलेज सुमाडी श्रीनगर गढ़वाल