Karva Chauth vrat 2025

Karva Chauth vrat 2025: भारतीय संस्कृति अपने आप में बेजोड़ और अनुपम है। इसकी अपनी अलग पहचान है। यहां नारी को अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखा गया है। मनुस्मृति में कहा गया है -यत्र नार्येस्तु पूज्यंते,रमन्ते तत्र देवता। अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है , वहां देवता निवास करते हैं। हिंदी साहित्य के छायावादी काव्यधारा के आधारभूत स्तंभ जयशंकर प्रसाद ने कामायनी महाकाव्य में यह स्पष्ट किया है कि नर से बढ़कर, नारी। पुरुष की प्रगति में नारी की विशेष भूमिका रहती है। यही कारण है कि नारायण के साथ लक्ष्मी, शिव के साथ पार्वती, राम के साथ सीता और कृष्ण के साथ राधा की आराधना नारी शक्ति के प्रभाव और उसकी सम्पूर्णता को उजागर करती है।

सुखद जीवन यापन करने के लिए धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में करवा चौथ व्रत के महत्व को बताया गया है। हर सुहागिन स्त्री की हार्दिक इच्छा होती है कि उसका सुहाग जीवन पर्यन्त बना रहे। शास्त्रो व पौराणिक धार्मिक ग्रंथो में इस संदर्भ में अनेक मनोरम एवं हृदय स्पर्शी कहानियां देखने को मिलती है।

सत्यवान की अल्पायु होने पर भी उनकी पत्नी सावित्री अपने चारित्रिक बल पर यमराज से अपने सुहाग के प्राण वापस ले आई। महाभारत में भी जब पांडवों के साथ कदम-कदम पर छल और जीवन के हर मोड़ पर उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा, तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ व्रत लेने की सलाह दी। इस व्रत को धारण करने से पांडवों को आधारभूत विजय मिली।

करवाचौथ व्रत से पति की लंबी उम्र व पति को हर संकट से मुक्ति दिलाने के लिए मातृशक्ति इस दिन उपवास रखती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यह पुनीत त्यौहार 10 अक्टूबर को है। ज्योतिषीय गणना विश्लेषण के आधार पर कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 9 अक्टूबर की रात 10:54 से शुरू होगी और 10 अक्टूबर की शाम 7:38 पर इसका समापन होगा। उदय तिथि के अनुसार यह व्रत 10 अक्टूबर को ही मनाया जाना शुभकारी है।

मातृशक्ति को चाहिए इस दिन करवा चौथ का कैलेंडर अपनी पूजा स्थान में रखें। अपने श्रृंगार की वस्तुओं को भी पूजा स्थान में रखें। गणेश भगवान मां काली, शिव पार्वती, कार्तिकेय की बड़ी ही तन्मयता व भक्तिपूर्वक पूजा अर्चना करें। पूजा करने के बाद स्वयं को नव नवेली दुल्हन की तरह सजाकर सुंदर व आकर्षक परिधान धारण कर स्वयं को सुसज्जित करें। पूजा के स्थान पर जल से भरा हुआ लोटा या करवा को रखें। करवे को गेहूं से भरे। करवे के ढक्कन में चीनी रखें। करवे पर रोली और सुंदर अलग-अलग तरह की आकर्षित बिन्दिया पूजा में रखें।

पूजन में अक्षत गुड और तरह तरह-तरह के पकवान का भोग लगाकर, पूजा करने के बाद तेरह गेहूं के दाने हाथ में रखकर योग्य पंडित से कथा का वाचन करायें। कथा श्रवण के समय मां काली का ध्यान करें। मां काली ही काल पर विजय प्राप्त करती है। शास्त्रों में करवा को भी मां काली का ही एक रूप माना गया है। अखंड सौभाग्य के लिए पंडित से आशीर्वाद लेकर सास के चरण स्पर्श करें। इसके बाद पूजा में रखी हुई सामग्री चंद्रमा को अर्पित करें चंद्रमा के दर्शन करके अपने सुखद दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए प्रार्थना करें। करवा चौथ में चंद्रमा की पूजा करने से मन शांत हो जाता है। पति-पत्नी के रिश्ते में मजबूती आ जाती है। चंद्रमा से अपने सुखद दांपत्य जीवन की कामना के लिए प्रार्थना करें। छननी से पति के दर्शन करें। सास को उपहार देने के बाद ही उपवास तोड़े। सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए पति की भी विशेष जिम्मेदारी बनती है उन्हें इस व्रत में अपनी पत्नी को भरपूर सहयोग देना चाहिए।

शास्त्रों में करवा चौथ की कहानी इस तरह से वर्णित है -करवा चौथ की कहानी रानी वीरवती की है, जो अपने भाइयों की अकेली और लाडली बहन थी। वह अपने पति के साथ बहुत खुश थी, लेकिन उसके भाइयों को लगता था कि वह अपने पति के लिए बहुत अधिक व्रत रखती है और इससे उसकी सेहत खराब हो सकती है। एक बार, करवा चौथ के दिन, वीरवती ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा। वह पूरे दिन अन्न और जल का त्याग करती है, लेकिन उसके भाइयों को लगता है कि वह बहुत अधिक कमजोर हो रही है। वीरवती के भाइयों ने एक योजना बनाई और पीपल के पेड़ की आड़ में नकली चांद दिखा दिया। वीरवती ने भ्रमवश व्रत खोल लिया, जिसके तुरंत बाद उसके पति की मृत्यु हो गई।

वीरवती ने अपनी भूल पर पश्चाताप किया और अगले वर्ष पूर्ण श्रद्धा से व्रत रखा। उसने अपने पति की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और मां पार्वती से अपने पति को पुनर्जीवन प्रदान करने की प्रार्थना की। मां पार्वती ने वीरवती की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर उसके पति को पुनर्जीवन प्रदान किया। वीरवती का पति जीवित हो गया और वीरवती को अपने पति के साथ फिर से मिलने का अवसर मिला।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्रत और पूजा का महत्व है, लेकिन हमें अपनी भावनाओं और विचारों को भी महत्व देना चाहिए। हमें अपने जीवन में संतुलन बनाना चाहिए और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सही तरीके से काम करना चाहिए।

इस ब्रत पर पूरी तरह से सात्विकता का विशेष ध्यान रखें। मन चंचल होने न दें। अपनी पुरानी कमियों को उजागर न करें। पूर्ण रूप से सुखद जीवन यापन करने के लिए इस दिन संकल्प लें। नियमानुसार उपवास लेने से जीवन में सुखद स्थितियां आनी शुरू हो जाती हैं। चारों ओर सुगंध मय वातावरण बनना शुरू हो जाता है। इस प्रकार करवा चौथ व्रत धारण करने से विवाहित स्त्री के सुहाग की रक्षा हो जाती। सुहाग की अखन्डणता अखन्ड बन जाती है।

लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला, श्रीनगर गढ़वाल।